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गुरुवार, 18 मार्च 2021

कोविड ने बच्चों और महिलाओं के जीवन में भी की है भयानक तबाही

दक्षिण एशिया: महामारी के कारण जच्चा-बच्चा मौतों में तीव्र बढ़ोत्तरी


17 मार्च 2021//महिलाएं

आपदा कहीं भी आये उसका सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है महिलाओं पर। इसके साथ ही  बच्चों की। आज  युग की खबरें भी कुछ इसी तरह की आ रही हैं। कोविड  तबाही की दर वाली है। संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों ने कहा है कि दक्षिण एशिया में, कोविड-19 के कारण, स्वास्थ्य सेवाओं में उत्पन्न हुए गम्भीर व्यवधान के परिणामस्वरूप, वर्ष 2020 के दौरान, जच्चा-बच्चा की अतिरिक्त दो लाख 39 हज़ार मौतें हुई हैं। यह आंकड़ा सचमुच चिंतित करने वाला है। संयुक्त राष्ट्र समाचार की टीम के सदस्य इसकी विस्तृत तस्वीर सामने लाये हैं और यह तस्वीर बेहद दुखद है। बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है। 

UNICEF/Omid Fazel: अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रान्त में, आन्तरिक विस्थापितों के लिये बनाए गए एक शिविर में, सामुदायिक शिक्षा केन्द्र में कुछ बच्चे

यह तस्वीर डराने वाली है। पूरे समाज को जागना होगा और सक्रिय भूमिका।  संयुक्त राष्ट्र बाल कोष–यूनीसेफ़, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने द्वारा बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस व्यवधान के परिणामस्वरूप, गम्भीर व तात्कालिक कुपोषण का इलाज पाने वालों, व बचपन में टीकाकरण किये जाने वाले बच्चों की संख्या में भी काफ़ी कमी हुई है।  इस तरह न जाने कितने बच्चे और कितने परिवार आवश्यक सेवा और सुविधा से वंचित रह रहे हैं। 

UNICEF-WHO-UNFPA report: दक्षिण एशिया में, बच्चों और माताओं पर कोविड-19 महामारी के प्रभाव की एक झलक


पूरे विश्व के जागरूक लोग इस समस्या को ले कर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं। दक्षिण एशिया के लिये यूनीसेफ़ के क्षेत्रीय निदेशक ज्यॉर्ज लरयी-ऐडजेई के अनुसार इन महत्वपूर्ण व आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान उत्पन्न होने के कारण, निर्धनतम व बहुत कमज़ोर हालात का सामना कर रहे परिवारों के स्वास्थ्य व पोषण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। इस वक्तव्य से अनुमान लगाया जा सकता है कि इस विनाशकारी प्रभाव के दुष्परिणाम निकट भविष्य में भी दिखाई देंगें और साथ ही देर तक इनकी आहत करने वाली आहट सुनाई देती रहेगी। 

क्षेत्रीय निदेशक ज्यॉर्ज लरयी-ऐडजेई ने ज़ोर देकर कहा, “इन स्वास्थ्य सेवाओं को पूरी तरह बहाल किया जाना बेहद आवश्यक है ताकि उन बच्चों व माताओं को इनका लाभ मिल सके, जिन्हें इनकी बेहद ज़रूरत है।"

"साथ ही, वो सब कुछ किया जाना सुनिश्चित करना होगा जिसके ज़रिये, लोग इन सेवाओं का इस्तेमाल करने में सुरक्षित महसूस करें।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस महामारी के कारण, दक्षिण एशिया क्षेत्र में भी बेरोज़गारी, निर्धनता और खाद्य असुरक्षा में बढ़ोत्तरी हुई है, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में भी गिरावट आई है। 

स्कूल वापसी की सम्भावना कम

महामारी की विकरालता का प्रभाव शिक्षा पर भी पड़ा है। इस रिपोर्ट में अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका के हालात का जायज़ा लिया गया है। पाया गया है कि महामारी और उससे निपटने के लिये लागू किये गए उपायों के कारण, इन देशों में लगभग 42 करोड़ बच्चे स्कूलों से बाहर रह गए। करोड़ों बच्चों की शिक्षा से दूरी  निर्माण करेगी इसका अनुमान भी लगाया जा सकता है। 

इस संबंध में सामने आई रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसी सम्भावना है कि लगभग 45 लाख लड़कियाँ, अब कभी भी स्कूली शिक्षा में वापिस नहीं लौट पाएंगी। इसके अलावा, ये लडकियाँ, यौन व प्रजनन स्वास्थ्य और सूचना प्रदान करने वाली सेवाओं तक पहुँच नहीं होने के कारण, जोखिम के दायरे में हैं। इस जोखिम का परिणाम  भुगतना पड़ सकता है। कोविड का कहर 

एशिया-प्रशान्त के लिये, यूएन जनसंख्या कोष के क्षेत्रीय निदेशक ब्यॉर्न एण्डर्सन का कहना है, “दक्षिण एशिया में सांस्कृतिक व सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए, इन सेवाओं में व्यवधान आने से, विषमताएँ और ज़्यादा गहरी हो रही हैं और इसके परिणामस्वरूप, जच्चा-बच्चा की मृत्यु दर में और भी बढ़ोत्तरी होने की सम्भावना है।”

रविवार, 9 फ़रवरी 2020

कहानी//भीमा गुरु//शुचि(भवि)

