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शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

नहीं रही मेरी मां की मां-दोराहा हुआ बेगाना सा

 दोराहा का नाम लेते ही काटेगी गहरी उदासी
दोराहा (लुधियाना): 8 फरवरी 2020: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::
एक गीत मेरे जन्म से भी बहुत पहले लोकप्रिय हुआ करता था-
नानी  अम्मा नानी अम्मा मान जाओ। 
छोड़ो भी यह गुस्सा 
ज़रा हंस के दिखाओ-
नानी अम्मा नानी अम्मा जाओ। 
लेकिन मेरी मां की मां अर्थात मेरी नानी गोबिंद कौर आज मुझसे हमेशां के लिए रूठ गई। सुबह सुबह पांच बज कर 12 मिनट पर मेरी नानी अम्मा की तबीयत कुछ बिगड़ी और सुबह सुबह 5:30 पर उसने हमेशां के लिए अलविदा कह दी। मौत उनको छीन के लेजा चुकी थी। अनहोनी हो चुकी थी। हम सभी भी दोराहा पहुंचे। उसी घर में जहां से कभी मेरी मां ने शादी के बाद का नया जीवन शुरू करने के लिए विदा ली थी। नानी ने उसे दुल्हन के लिबास में विदा किया था। फिर अचानक 10 जुलाई 2013 को मेरी मां कल्याण कौर सुबह सुबह करीब 3:30 बजे मुझे और मेरी बहन शीबा को हमेशां के लिए छोड़ गई। सुबह सुबह जब लोग भगवान की साधना तपस्या करते  हैं उस समय उसकी तबियत कुछ घबराई थी। उस ने मुझ से पानी ले कर दो घूंट पानी पिया और लेट गईं लेकिन हमेशां की नींद। मुझे यूं लगा था जैसे हम दोनों बहनों के हाथों से हमारा सारा संसार अचानक इतनी गहरी खामोशी से छिन  गया। मौत का मूक और भयावह चेहरा हमने पहली बार इतनी निकटता से देखा था। पापा भी उस समय लैपटॉप पर अपना काम कर रहे थे। हम में से कोई कुछ नहीं कर पाया। हम लुटे लुटे से सब देखते रह गए। उस असहनीय दर्द के समय नानी ने हमें बहुत हौंसला दिया। जब भी मन उदास होता हम दोराहा नानी के घर चले जाते। कुछ देर वहां रह कर ऐसे लगता जैसे मां से मुलाकात हो गई। हम खुश हो कर घर लौट आते। नानी का घर खुशी का घर बन गया था। मां से मुलाकात कराने वाला जादू का घर। आज उसी घर में नानी की मृत देह रखी थी। उदासी का माहौल। मासियां मामियां सब रो रहीं थीं। सब की तरह मैंने भी चादर हटा कर नानी का चेहरा देखा। यूँ लग रहा था जैसे नानी किसी गहरी नींद या गहरी समाधी में हो। दो चार आवाज़ें भी दी लेकिन नानी नहीं बोली। मैंने उस कमरे से बाहर आ कर देखा। आस पड़ोस के लोगों और रिश्तेदारों की भीड़ लगी थी। घर का एक एक कोना मुझे याद दिला रहा था यहां नानी हमें देसी घी के परांठे खिलाया करती थी। इस दीवार की तरफ नानी हमारे लिए खीर बनाया करती थी। उस कोने में नानी अचार से भरा बड़ा सा मर्तबान हमें घर के लिए बांध दिया करती थी। उन दीवारों को देख कर बहुत कुछ याद आया। कभी लगता बस इधर से आएंगे बीजी और कहेंगे कम से कम दो परांठे और खाओ। कभी लगता बीजी अभी अभी कमरे से निकलेंगे और कहेंगे खीर कम क्यों डाली पूरी प्लेट भर कर खाओ। लेकिन किसी न किसी के रोने पर हर बार कल्पना टूट जाती। बार बार हकीकत का भान होता कि अब बीजी कभी नहीं आएंगे। कालेज की पढ़ाई और मां के बिन घर चलाना आसान नहीं होता।  