Festivals लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Festivals लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 30 दिसंबर 2023

बिछ्ड़ी आत्मा ही निरंतर प्रेरणा बनी हुई है फिल्म मेकर परिवार की

शार्ट फिल्म ''पिंक लिटिल सांता'' ने हिमाचल फिल्म फेस्टिवल में भी बिखेरा अपना रंग

जीवन संगिनी के नाम पर ही रखा प्रोडक्शन हाउस का नाम

पत्नी के साथ बिताये 26 वर्षों के साथ को आज भी बरक़रार रखे हुए एस. पी. सिंह  

चंडीगढ़30 दिसंबर, 2023: (कार्तिका कल्याणी सिंह/पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::

हम चीज़ों को, दुनिया को और लोगों को अपनीं आँखों और अपनी समझ के अनुसार देखते हैं। जैसे हम अंदर से होंगे, वैसे ही हमें दुनिया नज़र आएगी।  जैसे अध्यात्म में वो कथन है-जो ब्रहमंडे, सोई पिंडे; जो खोजै, सो पावै ॥ अर्थात वो सब कुछ जो इस ब्रह्माण्ड में है वो हमारे अंदर भी है। जिन चीज़ों को हम बाहर  ढूंढ रहे हैं, वो असल में हमारे भीतर ही मौजूद हैं।  जिस खुशी और आनंद को हम दूसरों में खोजते हैं, वो हमारे अंदर ही समाया हुआ है। ये सारे सुख, खुशियां, आनंद,  सारे ही ब्रह्माण्ड, अनगिनत सूरज, तारे, धरतियां सब हमारे अंदर ही है। बस ज़रुरत है तो खुद को खोजने की। खुद को जानने की। खुद को समझने की।  इसे जानने और समझने की प्रक्रिया साधना बन जाती है। वही कोशिश ध्यान बन जाती है। तब उस गीत का मर्म भी समझ में आने लगता है जो वर्ष 1963 में आई फिल्म ताजमहल में था। गीत का मुखड़ा था-जब वायदा किया वो निभाना पड़ेगा..!

इसका संगीत तैयार किया था जानेमाने संगीतकार रोशन साहिब ने और गीत लिखा था ख्यालों की दुनिया तक जादुई उड़ान भरने में माहिर समझे जाने वाले शायर जनाब साहिर लुधियानवी साहिब ने। 
उस पर आवाज़ का जादू था जनाब मोहम्मद  साम्राज्ञी लता मंगेशकर  साहिबा का। 
गीत की शुरुआत में ही इश्क का दावा था। एक पुकार भी थी। वह पुकार जिसमें एक आदेश जैसा भाव भी। था 

जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा
रोके ज़माना चाहे, रोके खुदाई, तुमको आना पड़ेगा
इसके बाद इस पुकार में तड़प और मिन्नत भी है जब गीत के बोल सुनाई देते हैं:
तरसती निगाहों ने आवाज दी है
मोहब्बत की राहों ने आवाज दी है
जान-ए-हया, जान-ए-अदा छोड़ो तरसाना
तुमको आना पडेगा...
इसके बाद हुसन और मोहब्बत  वायदा भी सुनवाया जाता है:
हम अपनी वफ़ा पे ना इलज़ाम लेंगे
तुम्हें दिल दिया है, तुम्हें जां भी देंगे
जब इश्क का सौदा किया, फिर क्या घबराना
हमको आना पड़ेगा
जो वादा किया वो...
इससे आगे वाले अन्तरे में भी इसी वायदे को दृढ़ शब्दों में दोहराया गया है, ज़रा देखिए कुछ बोल:
चमकते हैं जब तक ये चाँद और तारे
ना टूटेंगे अब ऐह दो पैमां हमारे
एक दूसरा जब दे सदा, हो के दीवाना
हमको आना पड़ेगा
जो वादा किया वो...