जीवनशैली में आई गिरावट को दर्शाती रचना
हरिद्वार की हरकी पौड़ी पर बेहद ही चहल पहल सी थी।विष्णु,अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ मस्त मलंग हो भीड़,अभिराम दृश्यों का आनंद ले टहल रहा था। बिटिया की अंगुली बीच बीच में छूट जाती थी तो वो पापा,पापा कह दौड़ती आती थी।
छोटा बेटा माँ के साथ धीरे धीरे कुछ कदम पीछे चहलकदमी करता चल रहा था।
      बिटिया ने अचानक पिता की अंगुली खिंची और एक कचड़े के ढेर की तरफ इशारा किया।
एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति,कचड़े के ढेर में से कुछ चुन कर खा रहा था।विष्णु अपनी बिटिया का हाथ थामे कुछ पास गया।ध्यान से चुपचाप अधेड़ व्यक्ति को देखता रहा।वह कचड़े में से चने,फल्ली,इत्यादि अन्न के दाने चुन कर खा रहा था।
     विष्णु ने देखा पास ही एक चाय का ठेला है।बिटिया की छमछम के साथ वह चाय के ठेले से एक ब्रेड खरीद लाया। अधेड़ व्यक्ति के एकदम निकट पहुँच उसे थपथपाते हुए बुलाया और ब्रेड देते हुए बोला,"आपके लिए है श्रीमान,खा लें,शायद आप भूखे हैं??"
     वह अधेड़ व्यक्ति उठा,घूमा और गुस्से में तमतमाते हुए बोला,"माफ़ कीजियेगा,आपने क्या मुझे भिखारी समझा है?मैंने तो आपसे भीख नहीं मांगी,,मांगूगा भी क्यों? पास के गाँव में मेरी कइयों एकड़ जमीन है,मेरे बेटे उसमें खेती करते हैं,बड़ा मकान,दुकान सब कुछ है मेरे पास उस ईश्वर की दया से,ये ब्रेड आप ही खाएँ।"
     विष्णु और नन्ही बिटिया के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।अधेड़ व्यक्ति फिर से कचड़े से चने चुन कर खाने लगा।विष्णु भी अब चने चुनने लगा और कुछ चने खुद खाये और कुछ बिटिया को दिए।दूर खड़ी पत्नी और बेटे को भी आवाज़ दी चने लेने,पर वे नाक भों सिकोड़ पास तक भी न आये।बिटिया चने खाते हुए पूछने लगी,"बाबा,आपके पास सबकुछ है,फिर ये कचड़ा क्यों खाते हो?"
     अब वह उस बिटिया की ओर पलटा और मुस्कुराते हुए बोला,"बेटे ये कचड़ा नहीं,अन्न देवता है,कुछ बेवकूफों ने अन्न ब्रह्म को यहाँ फेंक कर उसका  अपमान किया है ,मैं तो बस अन्न देवता को मान दे रहा हूँ,और बाबा नहीं,मेरा नाम भीमा है बिटिया।"
       विष्णु की आँखों से निर्मल गंगा बह निकली।झुक कर उसने भीमा के पाँव छुए और बिटिया से भी यही करने कहा।विष्णु और भीमा ने कुछ देर बातचीत की और विदा हुए।
      बिटिया को ब्रेड देते हुए पिता ने कहा कि ये भीमा गुरु का प्रसाद है,जिसे वो सम्हाल कर रखे।बिटिया ने पूछा, गुरु???वो कैसे पापा???
       विष्णु ने उसे समझाते हुए कहा, गुरु वही होता है जो केवल ज्ञान देता ही नहीं बल्कि उस ज्ञान को जीता भी है।भीमा हमारा गुरु इसलिए हुआ बिटिया क्योंकि वो "अन्न ब्रह्म है",इस ज्ञान को जीता है।हर वो व्यक्ति हमारा गुरु है बिटिया ,जो हमें कुछ साकार ज्ञान दे जिसे वो स्वयं जीता भी हो।
      इस घटना को कई वर्ष बीत गए,परंतु आज भी ,उस नियत तारीख,भीमा गुरु का प्रसाद ,जो अब सूखी ब्रेड (टोस्ट ) है,के कुछ टुकड़े विष्णु और उसकी बिटिया खाते हैं और तब से अब तक न ही थाली में,न रसोई में,न ही किसी पार्टी में,वे दोनों ही ,अन्न ब्रह्म का अपमान कुछ जूठन छोड़ कर ,कभी नहीं करते हैं।--शुचि(भवि)