इसलिए मैं चाह कर भी काफी समय से नानी के पास नहीं जा पायी। आज जब चिता जल रही थी  अग्नि में से बीजी का चेहरा नज़र आने लगा। आवाज़ भी सुनाई देती महसूस हुई जैसे कह रहे हों अब आई हो! कुछ पहले आ जाती! 
अफ़सोस हम उस देश में हैं जहां ज़िंदगी के झमेले हमें वक़्त रहते एक दुसरे से मिलने भी नहीं देते। जैसे रोज़ी रोटी के लिए विदेशों में गए लोग भी किस न किसी का देहांत होने के समय अपने बज़ुर्गों के पास नहीं होते उसी तरह हम स्वदेश में रह कर भी छोटे छोटे झमेलों में उलझे रहते हैं। जब तक निकल पाते हैं तब तक बहुत देर हो  चुकी होती है जैसे कि मुझे हो गई। अभी तीन दिन पहले उनसे वीडीओ कॉलिंग पर बात हुई।  वह कमज़ोर तो दिख रहे थे लेकिन ऐसा तो नहीं लगता था कि वह हमेशां  के लिए चले जायेंगे। 
वास्तव में दुःखों का दीमक उन्हें भी बहुत पहले लग चूका था। इसका गम--उसका गम न जाने कितने गम। शायद यही हमारी सभी की नियति बन गई है। हम सभी के साथ भी यही होता है या फिर होने वाला होता है। पूरे परिवार को संभालने और बच्चों को सैट करने में उन्होंने लगातार संघर्ष किया। सभी बच्चों के शादी विवाह और पढ़ाई लिखाई कोई आसान काम नहीं था। उन्होंने उस समय में बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाई जब ज़माने की हवा बेटियों को पढ़ाने के खिलाफ चल रही थी। पूरे समाज के साथ टक्कर ले कर उन्होंने समाज के नव निर्माण में योगदान दिया। मुझे मेरी मां अपनी मां अर्थात मेरी नानी की बहुत सी बातें बताया करती थी। आज वह सभी बातें एक एक करके याद आ रही हैं लेकिन नानी के जाने बाद। काश यह सब पहले याद आ जाता। उनके होते होते याद आ जाता। मौत हमें कितना बेबस कर देती है और न जाने कितना कुछ याद भी दिला देती है। वही आज हम सभी के साथ भी हो रहा है।  
अंत में नानी मां को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए सन 1966 में आई फिल्म दादी मां का लोकप्रिय गीत सुनिए, देखिये और पढ़िए जिसे लिखा था जनाब मजरूह सुल्तानपुरी साहिब ने और संगीत से सजाया था रौशन जी ने। इस यादगारी गीत के लिए आवाज़ें थीं महेंद्र कपूर, मन्ना डे और ऊषा मंगेशकर जी ने। 
उसको नहीं देखा हमने कभी
पर इसकी ज़रुरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी
उसको नहीं देखा हमने कभी