लेकिन मौत तो हर बंधन तोड़ देती है। ज़िंदगी में कही सुनी बातें मौत के अंधेरों में अक्सर गुम हो जाती हैं। कौन लौट कर आता है उस  जहां  से? शायद कोई नहीं लौटता। अध्यात्म की दुनिया में ऐसी यकीन भरी सच्ची बातें ज़रुर मिलती हैं लेकिन वे भी बहुत कम।  जो साथी जीवित भी रह जाता है दुनिया केवल उनकी तड़प ही देख पाती है। यह एक ऐसी कड़वी हकीकत होती है जिसे जीवित बचा साथी हर पल तड़पने के बावजूद उसे स्वीकार नहीं कर पाता। शायद यही होती है मुहब्बत के करिश्मे को दर्शाने  वाली जादू भरी शक्ति। चिता की अग्नि में सब कुछ अपने सामने राख हो  चुका देखने के बाद भी एक उम्मीद कायम रहती है।  अस्थि-कलश को बहते पानी में बहा देने के बावजूद भी एक  यकीन सा बना रहता है। प्रकृति के नियम को चुनौती की  ही देती है। यमराज से टकराने की हिम्मत भी इसी से आती है। दरअसल कुछ बहुत ही कम विवाह ऐसे होते हैं जिन में रेडियो की तरह सच्चे प्रेमी की फ़्रीकुएंसी जुड़ जाती है। तब कहीं जा कर ऐसे प्रेमी और प्रेमिका सच्चे पति पत्नी बन पाते हैं। वर्ण तो दुनिया नफे नुकसान और औपचारिकताओं में उलझ कर ही समाप्त हो जाती है।  शायद  यही होता है मानव जीवन का मिलना भी और व्यर्थ भी चले जाना। फ़्रीकुएंसी मिले बिना बने संबंध सचमुच जीवन को व्यर्थ जैसा कर देते हैं। जब फ्रीकवेंसी मिल जाती है, तो अलौकिक शक्तियां भी सहायक बन जाती हैं। इसका अहसास ऊपर दिए गीत के दूसरे भाग में है। 

हम आते रहे हैं, हम आते रहेंगे
मुहब्बत की रस्में निभाते रहेंगे
जान-ए-वफ़ा तुम दो सदा होके दीवाना
हमको आना पड़ेगा
जो वादा किया वो...

हमारी कहानी तुम्हारा फ़साना
हमेशा हमेशा कहेगा ज़माना
कैसी बला, कैसी सज़ा, हमको है आना
हमको आना पड़ेगा
जो वादा किया वो...

यह एक गहरी मेडिटेशन की अनुभूति है जिसे कहना, सुनना और समझना-समझाना शायद नामुमकिन जैसी कठिन बात हो सकती है। यह अनुभूति भी किस्मत से ही हो पाती है।  बस इसी ध्यान रुपी गंगा में डुबकी लगाने की एक विधि है, अपने काम में ही खो जाना। इस डुबकी के आनंद  और इसकी उपलब्धि को एक बार फिर कर दिखाया है फिल्म मेकर सम्राट सिंह।  मां ला बिछड़ना सम्राट सिंह के लिए असहनीय था। उसके प्रेरणा स्रोत पिता बब्बू सिंह के लिए भी नामुमकिन था जिन्हें हम स्नेह और सम्मान से एस पी सिंह  जानते हैं। 

इस हद तक मगन हो जाना कि न दुनिया की सुध रहे और न खुद की सेहत की। ऐसा ध्यान अपने काम में पूर्ण एकाग्रता के साथ ही आता है। जब आप में  और आप जो कर रहे हैं, दोनों भेद न रहे।  दोनों एक दूसरे में इतना संयोजित हो जाये कि कोई दोनों में भेद ढूंढ न पाए। चाहे आप को देखे या आप के काम को, दोनों ही अभिन्न लगें। जैसे नृत्य को नृत्यकार से अलग नहीं किया सकता। जैसे किसी कलाकार को उसकी कला से अलग नहीं सकता।  ऐसी साधना, ऐसा ध्यान ही साधने योग्य है।  

ऐसा ही ध्यान, कला जगत और रचनात्मकता से जुड़ा तकरीबन हर इंसान करता है। इसी कला जगत में फिल्में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। तमाम तरह के बैनर्स और बहुत बड़े बजट में बनने वाले फिल्मो से इतर शार्ट मूवीज का ट्रेंड आज कल बढ़ता है। कम बजट, दुगनी क्रिएटिविटी के साथ बनने वाली इन फिल्मों में समाज के कई मुद्दों से लेकर, अनदेखी कर दी जाने चीज़ें और ऑफ बीट टॉपिक्स को पहल दी जाती है।  कोरोना के दौरान  इन फिल्मों का दायरा काफी फ़ैल गया है।  ये फिल्में और डॉक्यूमेंटरीज, OTT प्लेटफॉर्म्स की ताकत बन गयी है।  इन्ही शार्ट फिल्मों में फिल्म निर्मातों और निर्देशकों को प्रोत्साहित करने के तमाम राज्य की सरकारों और प्राइवेट आर्गेनाईजेशन द्वारा फिल्म फेस्टिवल्स आयोजित करवाए जाते हैं।  जिन में से अलग अलग कैटेगरी और सिलेक्शन प्रोसेस के बाद उस साल की बेस्ट शार्ट फिल्म्स का चयन किया जाता है। जिस से इन फिल्ममकेर्स और एक्टर्स को अपने काम और अपनी कला को जारी रखने की प्रेरणा मिलने के साथ साथ उनका उत्साहवर्धन भी होता है।  