गुरुवार, 9 जनवरी 2020

फिल्म के पांच यादगारी गीतों में इस गीत का जादू अनूठा ही था

मन की शक्ति का फलसफा भी याद दिलाती है फिल्म अनुराग 
फ़िल्मी दुनिया-फ़िल्मी यादें: 9 जनवरी 2020: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::
अपने ज़माने में हिंदी फ़िल्म "अनुराग" बहुत हिट हुई थी। सन 1972 के आखिरी महीने दिसंबर में रिलीज़ हुई इस फिल्म ने दर्शकों को चुंबक की तरह खींचा था। निर्माता निर्देशक थे शक्ति सामंत।  मौसमी चटर्जी की तो यह पहली फिल्म थी। राजेश खन्ना भी इसी फिल्म के एक छोटे से रोल में नज़र आए। इसी फिल्म को सन 1973 का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला। मध्य वर्ग के लोगों ने तो एक से ज़्यादा बार भी यह फिल्म देखी। यह एक ऐसी प्रेम कहानी है जो आंखों की रौशनी को केंद्रीय बिंदु बना कर बनी गई है। नायक पूरी तरह अच्छा भला लेकिन नायका की आंखों में रौशनी नहीं। ऐसी स्थिति में भी प्रेम होता है और पूरी शिद्दत से होता है। यूं कह लो कि इश्क यहां भी अपना लोहा मनवा लेता है। इसी फिल्म का एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। इस फिल्म में नायक का नायिका से वायदा है: फिल्म के पांच यादगारी गीतों में इस गीत का जादू अनूठा ही था 
तेरे नैनों के मैं दीप जलाऊँगा
अपनी आँखों से दुनिया दिखलाऊँगा
नायक और नायका शायद सागर के सामने खड़े हैं। सागर और हवा की अठखेलियों का सहारा ले कर रूमानी सा माहौल बनाया जाता है और इसी माहौल में गीत शुरू होता है एक सादा किस्म के सवाल से--वो क्या है?
जवाब भी बहुत सीधा और सादा से। वो क्या है पूछे जाने पर जवाब मिलता है-इक मंदिर है। नया सवाल होता है उस मंदिर में? इसका जवाब भी बहुत सीधा सा-उस इक मूरत है। अगला सवाल है--वो मूर्त कैसी होती है-जवाब बहुत ही रूमानी है--तेरी सूरत जैसी होती है...! कितनी दिव्यता है गीत के इन बोलो में। कितना विश्वास है। इसी गीत के किसी अगले सवाल में एक अंधी लड़की को जब उसका प्रेमी तीसरा सवाल करता है कि तुमने कैसे जान लिया? इस सवाल से दिल, दिमाग और मन फ़िल्म के सभी दृश्यों से किसी हल्की सनसनी की तरह कट जाता है दर्शक को इसका न तो अहसास होता है और न ही कोई झटका लगता है। यही है निर्देशक का कमाल कि दर्शक भी फ़िल्म के दृश्यों और गीत के बोलों के साथ बहता हुआ यही पूछने लगता है-तुमने कैसे जान लिया? इस सवाल का जवाब बहुत गहरा है। अपने आप में पूरा फलसफा समेटे हुए। तुमने कैसे जान लिया के जवाब में मन की शक्ति का अहसास कराता यह जवाब कहता है-मन से आंखों का काम लिया! धार्मिक प्रवचनों से दूर-धार्मिक परिवेश से दूर बैठे दर्शक को पहली बार मन की शक्ति का अहसास इतने संगीतमय और काव्य से भरे इतने मधुर लेकिन बहुत सादगी भरे शब्दों से कराया जाता है-मन से आंखों का काम लिया!
इसके बाद भी गीत अपनी दिलचस्पी को कायम रखता हुआ आगे बढ़ता है। 
लीजिये यह पूरा गीत भी पढ़िए जिसे लिखा था जनाब आनंद बख्शी साहिब ने और संगीत से सजाया था एस.डी. बर्मन साहिब नेआवाज़ दी थी जनाब मोहम्मद रफ़ी साहिब और सुर साम्राज्ञी  मंगेशकर ने। इस फिल्म के पांच यादगारी गीतों में से इस गीत का जादू कुछ अलग सा ही रहा। 
अब लीजिये इस गीत के यादगारी बोल भी गुनगुनाईये 
तेरे नैनों के मैं दीप जलाऊँगा
अपनी आँखों से दुनिया दिखलाऊँगा


अच्छा?
वो क्या है? इक मंदिर है 
उस मंदिर में? इक मूरत है 
ये मूरत कैसी होती है?
तेरी सूरत जैसी होती है 
वो क्या है? इक मंदिर है 



मैं क्या जानूँ छाँव है क्या और धूप है क्या
रंग-बिरंगी इस दुनिया का रूप है क्या
वो क्या है? इक परबत है 
उस परबत पे? इक बादल है
ये बादल कैसा होता है?
तेरे आँचल जैसा होता है
वो क्या है? इक परबत है



मस्त हवा ने घूंघट खोला, कलियों का 
झूम के मौसम आया है रंगरलियों का 
वो क्या है? इक बगिया है 
उस बगिया में? कई भँवरे हैं
भँवरे क्या जोगी होते हैं?
नहीं, दिल के रोगी होते हैं
वो क्या है? इक बगिया है



ऐसी भी अनजान नहीं मैं अब सजना 
बिन-देखे मुझ को दिखता है सब सजना 
अच्छा?
वो क्या है? वो सागर है 
उस सागर में? इक नैया है
अरे, तूने कैसे नाम लिया?
मन से आँखों का काम लिया
वो क्या है? वो सागर है

रविवार, 5 जनवरी 2020

बचपन से ले कर अब बुढ़ापे तक क्यों है मुझे इस गीत से लगाव?