इनसान तो क्या देवता भी
आँचल में पले तेरे
है स्वर्ग इसी दुनिया में
क़दमों के तले तेरे
ममता ही लुटाये जिसके नयन
ऐसी कोई मूरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत...

क्यों धूप जलाए दुखों की
क्यों गम की घटा बरसे
ये हाथ दुआओं वाले
रहते हैं सदा सर पे
तू है तो अँधेरे पथ में हमें
सूरज की ज़रुरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत...

कहते हैं तेरी शान में जो
कोई ऊँचे बोल नहीं
भगवान के पास भी माता
तेरे प्यार का मोल नहीं
हम तो यही जानें तुझसे बड़ी
संसार की दौलत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत  से अलग भगवान की सूरत क्या होगी--क्या होगी!
अभी कुछ लिखा नहीं जा रहा। वक़्त गुज़रने के साथ शायद इस सदमे को सहने की कुछ शक्ति मिले। अगली पोस्ट में मां के संघर्षों की चर्चा भी होगी और नानी के संघर्षों की भी। इस लिए नहीं कि वह मेरी मां और नानी हैं बल्कि इसलिए कि समाज को बदलने के लिए भी उन्होंने काफी कुछ किया। आज भी समाज को ऐसी महिलाओं  की सख्त  ज़रूरत है जो बदलाव के काम में योगदान दे सकें।  सह प्रयास--कार्तिका सिंह//शीबा सिंह 

शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

Death anniversary मिर्ज़ा ग़ालिब--जो आज भी अपनी शायरी में ज़िंदा हैं

ये ना थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
अगर  और  जीते  रहते   यही   इंतेज़ार  होता

  
Courtesy:Ministry of Information & Broadcasting//YouTube
15-02-2014 पर प्रकाशित मिर्ज़ा ग़ालिब 
The 145th death anniversary of classical Urdu and Persian poet Mirza Asadullah Baig Khan Ghalib is being observed throughout country with tributes paid to his selfless contribution in the urdu literature.
Ghalib was born on December 27, 1796 in the city of Akbarabad (present Agra).
He was an all-time great classical Urdu and Persian poet.
He wrote several ghazals during his life, which have since been interpreted and sung in many different ways by different people.
कहूं किस से मैं के क्या है, शब-ए-ग़म बुरी बाला है
मुझे   क्या   बुरा   था   मरना ?  अगर  एक   बार  होता

विकिपीडिया के मुताबिक मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” (27 दिसंबर 1796–15 फरवरी 1869) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। इनको उर्दू का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है और फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का भी श्रेय दिया जाता है । यद्दपि इससे पहले के वर्षो में मीर तक़ी मीर भी इसी वजह से जाने जाता है । ग़ालिब के लिखे पत्र, जो उस समय प्रकाशित नहीं हुए थे, को भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है। ग़ालिब को भारत और पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है । उन्हे दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला का खिताब मिला।
ग़ालिब (और असद) नाम से लिखने वाले मिर्ज़ा मुग़ल काल के आख़िरी शासक बहादुर शाह ज़फ़र के दरबारी कवि भी रहे थे । आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में अपनी ज़िन्दगी गुजारने वाले ग़ालिब को मुख्यतः उनकी उर्जू ग़ज़लों को लिए याद किया जाता है । उन्होने अपने बारे में स्वयं लिखा था कि दुनिया में बहुत से कवि-शायर ज़रूर हैं, लेकिन उनका लहजा सबसे निराला है:
“हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और”
ग़ालिब का जन्म आगरा मे एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था । उन्होने अपने पिता और चाचा को बचपन मे ही खो दिया था, ग़ालिब का जीवनयापन मूलत: अपने चाचा के मरणोपरांत मिलने वाले पेंशन से होता था (वो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी मे सैन्य अधिकारी थे)। ग़ालिब की पृश्ठभूमि एक तुर्क परिवार से धी और इनके दादा मध्य एशिया के समरक़न्द से सन् 1750 के आसपास भारत आए थे । उनके दादा मिर्ज़ा क़ोबान बेग खान अहमद शाह के शासन काल में समरकंद से भारत आये। उन्होने दिल्ली, लाहौर व जयपुर मे काम किया और अन्ततः आगरा मे बस गये। उनके दो पुत्र व तीन पुत्रियां थी। मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग खान व मिर्ज़ा नसरुल्ला बेग खान उनके दो पुत्र थे।
मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग (गालिब के पिता) ने इज़्ज़त-उत-निसा बेगम से निकाह करने किया और अपने ससुर के घर मे रहने लगे। उन्होने पहले लखनऊ के नवाब और बाद मे हैदराबाद के निज़ाम के यहाँ काम किया। 1803 में अलवर में एक युद्ध में उनकी मृत्यु के समय गालिब मात्र 5 वर्ष के थे।
जब ग़ालिब छोटे थे तो एक नव-मुस्लिम-वर्तित ईरान से दिल्ली आए थे और उनके सान्निध्य में रहकर ग़ालिब ने फ़ारसी सीखी। 
हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों ना ग़र्क़-ए-दरिया
ना  कभी जनाज़ा  उठता, ना  कहीं  मज़ार होता