अभी हाल ही में हिमाचल शार्ट फिल्म फेस्टिवल 2023 दिसंबर महीने में हुआ। ये फेस्टिवल मनाली के अटल बिहारी वाजपेयी मॉउंटरिंग थिएटर में आयोजित किया गया था। इस फेस्टिवल में देश भर के तमाम शार्ट फिल्म मेकर्स ने अप्लाई किया और एक काढ़े सिलेक्शन प्रोसेस के बाद कुछ चुनिंदा फिल्मों को बेस्ट अवार्ड्स की केटेगरी में जगह दी गयी है।  इन में एक बेस्ट चिल्ड्रनस फिल्म अवार्ड हाल ही में बनी शार्ट फिल्म ''पिंक लिटिल सांता'' को भी दिया गया।  ये फिल्म पिछले साल यानी 2022 क्रिसमस वाले दिन यूट्यूब के परदे पर पाई।  इस फिल्म के निर्माता व् निर्देशक सम्राट सिंह द्वारा निर्मित व् निर्देशित 6 मिनट 39 सेकंड की ये फिल्म एक उम्मीद की किरण है। ये फिल्म इस बात पर जोर देती है, कि खुशी बांटने से ही बढ़ती है।  दूसरों के चेहरों की मुस्कान, हमारा पूरा दिन, क्या पूरी ज़िन्दगी भी बना सकती है। एक छोटी सी बच्चा का किरदार आपको पूरी फिल्म देखने के लिए विवश कर देगा।  एक चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर ऐसी एक्टिंग आपको अपने अंदर के बच्चे से प्यार करना सीखा देगी। 


मोटी मोटी जानकारी के तौर पर आपको बता दें कि ये फिल्म लकी 26 प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी है। इस प्रोडक्शन हाउस के नाम के पीछे भी एक बैकग्राउंड स्टोरी है। इस प्रोडक्शन हाउस के फाउंडर एस.पी. सिंह (अभिनेता व् निर्देशक) ये नाम अपनी पत्नी लकी (स्व: जसपाल कौर) के नाम पर रखा है। उनकी याद में रखा है। वो ही उनकी पहली मोहब्बत थी, प्रेमिका थी, वही पत्नी बनी, जीवन संगिनी बनी और जब वह पत्नी भी न रह सकी, तो एक याद बन कर रह गई।  इसी याद को संजो कर उन्होंने इस प्रोडक्शन हाउस को खड़ा किया है। दूसरों के लिए ये एक प्रोडक्शन हाउस हो सकता है, लेकिन उनके लिए ये उनका प्रेम है। 

यह फ़िल्में तो केवल उस जुड़ाव से मिल रही प्रेरणा का ही परिणाम हैं जो मौत के बाद भी लगातार बना हुआ है। इन संबंधों में बिछड़ने का दर्द भी दिखाई देता है और अलौकिक मिलन के आनंद की अनुभूति भी। बहुत सी बातें और भी हैं जिन्हें फर्क कभी किसी अलग पोस्ट में आपके सामने रखा जाएगा। 

निरंतर सामाजिक चेतना और जनहित ब्लॉग मीडिया में योगदान दें। हर दिन, हर हफ्ते, हर महीने या कभी-कभी इस शुभ कार्य के लिए आप जो भी राशि खर्च कर सकते हैं, उसे अवश्य ही खर्च करना चाहिए। आप इसे नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके आसानी से कर सकते हैं।

शनिवार, 31 अक्टूबर 2020

वरुण परुथी से सीखिए संवेदनशीलता और दिव्यता का अंदाज़

इसे कहते हैं मीडिया और कलम का दिव्य सदुपयोग  

लुधियाना: 31 अक्टूबर 2020: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::

