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गुरुवार, 18 मार्च 2021

कोविड ने बच्चों और महिलाओं के जीवन में भी की है भयानक तबाही

दक्षिण एशिया: महामारी के कारण जच्चा-बच्चा मौतों में तीव्र बढ़ोत्तरी


17 मार्च 2021//महिलाएं

आपदा कहीं भी आये उसका सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है महिलाओं पर। इसके साथ ही  बच्चों की। आज  युग की खबरें भी कुछ इसी तरह की आ रही हैं। कोविड  तबाही की दर वाली है। संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों ने कहा है कि दक्षिण एशिया में, कोविड-19 के कारण, स्वास्थ्य सेवाओं में उत्पन्न हुए गम्भीर व्यवधान के परिणामस्वरूप, वर्ष 2020 के दौरान, जच्चा-बच्चा की अतिरिक्त दो लाख 39 हज़ार मौतें हुई हैं। यह आंकड़ा सचमुच चिंतित करने वाला है। संयुक्त राष्ट्र समाचार की टीम के सदस्य इसकी विस्तृत तस्वीर सामने लाये हैं और यह तस्वीर बेहद दुखद है। बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है। 

UNICEF/Omid Fazel: अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रान्त में, आन्तरिक विस्थापितों के लिये बनाए गए एक शिविर में, सामुदायिक शिक्षा केन्द्र में कुछ बच्चे

यह तस्वीर डराने वाली है। पूरे समाज को जागना होगा और सक्रिय भूमिका।  संयुक्त राष्ट्र बाल कोष–यूनीसेफ़, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने द्वारा बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस व्यवधान के परिणामस्वरूप, गम्भीर व तात्कालिक कुपोषण का इलाज पाने वालों, व बचपन में टीकाकरण किये जाने वाले बच्चों की संख्या में भी काफ़ी कमी हुई है।  इस तरह न जाने कितने बच्चे और कितने परिवार आवश्यक सेवा और सुविधा से वंचित रह रहे हैं। 

UNICEF-WHO-UNFPA report: दक्षिण एशिया में, बच्चों और माताओं पर कोविड-19 महामारी के प्रभाव की एक झलक


पूरे विश्व के जागरूक लोग इस समस्या को ले कर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं। दक्षिण एशिया के लिये यूनीसेफ़ के क्षेत्रीय निदेशक ज्यॉर्ज लरयी-ऐडजेई के अनुसार इन महत्वपूर्ण व आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान उत्पन्न होने के कारण, निर्धनतम व बहुत कमज़ोर हालात का सामना कर रहे परिवारों के स्वास्थ्य व पोषण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। इस वक्तव्य से अनुमान लगाया जा सकता है कि इस विनाशकारी प्रभाव के दुष्परिणाम निकट भविष्य में भी दिखाई देंगें और साथ ही देर तक इनकी आहत करने वाली आहट सुनाई देती रहेगी। 

क्षेत्रीय निदेशक ज्यॉर्ज लरयी-ऐडजेई ने ज़ोर देकर कहा, “इन स्वास्थ्य सेवाओं को पूरी तरह बहाल किया जाना बेहद आवश्यक है ताकि उन बच्चों व माताओं को इनका लाभ मिल सके, जिन्हें इनकी बेहद ज़रूरत है।"

"साथ ही, वो सब कुछ किया जाना सुनिश्चित करना होगा जिसके ज़रिये, लोग इन सेवाओं का इस्तेमाल करने में सुरक्षित महसूस करें।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस महामारी के कारण, दक्षिण एशिया क्षेत्र में भी बेरोज़गारी, निर्धनता और खाद्य असुरक्षा में बढ़ोत्तरी हुई है, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में भी गिरावट आई है। 

स्कूल वापसी की सम्भावना कम

महामारी की विकरालता का प्रभाव शिक्षा पर भी पड़ा है। इस रिपोर्ट में अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका के हालात का जायज़ा लिया गया है। पाया गया है कि महामारी और उससे निपटने के लिये लागू किये गए उपायों के कारण, इन देशों में लगभग 42 करोड़ बच्चे स्कूलों से बाहर रह गए। करोड़ों बच्चों की शिक्षा से दूरी  निर्माण करेगी इसका अनुमान भी लगाया जा सकता है। 

इस संबंध में सामने आई रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसी सम्भावना है कि लगभग 45 लाख लड़कियाँ, अब कभी भी स्कूली शिक्षा में वापिस नहीं लौट पाएंगी। इसके अलावा, ये लडकियाँ, यौन व प्रजनन स्वास्थ्य और सूचना प्रदान करने वाली सेवाओं तक पहुँच नहीं होने के कारण, जोखिम के दायरे में हैं। इस जोखिम का परिणाम  भुगतना पड़ सकता है। कोविड का कहर 