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

फ़िल्म जगत के एक और युग का अंत: नहीं रही सुचित्रा सेन

Veteran film actress Suchitra Sen passes away

Courtesy:INBMINISTRY//YouTube
17-01-2014 पर प्रकाशित 
Suchitra Sen was a legendary actress who ruled Bengali cinema for decades. Her powerful roles in films were highly acclaimed and will be remembered by generations of film lovers. During her illustrious career she was not only a recipient of Padma Shri Award but also became the first Bengali actress who was awarded 'Best Actress Award' at an international film festival. Her sad demise is a huge loss to the Indian film industry, particularly Bengali Cinema".

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

जहाँ इक खिलौना हैं, इन्सां की हस्ती

          यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती 
--सोनू यादव का अंतिम संस्कार
 
बाल दिवस अर्थात  चाचा नेहरू का जन्म दिन। स्व्तंत्रता के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री का जन्म दिन। ख़ुशी का दिन। उत्साह का दिन। बच्चों से नए वायदे करने का दिन और पुराने वायदे पूरे करने का दिन। लेकिन
इस दिन से एक दिन पूर्व रोज़ी रोटी के दुःख में अपना घर परिवार छोड़ कर लुधियाना में आया सोनू यादव इसी शहर के एक श्मशान घाट में हमेशां के लिए आग में राख हो गया।  न उसके जीवन काल में ही उसे कोई सुख मिला था और न ही उसके मरने के बाद उसके परिवार को कोई दिलासा देने आया। राजनीतिक दलों, समाजिक संगठनों और ट्रेड यूनियनों से भरे हुए इस शहर में कोई उसका हाल पूछने नहीं आया। गौरतलब है कि रविवार दस नवंबर 2013 को उसके फेक्ट्री मालिक ने उसे पीट पीट कर मार डाला था।  पुलिस ने दफा 302/34 आईपीसी के अंतर्गत मामला भी दर्ज किया, एक दिन की देरी से अख़बारों में खबरें भी छपीं लेकिन सोनू का अंतिम संस्कार करते समय या तो उसका परिवार था या फिर उसके मज़दूर साथी। अंतिम संस्कार देर शाम को अँधेरा होने पर हुआ शायद उस वक़त सूर्य भी अस्त हो चुका था। याद आ रही है जनाब साहिर लुधियानवी साहिब की पंक्तियाँ:
जहाँ इक खिलौना हैं, इन्सां की हस्ती
ये बस्ती हैं मुर्दा परस्तों की बस्ती
यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती 
ये दुनियाँ अगर मिल भी जाये तो क्या हैं.....---!

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013

ਮੰਨਾ ਡੇ ਦੇ ਕੁਝ ਚੁਣੇ ਹੋਏ ਗੀਤ//मन्ना डे के कुछ चुने हुए गीत

                                                                                              ਮੰਨਾ ਡੇ ਹੁਣ ਸਾਡੇ ਦਰਮਿਆਨ ਨਹੀਂ ਰਹੇ

Published on Apr 29, 2013
Prabodh Chandra Dey (1st May 1919 - 24th October 2013) better known by his nickname Manna Dey, was a playback singer in Hindi, Bengali, Gujarati, Marathi, Malayalam, Kannada, Assamese films. The Government of India honoured him with the Padma Shri in 1971, the Padma Bhushan in 2005 and the Dadasaheb Phalke Award in 2007. Along with Mohammed Rafi, Kishore Kumar, Mukesh he was a part of Indian film playback music industry. He is rated as the best classical singer among all singers of Hindi film music, though he sang various types of songs from pop to folk. He has recorded more than 3500 songs over the course of his career.
Listen and Enjoy the Best Of Manna Dey Songs and Share it across.
Track Details:
1. Zindagi Kaisi Hai Paheli
2. Tujhe Suraj Kahoon Ya Chand
3. Nadiya Chale Chale Re Dhara
4. Chalat Musafir
5. Yeh Raat Bheegi Bheegi
6. Gori Tori Paijaniya
7. Na Mangun Sona Chandi
8. Poochho Na Kaise Maine
9. Apne Liye Jiye To Kya Jiye
10.Raat Gayi Phir Din Aata Hai