मेरा जन्म 1958 का और यह फिल्म रिलीज़ हुई थी सन 1964 में 
तेरी आँख के आंसू पी जाऊं-ऐसी मेरी तक़दीर कहां ! यह गीत मुझे बचपन से ही पसंद था। जब भी रेडियो पर यह गीत आता मैं सब काम छोड़ कर इसे सुनता।मेरा जन्म मार्च 1958 का है और यह फिल्म आई थी सन 1964 में। अर्थात मैं उस समय महज़ छह वर्ष की उम्र का था।
गीत अक्सर ही फिल्म रिलीज़ होने से बहुत पहले गूंजने लगते थे सो यह गीत भी बहुत पहले आ गया था। न तो मुझे इसके शब्दों का पूरा पता था और न ही इसके अर्थ मालुम होते थे। फिल्म का भी कुछ पता न था लेकिन इस एक पंक्ति का अर्थ मालूम था कि कोई किसी के आंसू पीने की बात कह रहा है। इस फिल्म ने उन दिनों 11 मिलियन भारतीय रूपये कमाए थे। उस समय में यह बहुत बड़ी रकम थी। उन दिनों मुझे उस कमाई का भी कुछ पता न चला। चल जाता तो शायद मैं भी उसी तरह की कमाई की बात सोचता। पता भी चला तो बस आंसूयों का। मुझे उस उम्र में भी बहुत से आंसू बहाने पड़े थे शायद उन आंसूयों ने ही यह समझ दे दी कि इस गीत के मुखड़े को समझ सकूं। आंसूओं का एक रिश्ता सा बन गया था इस गीत के साथ।
इस गीत के गीतकार रजिंदर कृष्ण दुग्गल गीत में छुपे दर्द के अहसास के कारण अपने अपने से लगने लगे। इसके साथ ही संगीतकार मदनमोहन साहिब के साथ भी एक दिल का रिश्ता स्थापित हुआ। मुझे अफ़सोस रहेगा कि इन दोनों से मैं अब तक नहीं मिल पाया। माला सिन्हा और तलत महमूद साहिब से भी भेंट नहीं हो सकी। निर्देशक थे विनोद कुमार और संगीत दिया था मदन मोहन साहिब ने।  मदन मोहन साहिब का 14 जुलाई 1975 को निधन हो गया और गीतकार रजिंदर कृष्ण 23 सितंबर 1987 को सिर्फ 68 वर्ष की उम्र में चल बसे। इन दोनों से कभी न मिल पाने के सदमे ने मुझे समझाया कि आर्थिक मजबूरियां कितना कुछ छीन लेती हैं। गीतकार जनाब राजेंद्र कृष्ण और इस सदा बहार गीत को आवाज़ देने वाले जनाब तलत महमूद साहिब के संयोजन ने इस गीत को भी अमर कर दिया। भारत भूषण, माला सिन्हा, शशि कला, पृथ्वी राज कपूर, ॐ प्रकाश, सुंदर अरुणा ईरानी, रणधीर, मीनू मुमताज़ और फरीदा जलाल जैसे मंजे हुए कलाकारों ने इस फिल्म में जान फूंक दी थी। उनकी आवाज़ में महसूस होता कंपन एक अजीब सा अहसास कराता है। गीत के शब्दों का दर्द उस कंपन के कारण शायद ज़्यादा महसूस होता है। यह कंपन ही उनकी आवाज़ को विलक्षण बनाता है। 
यहाँ पूरा गीत भी दिया जा रहा है। जब गीत की पहली पंक्ति कानों में पड़ती है या शब्दों में दिखाई देती है तो वह पहली पंक्ति ज़िंदगी की मजबूरियों को बहुत ही सादगी से प्रस्तुत करती है;सामने है। वह पहली पंक्ति कहती है:
तेरा ग़मख़्वार हूँ लेकिन मैं तुझ तक आ नहीं सकता----और दूसरी पंक्ति इसी शिद्द्त को आगे बढ़ाती है--मैं अपने नाम तेरी बेकसी लिखवा नहीं सकता---कितना अजीब सा अहसास है--कितनी सूक्ष्म सी पकड़ है। जब लोग ज़मीन जायदादों को अपने  नाम करवाने के इलावा और कुछ नहीं सोचते और इस मकसद के लिए कत्लोगार्त तक कर डालते हैं उस माहौल में भी कोई किसी की बेकसी अपने नाम लिखवाने की चाह में है। एक बार इस गीत की इस पंक्ति को मैंने अपने वाटसप पर लिख लिया। इसे देख कर एक महिला मित्र ने सवाल किया--किस के आंसू पीना चाहते हो? सवाल सुन कर बहुत अजीब भी लगा पर झट से कह दिया मैडम आपके आंसू? वह बोली सच? मैंने कहा हां  बिलकुल सच। मैं उसके कितने आंसू पी पाया और कितने नहीं यह एक अलग कहानी है। इसकी चर्चा कभी फिर सही। फ़िलहाल आप पढ़िए//देखिये और सुनिए देखिये इस गीत को जो आज भी मुझे से जुड़ा हुआ है। 
तेरा ग़मख़्वार हूँ लेकिन मैं तुझ तक आ नहीं सकता
मैं अपने नाम तेरी बेकसी लिखवा नहीं सकता

तेरी आँख के आँसू पी जाऊं ऐसी मेरी तक़दीर कहाँ 
तेरे ग़म में तुझको बहलाऊं ऐसी मेरी तक़दीर कहाँ

ऐ काश जो मिल कर रोते, कुछ दर्द तो हलके होते
बेकार न जाते आँसू, कुछ दाग़ जिगर के धोते
फिर रंज न होता इतना, है तनहाई में जितना
अब जाने ये रस्ता ग़म का, है और भी लम्बा कितना
हालात की उलझन सुलझाऊँ ऐसी मेरी तक़दीर कहाँ
तेरी आँख के आँसू पी जाऊँ-----
आपको यह ब्लॉग कैसा लगा? यह गीत और इसका संगीत कैसा लगा? इस गीत के साथ मेरे इस लगाव की बात कैसी लगी?  क्या आपको भी कभी किसी गीत के साथ ऐसा ही लगाव हुआ? हुआ तो अवश्य बताना। इंतज़ार रहेगी ही। अगली पोस्ट में मैं बता सकूंगा किसी ऐसे ही गीत के बारे में जिस को लेकर मुझे परिवार और बिरादरी में बहुत से सवाल भी हुए। इस गीत की चर्चा भी जल्दी ही। ---रेक्टर कथूरिया (पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)

शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो न पाया हम ने

इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
फेसबुक: 10 फरवरी 2018: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन)::
सुल्ताना बेगम साहिबा से मुलाकात किसी भी तरह हो--उनके लिखे शब्दों के ज़रिये या फिर आमने सामने या फिर तस्सवुर में--
एक बात पक्की है कि कुछ देर के लिए आप वोह नहीं रहते जो मिलने से पहले थे। 
आपको लगने लगेगा कि आप अपने अनुभव में ज़िंदगी के ज्ञान की असली और अनमोल पूँजी पा कर ही उठे हैं। शगूफा शब्द कहने को शायद किसी हल्के फुल्के अहसास या हंसी की याद दिलाता हो लेकिन सुलताना बेगम जी के लिखे शगूफे ज़िंदगी की भूल चुकी आंतरिक परतों को उघाड़ते हुए अक्सर वहां ले जाते है जहाँ हम जाने के इच्छुक नहीं भी होते। बिलकुल उसी तरह जैसे हमारा बस चले तो हम आईना भी वही लाएं जो हमें हमारी मर्ज़ी की खूबसूरत शक्ल ही दिखाए। सुल्ताना बेगम भी अपने शब्दों से कई बार आईना दिखाती हैं। आज उनके एक पंजाबी शेयर की  पोस्ट पढ़ी:
दिल में वसल-ए-यार की आरज़ू न रही;
कैसे कहूं कि अब कोई आरज़ू न रही। 
इस पोस्ट को पढ़ते ही याद आयी बरसात की रात की क्वाली। ख़ास कर इसकी वो पंक्तियाँ---
मेरे नामुराद जनून का; गर है इलाज कोई तो मौत है;
जो दवा के नाम पे ज़हर दे उसी चारागर की तलाश है। 
यह सब यहाँ इस लिए लिख रहा हूँ तांकि आप सभी को पता चल सके कि सुल्ताना बेगम के शब्दों को पढ़ते पढ़ते इंसान कहाँ से कहाँ जा सकता है। किसी सहरा में भी किसी समुन्द्र में भी। गहरी शांति में भी और किसी तूफानी हालत में भी। लेकिन आप फिलहाल सुनिए//देखिये इस ग़ज़ल को--
जुस्तजु जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने;
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने।
फिल्म उमरायो जान 1981 में रलीज़ हुयी थी और इस फिल्म ने एक गंभीर दर्शक वर्ग की पहचान को और मज़बूत किया था। आवाज़ आशा भौंसले की थी, शब्द थे शहरयार के और संगीत से सजाया था ख्याम साहिब ने। समझना मुश्किल था--अब भी मुश्किल ही है कि आप इस को इसके शब्दों की वजह से पसंद करते हैं, इसकी गायन आवाज़ के लिए पसंद करते हैं या फिर इसके संगीत की वजह से। इन तीनों महारथियों का ऐसा संगम बार बार नहीं बनता। 
जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो न पाया हम ने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
तुझ को रुसवा न किया ख़ुद भी पशेमां न हुए
इश्क़ की रस्म को इस तरह निभाया हम ने
कब मिली थी कहाँ बिछड़ी थी हमें याद नहीं

जिंदगी तुझ को तो बस ख्वाब में देखा हम ने
ऐ अदा और सुनाये भी तो क्या हाल अपना

उम्र का लंबा सफर तय किया तन्हा हम ने
फ़िल्मी दुनिया की मानी हुयी हस्ती रेखा का स्केच बनाने वाली अंजना वर्मा जी से आप मिल सकते हैं  यहाँ क्लिक करके 

शनिवार, 9 मई 2015

Teri Aankh ke Ansoo Pee Jaoon...

.A Tribute to Cine Beauty Mala Sinha..

माला सिन्हा 
तळत महमूद 
गीतकार राजेन्द्र कृष्ण  का लिखा और तलत महमूद की कंपन भी जादुई आवाज़ में गया हुआ यह गीत आज भी सीधा दिल में उतरता है। फिल्म जहां आरा के इस गीत को संगीत से संवारा था मदन मोहन ने.---सुनिये--देखिये और चाहें तप पढ़िए भी वह यादगारी गीत:
तेरी आंख के आंसू पी जाऊ ...

तेरा ग़मख्वार हूँ लेकिन मैं तुझ तक आ नहीं सकता
मैं अपने नाम तेरी बेकसी लिखवा नहीं सकता

तेरी आँख के आँसू पी जाऊ, ऐसी मेरी तकदीर कहाँ
तेरे ग़म में तुझको बहलाऊ, ऐसी मेरी तकदीर कहाँ

मदन मोहन 
राजेन्द्र कृष्ण 
ऐ काश जो मिल कर रोते, कुछ दर्द तो हलके होते
बेकार ना जाते आँसू, कुछ दाग जिगर के धोते
फिर रंझ ना होता इतना, हैं तन्हाई में जितना
अब जाने यह रास्ता ग़म का, है और भी लम्बा कितना
हालात कि उलझन  सुलझाऊं, ऐसी मेरी तकदीर कहाँ

क्या तेरी ज़ुल्फ़ का लहरा, हैं अब तक वही सुनहरा
क्या अब तक तेरे दर पे, देती हैं हवायें पहरा
लेकिन है ख़्वाब खयाली, तेरी ज़ुल्फ़ बनी हैं सवाली
मोहताज है एक कली की, एक रोज़ थी फूलोंवाली
वह ज़ुल्फ़-ए-परेशान महकाऊ, ऐसी मेरी तकदीर कहाँ
तेरी आंख के आंसू पी जाऊ ...