एशिया-प्रशान्त के लिये, यूएन जनसंख्या कोष के क्षेत्रीय निदेशक ब्यॉर्न एण्डर्सन का कहना है, “दक्षिण एशिया में सांस्कृतिक व सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए, इन सेवाओं में व्यवधान आने से, विषमताएँ और ज़्यादा गहरी हो रही हैं और इसके परिणामस्वरूप, जच्चा-बच्चा की मृत्यु दर में और भी बढ़ोत्तरी होने की सम्भावना है।”

गुरुवार, 21 जनवरी 2021

सैलमन मछलियों को बचाने के अभियान में जुटी नीरिया अलीसिया गार्सिया

 संघर्ष और विस्थापन से भरी है सैल्मन की ज़िंदगी  

Niria Alicia Garcia coordinates the annual Run 4 Salmon event alongside a community of indigenous activists. Photo: UNEP

19 जनवरी 2021//जलवायु परिवर्तन

शायद हर जीव को लगता हो कि शायद वही है मुश्किलों ने जिसका पीछा शुरू कर दिया। कदम कदम पर इम्तिहान हैं। हर मोड़ पर संग्राम है। मानव वर्ग के भी शायद बहु संख्यक लोगों को भी यही लगता है दुःख और शायद उसी की ज़िंदगी में हैं। वह कभी किस्मत को कोसता है और कभी भगवान को। लेकिन वास्तव में संग्राम और संघर्ष के बिना ज़िंदगी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। कभी भूख के साथ संघर्ष और कभी मौत का सामना। कभी बीमारी मुसीबत कभी वृद्धावस्था।  

ध्यान से देखें तो यह सिलसिला हर किसी के साथ है। यही कुछ होता  मछलियों के साथ। सैल्मोनिडे परिवार की विभिन्न प्रजातियों की मछली के लिए दिया जाने वाला एक आम नाम है सैल्मन। सुनने में काफी अच्छा भी लगता है। इस परिवार की कई अन्य मछलियों को ट्राउट भी कहा जाता है। दोनों के बीच बहुत बसे फर्क भी हैं लेकिन फिर भी प्रजाति तो एक ही है। अक्सर यह अंतर बताया जाता है कि सैल्मन विस्थापित होती रहती हैं और ट्राउट एक तरह से स्थायी निवासी होती हैं। एक ऐसी धारणा जो सैल्मो जीनस के लिए सच है। सैल्मन दोनों जगह रहती है, अटलांटिक में (एक प्रवासी प्रजाति सैल्मो सालार) और प्रशांत महासागर में, साथ ही साथ ग्रेट लेक्स में ओंकोरिन्कस जीनस की करीब एक दर्जन प्रजातियां हैं। थोड़े बहुत अंतर हर प्रजाति में हैं। बहुत सी खूबियां हैं। 

आज हम आपको इस विषय पर बता रहे हैं काफी कुछ लेकिन मुख्य फोकस रहेगा सैल्मन पर जिसके अस्तित्व को शायद अब खतरा पैदा हो गया है। आमतौर पर, सैल्मन ऐनाड्रोमस हैं, वे ताज़े पानी में पैदा होती हैं और फिर जल्दी ही सागर में विस्थापित हो जाती हैं। दिलचस्प बात है कि प्रजनन के लिए सैल्मन मछलियां फिर ताजे पानी में वापस आ जाती हैं। गौरतलब है कि ऐसी दुर्लभ प्रजातियां भी हैं जो केवल ताज़े पानी में ही जीवित रह सकती हैं। लोककथाओं में ऐसा कहा जाता है, कि मछली अंडे देने के लिए ठीक उसी जगह लौटती है जहां वह पैदा हुई थी; ट्रैकिंग अध्ययन से पता चला है कि यह सच है लेकिन इस स्मृति के काम करने की प्रकृति पर लंबी बहस होती रही है। फिर भी यह बता एक ठोस सत्य है। एक बहुत ही आश्चर्यजनक हकीकत है यह तथ्य। 

उल्लेखनीय है कि सैल्मन के अंडे मीठे पानी की धाराओं में आम तौर पर उच्च अक्षांश पर दिए जाते हैं। सेने की प्रक्रिया में अंडे अलेविन या साक फ्राई बन जाते हैं। खड़ी धारियों के छलावरण के साथ फ्राई जल्दी ही, पार में विकसित हो जाते हैं। पार छः महीने से तीन वर्ष तक अपनी देशी धारा में रहती है जिसके बाद वह स्मोल्ट बन जाती है, जिसे उनके चमकदार चांदी जैसे रंग से पहचाना जाता है और जो आसानी से मिट जाता है। यह अनुमान है कि सैल्मन के सभी अण्डों में केवल 10% इस स्तर तक जीवित रहते हैं। स्मोल्ट के शरीर के रसायन विज्ञान में परिवर्तन होता रहता है, जो उन्हें खारे पानी में रहने की अनुमति देता है। स्मोल्ट अपने प्रवास के बाहर का समय खारे पानी में बिताती हैं जहां उनका शारीरिक रसायन शास्त्र समुद्र में ऑस्मोरेग्युलेशन का आदी हो जाता है। जन्म के साथ ही कितना संघर्ष सामने आता है इसका अनुमान आप जन्म की इस बेहद कठिन प्रक्रिया से लगा ही सकते हैं। 