Laga Chunri Mein Daag Chhupaun Kaise ..Manna Dey

                                                                                               ਮੰਨਾ ਡੇ ਹੁਣ ਸਾਡੇ ਦਰਮਿਆਨ ਨਹੀਂ ਰਹੇ

Uploaded on Jul 8, 2009
Song :Laaga chunari mein daag chhupaun kaise
Movie : Dil Hi To Hai
Singer : Manna Dey (Prabodh Chandra Dey ) : The modest musical maestro ....a flawless singer
Lyricist : Sahir Ludhianvi
Actors : Raj Kapoor , Nutan ,Pram
Music Director : Roshan and Omi Sonik


About Manna Dey :-
Prabodh Chandra Dey (born May 1, 1919), better known by his nickname Manna Dey (Bengali: মান্না দে Manna De), is one of the greatest playback singers of all time in Hindi films and other vernacular Indian films, especially Bengali.
Manna dey was born to Purna Chandra (father) and Mahamaya Dey (mother)on 1 May, 1919. Besides his parents, his youngest paternal uncle Sangeetacharya (meaning "Venerable Teacher of Music" in Sanskrit) K. C. Dey highly inspired and influenced him. Manna received his early education in a small pre-primary school named Indu Babur Pathshala. Thereafter he attended Scottish Church Collegiate School and Scottish Church College, followed by Vidyasagar College where he received his graduate education. From his childhood, Manna showed a keen liking for wrestling and boxing, and excelled in both sports. He has a jovial personality and likes to play pranks on people once in a while.
His experimentation with western music has produced some unforgettable melodies. He has recorded more than 3500 songs.

On December 18, 1953, Manna Dey married Sulochana Kumaran from Kerala. They have two daughters: Shuroma, born on October 19, 1956, and Sumita, born on June 20, 1958.

Manna Dey currently lives in Bangalore in the township of Kalyannagar after spending more than fifty years in Bombay. He also maintains a Calcutta address. He still travels widely in the world to present musical programs.

Renowned singer, Mohammad Rafi, once said to reporters: "You listen to my songs. I listen only to Manna Dey's songs".[citation needed] According to musicians Sachin Dev Burman and Anil Biswas, Manna Dey could sing any song of Mohammad Rafi, Kishore Kumar, Mukesh and Talat Mehmood.

Manna Dey has been honored with the titles Padma Shri and Padma Bhushan.

2004 National Award as Playback singer by Government of Kerala
2004 D. Litt Honouris Causa three times by various Universities
2005 Life Time Achievement award by Government of Maharashtra

*Manna Dey: The modest musical maestro ....a flawless singer 

Lyrics : 
laaga chunari mein daag
chunari mein daag chhupaun kaise
ghar jaun kaise
laaga chunari mein daag chhupaun kaise
laaga chunari mein daag

ho gayi maili mori chunariya
kore badan si kori chunariya
ho gayi maili mori chunariya
kore badan si kori chunariya
jaake babul se nazrein milaaun kaise ghar jaun kaise
laaga chunari mein daag chhupaun kaise
laaga chunari mein daag chhupaun kaise
laaga chunari mein daag

bhool gayi sab vachan bida ke
kho gayi main sasuraal mein aake
bhool gayi sab vachan bida ke
kho gayi main sasuraal mein aake
jaake babul se nazrein milaaun kaise ghar jaun kaise
laaga chunari mein daag

kori chunariya aatma mori
mail hai maaya jaal
kori chunariya aatma mori
mail hai maaya jaal
wo duniya more babul ka ghar
ye duniya sasuraal
haan jaake babul se nazrein milaaun kaise ghar jaun kaise
laaga chunari mein daag chhupaun kaise
laaga chunari mein daag chhupaun kaise
laaga chunari mein daag laaga chunari mein daag

