Sahir लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Sahir लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 16 नवंबर 2015

Nikle The Kahan Jane Ke Liye

Pahunche hain kahan Maloom Nahin 

Courtesy:Ultra Hindi //YouTube: Film: Bahu Begum Singer(s)Asha Bhosle Music ByRoshan
Lyricist(s): Sahir Ludhianvi
अपने ज़माने का हिट गीत जो हर गली के हर मोड़ पर दिलों को झंक्झोरता हुआ अपनी तरंगें छोड़ जाता था। ज़िंदगी और प्रेम की नाकामियों से गुज़रते हर नौजवान को यह गीत अपना अपना
सा लगता। हर बुज़ुर्ग अपनी गुज़र चुकी नाकाम ज़िंदगी का दर्द इस गीत के ज़रिये गुनगुनाता।  साहिर साहिब ने तोइसे कई बार जिया था। हर कदम पर इसे महसूस किया था। सं १९६७ में आई इस हिंदी फिल्म बहु बेगम के निर्देशक थे-एम सादिक और संगीत तैयार किया था-रौशन ने। फिल्म के सितारों में थे प्रदीप कुमार, मीना कुमारी और अशोक कुमार। लखनऊ की पृष्टभूमि और माहौल में इस फिल्म की कहानी उस दौर के मज़बूत थीम पर थि. प्रेम कहीं और हो जाना और शादी कहीं और। फिल्म में हर कलाकार ने अपना किरदार बहुत ही जानदार तरीके से निभाया। ज़िंदगी के दोराहे और दुविधा को इस गीत में बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है। अहसास को सादगी भरे शब्दों में महसूस करने वाले जनाब साहिर साहिब ने इस दर्द को हर दिल में उतार दिया था। 

Nikle the kaha jane ke liye, pahunche hai kaha malum nahi
Abb apne bhatkate kadmo ko, manjil kaa nisha malum nahi

Hamne bhi kabhi iss gulshan me, ek khwabe bahara dekha tha
Kab phul jhare kab gard udi, kab aayi khija malum nahi

Dil shola e gham se khak huwa, ya aag lagi aramano me
Kya chiz jali kyon sine se utha hai dhuwa malum nahi

Barabad wafa kaa afasana ham kise kahe, aur kaise kahe
Khamosh hain lab, aur dooniya ko ashko ki juban malum nahi


Ashok Kumar as Nawab Sikander Mirza
Pradeep Kumar as Yusuf
Meena Kumari as Zeenat Jahan Begum
Lalita Pawar as Naziran Bai
Jhonny Walker as Achchan
Naaz as Suraiya
Zeb Rehman as Bilqees
D.K. Sapru as Nawab Mirza Sultan
Indira Bansal as Shafugupta Begum
Durrani
Rajan Haksar as Nawab Pyare Miya
Shahid Bijnori
Helen as Courtesan

सोमवार, 3 मार्च 2014

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वे कहाँ हैं

वह गीत जिस के साथ शुरू हुआ सत्ता और साहिर का टकराव 

बहुत से पुराने लोग बताया करते थे जब जनाब साहिर लुधियानवी ने मंच पर इस गीत को प्रस्तुत किया तो वहाँ उस समय के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू भी मौजूद थे। उन्होंने इस गीत की कड़वी हकीकत को खुद पर आघात समझा और साहिर से नाराज़ हो गए। जब यह गीत फ़िल्म प्यासा में शामिल किया गया तो इस की मुख्य पंक्ति स्नखाने-तक़दीसे मशरिक कहाँ है को बदल कर कुछ आसान कर दिया गया----जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वे कहाँ हैं---आज भी इस गीत का सच अंतर्मन को हिला देता है---और सवाल उठने लगता है हम किस भारत को महान कहे जा रहे हैं---अगर महानता के इस दावे में आज़ादी के इतने बरसों के बाद भी वह सब शामिल है जो इस गीत में है तो मुझे इस महानता की बात कहते हुए शर्म आती है---!
                                                                -रेकटर कथूरिया //पंजाब स्क्रीन//098882 72025)
05-09-2011 को अपलोड किया गया
First time saw this movie on Doordarshan tv in 1977 and same day theives tried to break in our house. How can I forget these two things in my life. Introduction of Guru Dutt to my filmi knowledge was very new and surpiring to me. And this masterpiece took top spot on my best movies chart.