सैल्मन खुले सागर में एक से पांच साल (प्रजातियों के आधार पर) का समय बिताती हैं और जहां वे यौन रूप से पूरी तरह परिपकव भी हो जाती हैं। वयस्क सैल्मन अंडे देने के लिए मुख्यतः अपनी जन्म धारा में लौटती है। अलास्का में, दूसरी धाराओं में जाने से सैल्मन की आबादी दूसरी धाराओं में भी बढ़ती है, जैसे कि वे जो ग्लेशियर वापसी के रूप में आती हैं। सैल्मन अपना मार्गनिर्देशन कैसे करती हैं इसकी सटीक विधि को अभी स्थापित नहीं किया जा सका है, हालांकि गंध की उनकी गहरी समझ इसमें शामिल है। अटलांटिक सैल्मन एक से चार साल तक समुद्र में रहती हैं। (जब एक मछली सिर्फ एक साल में समुद्र में रह कर लौट आती है तो उसे ब्रिटेन और आयरलैंड में ग्रिलसे कहते हैं।) अंडा देने से पहले, प्रजातियों के आधार पर, सैल्मन परिवर्तन से गुजरती है। उनका कूबड़ निकल सकता है, कैनाइन दांत आ सकते हैं, काइप का विकास हो सकता है (नर सैल्मन में जबड़े की स्पष्ट वक्रता). सभी कुछ बदल जाता है, समुद्र की एक चमकदार नीली मछली से एक गहरे रंग में परिवर्तन. सैल्मन अद्भुत सफर करती है, कभी-कभी मजबूत धाराओं के खिलाफ सैकड़ों मील चलती है और जनन के लिए वापस आती है। 

आप अनुमान लगा सकते हैं कि जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक संघर्ष ही संघर्ष है। मानव की तरह इन मछलियों को भी इसधर उधर आना जाना पड़ता है। हमारी भाषा में शायद इसे भटकना भी कहा जाता है। भटकनों से भरे जीवन को जीती सैल्मन का जीवन शायद खतरों से भर गया है। इस खतरे के साथ ही उसे चाहने वाले भी आगे आए हैं। इस समंध में हम एक युवती की तस्वीर भी यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं। इस युवती की तस्वीर और इसके बचाव कार्य के विवरण को जनता के सामने लाने की पहल का प्रयास किया है संयुक्त राष्ट्र संघ ने।  

अमेरिका की एक युवती को संयुक्त राष्ट्र ने युवा पृथ्वी चैम्पियन के रूप में सराहा है, जो वर्चुअल रियलिटी की मदद से सैलमन मछलियों को बचाने के अभियान में लगी हैं। 

नीरिया अलीसिया गार्सिया स्थानीय कार्यकर्ताओं के समुदाय के साथ मिलकर वार्षिक ‘रन4सैलमन’ अभियान का समन्वय करती हैं. इस अभियान के तहत वो कैलिफोर्निया के सबसे बड़े जल क्षेत्र में सैक्रामेंटो चिनुक सैलमन मछली की ऐतिहासिक यात्रा को जीवन्त करने के लिये वर्चुअल रियलिटी का उपयोग करते हुए,इस अमूल्य पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में जागरूकता बढ़ाती हैं। 

नीरिया अलीसिया संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)के यंग चैम्पियंस ऑफ़ द अर्थ, 2020 के रूप में पहचान बनाने वाले सात नवप्रवर्तकों में से एक हैं। 

इस मछली को खाने और  खाने की सिफारिश करने वाले बताते हैं कि इस मछली में बहुत से पोषक तत्व होते हैं। आँखों के लिए भी यह बहुत फायदेमंद है और हड्डियों लिए। भी। बॉडीबिल्डिंग के लिए भी  इसे काफी अच्छा माना जाता है। रक्तचाप में भी यह काफी फायदेमंद है। 

इसके कुछ नुक्सान भी बताये जाते जाते हैं। तलाबों  में पाली जानेवाली मछलियां बड़े समुन्द्रों में पाली जाने  मछलियों  होने लगती हैं। तालाबों की मछलियों में पारे मात्रा बढ़ जाती है।