रविवार, 13 अक्टूबर 2013

नहीं रहे लुधियाना के दिग्गज सियासतदान हरीश बेदी

ਹਰੀਸ਼ ਬੇਦੀ ਹੁਰਾਂ ਨਾਲ ਇੱਕ ਮੁਲਾਕਾਤ ਯੂਟਿਊਬ ਤੋਂ ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ

                                         हरीश बेदी से एक भेंटवार्ता Youtube से साभार  
लुधियाना: 13 अक्टूबर 2013: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो): लुधियाना के एक दिग्गज हरीश बेदी सियासतदान अब नहीं रहे। सुबह  सुबह करीब साढ़े तीन बजे हैबोवाल में आयोजित एक धार्मिक कार्यक्रम से लौटने लगे तो  दरवाज़ा खोलते ही  उन्हें साइलेंट हार्ट अटैक हुआ। उनके पारिवारिक   सूत्रों ने बताया कि उन्हें तुरंत डी एम् सी अस्पताल  चार बजते बजते उनके देहांत की दुखद  गयी। अपने जीवन की इस आखिरी रात्रि को श्री बेदी ने तीन चार विवाह उत्सव और तीन चार धार्मिक कार्यक्रमों में भी शमूलियत की पर हैबोवाल का कार्यक्रम उनके जीवन का आखिरी कार्यक्रम  साबित हुआ। परसों मंगलवार 15 अक्टूबर 2013 को सुबह गौशाला श्मशानघाट में रस्म चौथा होगी और उनके फूल चुने जायेंगे। इस दुखद अवसर पर हम एक भेंटवार्ता प्रस्तुत कर रहे हैं जो यूट्यूब से साभार ली गई है। --रेक्टर कथूरिया

पूरी खबर यहाँ देखें: नहीं रहे दिग्गज सियासतदान हरीश बेदी:चौथा मंगलवार को 

रविवार, 4 अगस्त 2013

ਮਾਏ ਨੀਂ ਮਾਏ ਮੇਰੇ ਗੀਤਾਂ ਦੇ ਨੈਣਾਂ ਵਿੱਚ ਬਿਰਹੋਂ ਦੀ ਰੜਕ ਪਵੇ !

ਅਧੀ ਅਧੀ ਰਾਤੀਂ......
ਉਠ ਰੋਣ ਮੋਏ ਮਿੱਤਰਾਂ ਨੂੰ
ਮਾਏ ਸਾਨੂੰ ਨੀਂਦ ਨਾ ਪਵੇ!

ਨਹੀਂ ਰਹੀ
ਪੰਜਾਬ ਸਕਰੀਨ ਦੀ
ਸਰਗਰਮ ਸੰਚਾਲਿਕਾ
ਕਲਿਆਣ ਕੌਰ
 
-------
ਆਖ ਮਾਏ ਅਧੀ ਅਧੀ ਰਾਤੀਂ
ਮੋਏ ਮਿੱਤਰਾਂ ਦੇ
ਉਚੀ ਉਚੀ ਨਾਂ ਨਾ ਲਵੇ !