मीडिया में होने के कारण बहुत से ख़ास लोगों से भेंट अक्सर ही आसानी से हो जाती है लेकिन इसके बावजूद बहुत से लोग छूट भी जाते हैं। इन्हीं में से होते हैं कुछ ख़ास लोग और कुछ आम लोगो। उन्हीने में से एक हैं वरुण परुथी। जिसके मन में आज के इस कारोबारी युग में इन्सानियत ज़िंदा है। 
वरुण परुथी एक बहुत ही लोकप्रिय एक्टर, यूटयूबर और सबसे बढ़ कर संवेदनशील इंसान हैं। मन में आया तो अपना यू टयूब चैनल बना लिया। आरम्भिक दौर में ही सफलता इतनी मिली कि नाम बुलंदी पर पहुँच गया। अब तो उनकी पोस्टें लघु फ़िल्में जैसी महसूस होती हैं। कम बजट के बावजूद बहुत ही बड़ा संदेश देने वाली छोटी छोटी फ़िल्में। उन की बनाई गयी फ़िल्में आम तौर पर उन विषयों पर होती हैं जिनसे बहुत से लोग अक्सर किनारा कर जाते हैं। यूटयूब पर अपना अपना वैब चैनल चलाने वालों में से भी बहुत से अच्छे पत्रकार भी उन विषयों पर काम करना ठीक नहीं समझते क्यूंकि उनसे कोई पैसा आम तौर पर नहीं मिलता। लेकिन वरुण परुथी तो अनूठे निकले। उनकी अधिकतर  पोस्टें तकरीबन तकरीबन इसी तरह के विषयों पर मिलेंगी। 
त्योहारों का मौसम हो या ज़िंदगी की कड़की दिखाने वाले हालात वरुण परुथी उन्हीं विषयों को चुनते हैं जो ज़िंदगी के उन्हीं रंगों को दिखाते हैं जिन्हें गर्दिश के रंग कहा जाता है। सुना है गर्दिश के उन अंधेरे दिनों में तो अपना साया भी साथ छोड़ जाता है। गरीबी और दरिद्रता में अपने रिश्तेदार भी कोई रिश्ता रखना ठीक नहीं समझते। इस बेहद नाज़ुक दौर में ही वरुण परुथी याद दिलाते हैं की इंसानियत का रिश्ता इसी वक़्त में निभाना ज़रूरी होता है। ज़ाहि वक़्त होता है जब अपने अंदर छुपी दिव्यता को आप दुनिया  मिसाल बन कर सामने लाएं लेकिन बिना किसी को कुछ भी जताने के। चुपचाप बहुत ही ख़ामोशी से अपनी सहायता का हाथ ज़रूरतमंद लोगों की तरफ बढ़ाएं।
इसी पोस्ट के आरम्भ में दी गयी वीडियो देखने में कोई दिक्क्त आए तो आप उसे यहां क्लिक करके भी देख सकते हैं--

वरुण परुथी बहुत ही मासूमियत से पूछते हैं
दीपावली पर भी खुशियां न बांटी तो कब आयेगा ऐसा दिन? वह नहीं चाहते आप अपने बेशुमार धन दौलत का उपयोग केवल नई नई गाड़ियां खरीदने, कोठियां खरीदने या अपनी व्यक्तिगत प्रसन्नता के लिए करें। वह बहुत ही प्रभावी  देते हैं थोड़ा सा वक़्त और थोड़ा सा धन उनके लिए भी खर्च करो जिनके पास किसी भी भयउ वजह से कुछ नहीं बचा। अगर आपने उन्हें देख कर भोई नज़रअंदाज़ कर दिया तो आप कभी भी सच्ची खुशियां हासिल न कर पाएंगे।  

सोमवार, 18 नवंबर 2013

Film-makers excited to be part of the 18th ICFFI-2013 at Hyderabad


18-11-2013 पर प्रकाशित
Courtesy:INBMINISTRY//YouTube
International Children's Film Festival of India is a biennial festival that strives to bring the most delightful and imaginative national and international children's cinema to young audiences in India. ICFFI is one of the largest and most colourful children's film festivals in the world. A unique feature of the festival is its audience: more than a hundred thousand children travel from little villages and towns from across India to view high quality international children's cinema.

ICFFI-2013: Sannette Naeye:

Masterclass on "Marketing Children's Films Internationally" by Sannette Naeye

18-11-2013 पर प्रकाशित
Courtesy:INBMINISTRY//YouTube
International Children's Film Festival of India is a biennial festival that strives to bring the most delightful and imaginative national and international children's cinema to young audiences in India. ICFFI is one of the largest and most colourful children's film festivals in the world. A unique feature of the festival is its audience: more than a hundred thousand children travel from little villages and towns from across India to view high quality international children's cinema.

शनिवार, 16 नवंबर 2013

ICFFI 2013: Raju Hirani and 'Little Directors' in an interactive session...


16-11-2013 पर प्रकाशित
Courtesy:INBMINISTRY//YouTube
International Children's Film Festival of India is a biennial festival that strives to bring the most delightful and imaginative national and international children's cinema to young audiences in India. ICFFI is one of the largest and most colourful children's film festivals in the world. A unique feature of the festival is its audience: more than a hundred thousand children travel from little villages and towns from across India to view high quality international children's cinema.

ICFFI-2013: In Conversation with Shilpa Ranade, Director of Goopi Gawaiy...


16-11-2013 पर प्रकाशित                
International Children's Film Festival of India is a biennial festival that strives to bring the most delightful and imaginative national and international children's cinema to young audiences in India. ICFFI is one of the largest and most colourful children's film festivals in the world. A unique feature of the festival is its audience: more than a hundred thousand children travel from little villages and towns from across India to view high quality international children's cinema.  Courtesy:INBMINISTRY

गुरुवार, 14 नवंबर 2013