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

पप्पा जल्दी आ जाना- हिंदी फिल्म TAQDEER (1967) का यादगारी गीत

कोंकणी फिल्म निर्मोह का रीमेक थी तक़दीर 
 Courtesy:TheDreammarchant//YouTube
कोकणी फिल्म निर्मोह 1966 में आई थी। निर्मोन का शाब्दिक अर्थ भी किस्मत ही होता है। उसकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि एक ही वर्ष बाद 1967 में इसका हिंदी रीमेक तैयार हो गया तक़दीर के नाम से। यूं तो तक़दीर के सभी गीत हिट हुए थे लेकिन इस  गीत ने अपना अलग स्थान बनाया। घर की मजबूरियां और रोज़ी रोटी का चक्र कैसे घर के अपनों को अपनों से ही दूर विदेश में भेज देता है इसकी एक झलक इस गीत में खूबसूरती से दर्शायी गयी है। गीत को लिखा था आनंद बख्शी साहिब ने और संगीत था लक्ष्मी कांत प्यारेलाल ने। इस गीत को आवाज़ दी थी लतामंगेश्कर और सुलक्षणा पंडित ने। निर्माता तारा चंद बरजात्या की इस यादगारी फिल्म में भारतभूषण, फ़रीदा जलाल, शालिनी, काजल, कमल कपूर, जानी वाकर, सुभाष घई, सुशील और जलाल आगा भी थे। यह फिल्म 1967 में आई थी और अब 2015 आने को है लेकिन तक़दीर के खेल आज भी जारी हैं। आज भी बहुत से लोग घर परिवार छोड़ कर विदेश में जाते हैं और कभी कभी वे वापिस भी नहीं आते केवल उनकी खबर आती है। इन मजबूरियों से ही निकला था गीत--चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है---इसकी चर्चा हम किसी अगली पोस्ट में करेंगे। 

इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती दिल्ली में पूनम की कलम का रंग

बहुमुखी प्रतिभा को अपनी निरंतर मेहनत से विकसित वाली पूनम 

पूनम की डांस कला को आप देख सकते हैं यहाँ क्लिक करके 

साहित्य, संगीत, शायरी, डांस-सभी कलाएं एक साथ-पूनम माटिया में

आगे भी जाने न तू -Waqt (1965)

यह पल गंवाना न यह पल ही तेरा है 


Courtesy:Rohit Aggarwal//YouTube

सोमवार, 25 नवंबर 2013

ओशो.....गुरु वंदना...OSHO...


14-07-2011 को अपलोड किया गया 
Courtesy:9825580958//YouTube
GURU PURNIMA KE PAVAN AVSAR PR MERE UNCLE KO MERA GURU VANDANA KA YE CREATION ARPAN KARTA HU ...JAY HO.....
JIGNESH SHAH +91 98255 80958

Rare Osho Footage...♥ [V★]


19-10-2011 को अपलोड किया गया
Courtesy:Jivan Vistar//YouTube
Found this from Facebook...
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Love
Vistar Jivan ♥

OSHO: कोपलें फिर फूट आयीं


05-06-2010 को अपलोड किया गया 
Courtesy:OSHOHindi//YouTube
OSHO International Foundation presents : Kople Phir Phoot Aayeen

ओशो के ढाई हजार से अधिक मूल हिंदी प्रवचनों की ऑडिओ रिकॉर्डिंग उपलब्ध हैं। वीडिओ के रूप में केवल बहुत थोड़े से हिंदी प्रवचन रिकॉर्ड किए गए थे।

ओशो प्रवचनों की हिंदी अनुवाद परियोजना में शामिल हों।

आप हमारे ओशो प्रवचनों की अनुवाद परियोजना में शामिल हो सकते हैं। एक नई अनुवाद प्रौद्योगिकी अब उपशीर्षक के माध्यम से ओशो की हिंदी भाषा को कई अन्य भारतीय और अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में अनुवाद करने की सुविधा देता है। हम यहां जल्द ही जो जानकारी उपलब्ध कराएंगे उसका अनुसरण करें।

OSHO: प्रेम आत्मा का भोजन है--ओशो


28-08-2010 को अपलोड किया गया
Courtesy:OSHOHindi//YouTube
प्रेम आत्मा का भोजन है। प्रेम आत्मा में छिपी परमात्मा की ऊर्जा है। प्रेम आत्मा में निहित परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग है।
Love is the food of the soul. Love is the energy of godliness hidden in the soul. Love is the path to godliness intrinsic in the soul.

ओशो के 2500 से अधिक मूल हिंदी प्रवचनों की ऑडिओ रिकॉर्डिंग उपलब्ध है। वीडिओ के रूप में केवल बहुत थोड़े से हिंदी प्रवचन रिकॉर्ड किए गए थे।
2,500 original OSHO TALKS are available as audio recordings in Hindi language while only a small number of his Hindi talks have been recorded in video format.

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गुरुवार, 7 नवंबर 2013

मुझको सब हाथ मिले तो बड़ी ताली मैं बजा सकता हूं--Mahatma Gandhi

Published on Oct 19, 2012
Excerpts of speech of Mahatma Gandhi delivered on 01/06/1947:
"एक हाथ से तो ताली नहीं बज सकती। मुझको सब हाथ मिले तो बड़ी ताली मैं बजा सकता हूं और तब मैं सारी दुनिया को हंसा सकता हूं। और, पीछे दुनिया क्या कहेगी कि अगर कोई मुल्क को आज़ाद होना चाहिए तो हिंदुस्तान इस आज़ादी के लिए मुल्क है। और, मेरी तो तमन्ना ये है, मेरी तो आशा ये है, ईश्वर से प्रार्थना ये है कि हिंदुस्तान ऐसा बने कि जिससे सारी दुनिया कहे कि अगर आज़ाद बनना है तो हिंदुस्तान के जैसे आज़ाद बनो। ऐसा करने में आपलोग बहुत बड़ा हिस्सा दे सकते हैं। सब के सब अपनी जगह पर अपने धर्म का पालन तो हिंदुस्तान जैसा मैं आपको कहता हूं ऐसा बन सकता है उसमें मुझको तनिक भी शंका नहीं है।"