ਮਾਏ ਨੀਂ ਮਾਏ
ਮੇਰੇ ਗੀਤਾਂ ਦੇ ਨੈਣਾਂ ਵਿੱਚ 
ਬਿਰਹੋਂ ਦੀ ਰੜਕ ਪਵੇ !
ਅਧੀ ਅਧੀ ਰਾਤੀਂ......
ਉਠ ਰੋਣ ਮੋਏ ਮਿੱਤਰਾਂ ਨੂੰ
ਮਾਏ ਸਾਨੂੰ ਨੀਂਦ ਨਾ ਪਵੇ!
ਆਪੇ ਨੀਂ ਮੈ ਬਾਲੜੀ 
ਮੈਂ ਹਾਲੇ ਆਪ ਮੱਤਾਂ ਜੋਗੀ
ਮੱਤ ਕਿਹੜਾ ਏਸ ਨੂੰ ਦਵੇ?
ਆਖ ਸੂ ਨੀਂ ਮਾਏ ਇਹਨੂੰ 
ਰੋਵੇ ਬੁੱਲ੍ਹ ਚਿਥ ਕੇ ਨੀਂ
ਜੱਗ ਕਿਤੇ ਸੁਣ ਨਾ ਲਵੇ!
ਆਖ ਮਾਏ ਅਧੀ ਅਧੀ ਰਾਤੀਂ
ਮੋਏ ਮਿੱਤਰਾਂ ਦੇ
ਉਚੀ ਉਚੀ ਨਾਂ ਨਾ ਲਵੇ !
ਮਤੇ ਸਾਡੇ ਮੋਇਆਂ ਪਿਛੋਂ 
ਜੱਗ ਇਹ ਸ਼ਰੀਕੜਾ  ਨੀਂ
ਗੀਤਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਚੰਦਰਾ ਕਵੇ!
ਮਾਏ ਨੀਂ ਮਾਏ 
ਮੇਰੇ ਗੀਤਾਂ ਦਿਆਂ ਨੈਣਾਂ ਵਿਚ
ਮਾਏ ਨੀਂ ਮਾਏ............!!

चिठ्ठी न कोई संदेश जाने वोह कौन सा देश

जहाँ तुम चले गए SUNG BY JAGJEET SINGH 
एक आह भरी होगी, हमने ना सुनी होगी...
जाते जाते तुमने आवाज़ तो दी होगी 
नहीं रही पंजाब स्क्रीन
की सक्रिय संचालिका 

सुश्री कल्याण कौर

चिठ्ठी ना कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए...
इस दिल पे लगा कर ठेस, जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए !?

एक आह भरी होगी, हमने ना सुनी होगी...जाते जाते तुमने आवाज़ तो दी होगी 
हर वक़्त यही है गम, उस वक़्त कहा थे हम ... कहॉ तुम चले गए !?

हर चीज़ पे अश्कों से लिखा है तुम्हारा नाम...
ये रस्ते घर गलियां, तुम्हें कर ना सके सलाम..
हाय ! दिल में रह गयी बात, जल्दी से छुड़ा कर हाथ कहॉ तुम चले गए !?

अब यादों के कांटें, इस दिल में चुभतें हैं..
ना दर्द ठेहरता है, ना आंसू रुकतें हैं ..
तुम्हें ढूंढ़ रहा है प्यार, हम कैसे करें इकरार के हां तुम चले गए !

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

Jo Wada Kiya Wo Nbhana Padega- Taj Mahal

Uploaded on Mar 22, 2008
पंजाब स्क्रीन की
स्वर्गीय संचालिका
कल्याण कौर 
Movie Name: Taj Mahal (1963)
Singer: Lata Mangeshkar, Mohd Rafi
Music Director: Roshan
Lyrics: Sahir Ludhianvi
Year: 1963
Producer: Pushpa Pictures
Director: Sadiq M
Actors: Beena Roy, Helen, Jeevan, Mohan Choti, Pradeep Kumar, Rehman, Veena Kumari

Jo Vaadaa Kiyaa Vo Nibhaanaa Pa.Degaa
Roke Zamaanaa Chaahe Roke Khudaaii Tumako Aanaa Pa.Degaa
Jo Vaadaa...

Tarasatii Nigaaho.N Ne Aavaaz Dii Hai
Muhabbat Kii Raaho.N Ne Aavaaz Dii Hai
Jaan\-E\-Hayaa, Jaan\-E\-Adaa Chho.Do Tarasaanaa Tumako Aanaa Pa.Degaa
Jo Vaadaa...

Ye Maanaa Hame.N Jaa.N Se Jaanaa Pa.Degaa
Par Ye Samajh Lo Tumane Jab Bhii Pukaaraa Hamako Aanaa Pa.Degaa
Jo Vaadaa...

Ham Apanii Vafaa Pe Naa Ilazaam Le.Nge
Tumhe.N Dil Diyaa Hai Tumhe Jaa.N Bhii De.Nge
Jab Ishq Kaa Saudaa Kiyaa Phir Kyaa Ghabaraanaa Tumako Aanaa Pa.Degaa
Jo Vaadaa...

Chamakate Hai.N Jab Tak Ye Chaa.Nd Aur Taare
Na Tuute.Nge Ab Ehad\-O\-Paimaa.N Hamaare
Ik Duusaraa Jab De Sadaa Hoke Diivaanaa Hamako Aanaa Pa.Degaa
Jo Vaadaa...

Hamaarii Kahaanii Tumhaaraa Fasaanaa
Hameshaa Hameshaa Kahegaa Zamaanaa
Kaise Bhalaa Kaisii Sazaa Dede Zamaanaa Hamako Aanaa Pa.Degaa
Jo Vaadaa...

Sabhii Ehal\-E\-Duniyaa Ye Kahatii Hai Hamase
Ki Aataa Nahii.N Koii Mu.Dake Adam Se
Aaj Zaraa Shaan\-E\-Vafaa Dekhe Zamaanaa Tumako Aanaa Pa.Degaa
Jo Vaadaa...

Bahut Jii Lagaayaa Zamaane Se Hamane
Bahut Vaqt Kaataa Bahaane Se Hamane
Jab Se Huaa Tumase Judaa Ye Dil Na Maanaa Tumako Aanaa Pa.Degaa
Jo Vaadaa Kiyaa

Ham Aate Rahe Hai.N Ham Aate Rahe.Nge
Muhabbat Kii Rasame.N Nibhaate Rahe.Nge
Jaan\-E\-Vafaa Tum Do Sadaa Fir Kyaa Thikaanaa Hamako,
Aanaa Pa.Degaa
Jo Vaadaa...

ਜੋ ਬਾਤ ਤੁਝਮੇਂ ਹੈ ਤੇਰੀ ਤਸਵੀਰ ਮੇਂ ਨਹੀਂ !

ਫਿਰ ਏਕ ਬਾਰ ਸਾਮਨੇ ਆ ਜਾ ਕਿਸੀ ਤਰਹ !
ਪੰਜਾਬ ਸਕਰੀਨ ਦੀ ਸੰਚਾਲਿਕਾ ਸਵਰਗੀ ਪਤਨੀ ਕਲਿਆਣ ਕੌਰ ਦੀ ਯਾਦ ਨੂੰ ਸਮਰਪਿਤ ਫਿਲਮ ਤਾਜ ਮਹਿਲ ਦਾ ਇੱਕ ਗੀਤ: -ਰੈਕਟਰ ਕਥੂਰੀਆ 

Jo Baat Tujh Mein Hai Terii Tasviir Men Nahiin, Tasviir Mein Nahiin
Jo Baat Tujh Mein Hai
Rangon Mein Teraa Aks Dhalaa, Tuu Na Dhal Sakii
Saanson Kii Aanch Jism Kii Kushabuu Na Dhal Sakii
Tujh Men, Tujh Men Jo Loch Hai Terii Tahariir Men Nahiin
Tahariir Men Nahiin
Jo Baat Tujh Men Hai Terii 
Bejaan Husn Men Kahaan Raftaar Kii Adaa
Inakaar Kii Adaa Hai Na Iqaraar Kii Adaa
Koii, Koii Lachak Bhii Zulf-E-Girahagiir Men Nahiin
Jo Baat Tujh Men Hai Terii 
Duniyaa Men Koi Chiiz Nahiin Hai Terii Taraha
Phir Ek Baar Saamane Aa Jaa Kisii Taraha
Kyaa Aur, Kyaa Aur Ek Jhalak Merii Taqadiir Men Nahiin
Taqadiir Men Nahiin
Jo Baat Tujh Men Hai Terii