बुधवार, 6 नवंबर 2013

ठंडी हवा काली घटा आ ही गई के झूम के

प्यार लिए डोले हंसी नाचे जिया घूम के 
Published on Nov 19, 2012
Song : Thandi hawa kali ghata..
Movie : Mr and Mrs55, 1955
Lricist : Majrooh Sultanpuri ,
Music Director : O.P.Nayyer
Cast : Guru Dutt Madhubala, Lalita Pawar, Johnny Walker, Vinita Bhatt , Yasmin
Writer :Abrar Alvi,
Producer/Director: Guru Dutt,
Production Co: Guru Dutt Films Pvt. Ltd. 

Lyrics :-
Thandi hawaa kaali ghataa
aa hi gayi jhoom ke
pyaar liye dole hansi
naache jiyaa ghoom ke
thandi hawaa kaali ghataa
aa hi gayi jhoom ke
pyaar liye dole hansi
naache jiyaa ghoom ke

baithi thi chupchaap yoon hi
dil ki kali chun ke main
baithi thi chupchaap yoon hi
dil ki kali chun ke main
dil ne ye kyaa baat kahi
rah na saki sun ke main
main jo chali
main jo chali
dil ne kahaa
aur zaraa jhoom ke
pyaar liye dole hansi
naache jiyaa ghoom ke
thandi hawaa kaali ghataa
aa hi gayi jhoom ke
pyaar liye dole hansi
naache jiyaa ghoom ke

aaj to main apni chhavi
dekh ke sharma gayi
aaj to main apni chhavi
dekh ke sharma gayi
jaane ye kyaa soch rahi thi
ki hansi aa gayi
lot gayi
lot gayi
zulf meri honth mera choom ke
pyaar liye dole hansi
naache jiyaa ghoom ke
thandi hawaa kaali ghataa
aa hi gayi jhoom ke
pyaar liye dole hansi
naache jiyaa ghoom ke

dil ka har ek taar hilaa
chhidne lage raagini
dil ka har ek taar hila
chhidne lage raagini
kajra bhare nain liye
banke chaloon kaamini
kah do koi
kah do koi
aaj ghata barse zaraa jhoom ke
pyaar liye dole hansi
naache jiyaa ghoom ke
thandi hawaa kaali ghataa
aa hi gayi jhoom ke
pyaar liye dole hansi
naache jiyaa ghoom ke
thandi hawaa kaali ghataa
aa hi gayi jhoom ke
pyaar liye dole hansi
naache jiyaa ghoom ke..

Mr. & Mrs.'55 is a 1955 Bollywood film by director Guru Dutt. Guru Dutt stars alongside Madhubala,
supported by Lalita Pawar, Johnny Walker and Jagdeep in this socially critical romantic comedy set in
contemporary Bombay. The films music is by O. P. Nayyar and lyrics by Majrooh Sultanpuri.

Storyline :-
Preetam (Guru Dutt), a struggling cartoonist, meets Anita (Madhubala) at a tennis match, where she is watching her favorite tennis star. Anita, a wealthy and westernized heiress is controlled by her feminist aunt, Sita Devi (Lalita Pawar). Sita is suspicious of men, and cultivates her attitudes in Anita. However, to receive her fortune, her father's will decrees that Anita must marry within one month of turning 21. Sita Devi doesn't agree with this, and tries to set Anita up with a sham marriage which will soon lead to divorce, thereby giving her both freedom and a fortune. Sita hires Preetam to marry Anita, but doesn't know that the pair have already met. Preetam is kept from Anita after their marriage, but he kidnaps her and takes her to the traditional house of his brother.

While at the house, Anita befriends Preetam's sister-in-law, and begins to see the merit in becoming a traditional Indian wife. Preetam is worried that he has lost Anita, and expedites their divorce by providing false, incrimiating evidence to the court. Preetam then leaves Mumbai, heartbroken. Anita now recognizes her feelings for Preetam and rushes to meet him at the airport. In the end, the couple is reunited.

Trivia :- Cartoons in the movie are drawn by famous cartoonist R. K. Laxman.[1] Both of the film's leading stars Guru Dutt and Madhubala died at a relatively young age in the 1960s.
It is surmised that Guru Dutt committed suicide in 1964 at the age of thirty-nine but some believe it was accidental overdose of sleeping pills and alcohol. Madhubala died four years later in 1969 of a heart ailment at the age of 36.

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

किसी ने अपना बना के मुझ को, मुस्कुराना सिखा दिया

अंधेरे घर में किसी ने हस के, चिराग जैसे जला दिया
Song: Kisi ne apna banaa ke mujhko.. Movie: Patita (1953), 
Singer : Lata Mangeshkar, 
Lyricist :Shailendra, 
Music Director : 
Shankar Jaikishan, 
Cast : Dev Anand, Usha Kiran,Agha,Lalita Pawar, 
Produced/Directed by Amiya Chakrabarty, Mars & Movies Productions, 
Lyrics :-किसी ने अपना बना के मुझ को, मुस्कुराना सिखा दिया
अंधेरे घर में किसी ने हस के, चिराग जैसे जला दिया

शरम के मारे मैं कुछ ना बोली, नज़र ने परदा गिरा दिया
मगर वो सबकुछ समझ गये हैं , के दिल भी मैने गवाँ दिया

ना प्यार देखा, ना प्यार जाना, सुनी थी लेकिन कहानियाँ
जो ख़्वाब रातों में भी ना आया, वो मुझ को दिन में दिखा दिया 

वो रंग भरते हैं जिंदगी में, बदल रहा हैं मेरा जहाँ
कोई सितारें लूटा रहा था, किसी ने दामन बिछा दिया

Storyline :- Radha [usha kiran]earns a living begging in order to support herself and her crippled and ailing father. They live in a small tenement, under the constant threat of eviction by their landlord for unpaid rent for several months. One day, while begging, Radha meets a young man, Nirmal Chander[Dev anand], who would like to see her improve her status by getting employment, he even goes to the extent of assisting her find work in a mill. He subsequently invites her over to meet his mother, and asks her to marry him, to which she agrees. Nirmal also seeks the permission of her dad. When he goes to get her to make arrangements for their marriage, he finds her and her dad gone. His attempts to locate her are in vain. Then after several months he finds her living in a small dilapidated hut with a young man named Mastram and a child - she calls her own - but claims that she is unmarried. Who is the biological father of this child? Where is he located?...

The Naxalites_Part1-Mithun, Smita Patel classic

ख्वाज़ा अहमद अब्बास की  कहानी पर आधारित एक ऐतिहासिक फ़िल्म जिसने इसके कई पहलू दिखाए 
Uploaded on Aug 20, 2008
THE NAXALITES (MERA INQUILAB) LAND OF DEPRIVED AND DISPOSSESSED Producer/Director: K.A Abbas Music: Prem Dhawan Officially Release: 1980 Language: Hindi and Bengali Cast:  Mithun Chakraborty, Smita Patil, Nana Palisker Jalal Agha, Tinu Anand, Dina Pathak, Imtiaz khan, Dilip Raj Pinchoo Kapoor, Yunus Parvez, Jawaharlal Kaur To read the full review visit the link: http://www.maadhukari.com/misc/the-na...

शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

मुझे प्यार की जिंदगी देने वाले


Uploaded on Nov 9, 2009
PYAR KA SAGAR
Lyrics provided by MoleculaRafian (Thanks a lot )
Lyrics :Prem Dhawan
Music: Ravi
Mujhe pyaar ki Zindagi dene wale-2
Kabhi ghum na dena khooshi dene wale
Mujhe pyaar ki zindagi dene wale

Mohabbat ke wade bhoola to na doge
Kahin mujh se daman chooda to na loge

Mohabbat ke wade bhoola to na doge
Kahin mujh se daman chooda to na loge
Mere dil ki duniya hain tere hawale

Mujhe pyaar ki Zindagi dene wale
Kabhi ghum na dena khooshi dene wale
Mujhe pyaar ki zindagi dene wale

Zamane men tum se nahin koi pyaara aaaaa
Zamane men tum se nahin koi pyaara
Ye jaan bhi tumhari, ye dil bhi tumhara
Jo na ho yakeen to kabhi aajhama le

Mujhe pyaar ki Zindagi dene wale

Bharosa hai hum ko muhabbat pe teri -2
To phir hans ke dekho nigahon men meri
Ye dar hai zamana juda kar na dale


Mujhe pyaar ki Zindagi dene wale
Kabhi ghum na dena khooshi dene wale
Mujhe pyaar ki zindaghi dene wale-2

तुम अगर भूल भी जाओ तो यह हक है तुमको--

मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है 

Uploaded on May 15, 2009
Movie : Didi दीदी( 1959 ) Music Director : Sudha Malhotra
Lyricist : Legendary urdu poet Sahir Ludhianvi
ज़िन्दगी सिर्फ मुहब्बत नहीं  
कुछ और भी है
जुल्फ ओ रुखसार की जन्नत नहीं
कुछ और भी है
भूख और प्यास की
मारी हुई इस दुनिया में
इश्क ही एक हकीकत नहीं
कुछ और भी है...
Singers : Sudha Malhotra and Mukesh
Song : Tum Mujhe Bhool Bhi Jaao
Music : N.Dutta
Actors : Sunil Dutt, Shobha Khote, jayshree ,firoz khan ,Lalita Pawar
Lyrics :-
tum mujhe bhool bhi jaao to
ye haq hai tumko
meri baat aur hai
maine to muhabbat ki hai
tum mujhe bhool bhi jaao to
ye haq hai tumko

mere dil ki mere jazbaat ki
keemat kya hai
uljhe uljhe se khayalaat ki
keemat kya hai

maine kyun pyaar kiya
tumne na kyun pyaar kiya
in pareshaan sawalaat ki
keemat kya hai

tum mujhe bhool bhi jaao to
ye haq hai tumko
meri baat aur hai
maine to muhabbat ki hai

tum mujhe bhool bhi jaao to
ye haq hai tumko
tum mujhe bhool bhi jaao to
ye haq hai tumko

zindagi sirf muhabbat nahi
kuchh aur bhi hai
zulf o rukhsaar ki jannat nahi
kuchh aur bhi hai

bhookh aur pyaas ki
maari hui is duniya mein
ishq hi ek haqeeqat nahi
kuchh aur bhi hai

tum agar aankh churaao to
ye haq hai tumko
maine tumse hi nahi
sabse muhabbat ki hai
tum agar aankh churaao to
ye haq hai tumko

tum ko duniya ke ghum o dard se
fursat na sahi
sab se ulfat sahi
mujhse hi muhabbat na sahi

main tumhaari hoon
yahi mere liye kya kam hai
tum mere ho ke raho
ye meri kismat na sahi
aur bhi dil ko jalaao
ye to haq hai tumko

meri baat aur hai
maine to muhabbat ki hai
tum mujhe bhool bhi jaao to
ye haq hai tumko