शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

वरुण परुथी से सीखिए संवेदनशीलता और दिव्यता का अंदाज़

इसे कहते हैं मीडिया और कलम का दिव्य सदुपयोग  

लुधियाना: 31 अक्टूबर 2020: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::

मीडिया में होने के कारण बहुत से ख़ास लोगों से भेंट अक्सर ही आसानी से हो जाती है लेकिन इसके बावजूद बहुत से लोग छूट भी जाते हैं। इन्हीं में से होते हैं कुछ ख़ास लोग और कुछ आम लोगो। उन्हीने में से एक हैं वरुण परुथी। जिसके मन में आज के इस कारोबारी युग में इन्सानियत ज़िंदा है। 
वरुण परुथी एक बहुत ही लोकप्रिय एक्टर, यूटयूबर और सबसे बढ़ कर संवेदनशील इंसान हैं। मन में आया तो अपना यू टयूब चैनल बना लिया। आरम्भिक दौर में ही सफलता इतनी मिली कि नाम बुलंदी पर पहुँच गया। अब तो उनकी पोस्टें लघु फ़िल्में जैसी महसूस होती हैं। कम बजट के बावजूद बहुत ही बड़ा संदेश देने वाली छोटी छोटी फ़िल्में। उन की बनाई गयी फ़िल्में आम तौर पर उन विषयों पर होती हैं जिनसे बहुत से लोग अक्सर किनारा कर जाते हैं। यूटयूब पर अपना अपना वैब चैनल चलाने वालों में से भी बहुत से अच्छे पत्रकार भी उन विषयों पर काम करना ठीक नहीं समझते क्यूंकि उनसे कोई पैसा आम तौर पर नहीं मिलता। लेकिन वरुण परुथी तो अनूठे निकले। उनकी अधिकतर  पोस्टें तकरीबन तकरीबन इसी तरह के विषयों पर मिलेंगी। 
त्योहारों का मौसम हो या ज़िंदगी की कड़की दिखाने वाले हालात वरुण परुथी उन्हीं विषयों को चुनते हैं जो ज़िंदगी के उन्हीं रंगों को दिखाते हैं जिन्हें गर्दिश के रंग कहा जाता है। सुना है गर्दिश के उन अंधेरे दिनों में तो अपना साया भी साथ छोड़ जाता है। गरीबी और दरिद्रता में अपने रिश्तेदार भी कोई रिश्ता रखना ठीक नहीं समझते। इस बेहद नाज़ुक दौर में ही वरुण परुथी याद दिलाते हैं की इंसानियत का रिश्ता इसी वक़्त में निभाना ज़रूरी होता है। ज़ाहि वक़्त होता है जब अपने अंदर छुपी दिव्यता को आप दुनिया  मिसाल बन कर सामने लाएं लेकिन बिना किसी को कुछ भी जताने के। चुपचाप बहुत ही ख़ामोशी से अपनी सहायता का हाथ ज़रूरतमंद लोगों की तरफ बढ़ाएं।
इसी पोस्ट के आरम्भ में दी गयी वीडियो देखने में कोई दिक्क्त आए तो आप उसे यहां क्लिक करके भी देख सकते हैं--

वरुण परुथी बहुत ही मासूमियत से पूछते हैं
दीपावली पर भी खुशियां न बांटी तो कब आयेगा ऐसा दिन? वह नहीं चाहते आप अपने बेशुमार धन दौलत का उपयोग केवल नई नई गाड़ियां खरीदने, कोठियां खरीदने या अपनी व्यक्तिगत प्रसन्नता के लिए करें। वह बहुत ही प्रभावी  देते हैं थोड़ा सा वक़्त और थोड़ा सा धन उनके लिए भी खर्च करो जिनके पास किसी भी भयउ वजह से कुछ नहीं बचा। अगर आपने उन्हें देख कर भोई नज़रअंदाज़ कर दिया तो आप कभी भी सच्ची खुशियां हासिल न कर पाएंगे।  

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

चार्ली हेब्डो कार्टून और समकालीन विश्व में ईशनिंदा कानून

  राम पुनियानी                                                                  28 अक्टूबर 2020  

Lyon France में पुलिस की मौजूदगी-फाईल फोटो जिसे क्लिक किया Ev (Unsplash) ने 

रूसी मूल के 18 साल के मुस्लिम किशोर द्वारा फ्रांस के स्कूल शिक्षक सेम्युअल पेटी की हत्या ने एक अंतर्राष्ट्रीय विवाद को जन्म दे दिया है। एक ओर फ्रांस के राष्ट्रपति ने मृत शिक्षक का समर्थन करते हुए राजनैतिक इस्लाम का मुकाबला करने की घोषणा की है तो दूसरी ओर, तुर्की के राष्ट्रपति एर्डोगन ने फ्रांस के राष्ट्रपति के बारे में अत्यधिक अपमानजनक टिप्पणी की है। प्रतिक्रिया स्वरूप, फ्रांस ने तुर्की से अपने राजदूत को वापिस बुलवा लिया है। इस दरम्यान अनेक मुस्लिम देशों ने फ्रांस के उत्पादों का बहिष्कार प्रारंभ कर दिया है। इसके साथ ही अनेक मुस्लिम देशों ने फ्रांस के राष्ट्रपति के विरूद्ध अपना आक्रोश व्यक्त किया है। पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत अनेक मुस्लिम देशों में विरोध प्रकट करने के लिए लोग सड़कों पर भी उतरे। 

लेखक डा. राम पुनियानी 
पेटी अपनी कक्षा में अभिव्यक्ति की आजादी का महत्व समझा रहे थे और अपने तर्कों के समर्थन में उन्होंने ‘चार्ली हेब्डो’ में प्रकाशित कार्टून बच्चों को दिखाए. इसके पहले उन्होंने कक्षा के मुस्लिम विद्यार्थियों से कहा कि अगर वे चाहें तो क्लास से बाहर जा सकते हैं. यहां यह उल्लेखनीय है कि चार्ली हेब्डो के कार्टूनिस्टों की 2015 में हुई हत्या का मुकदमा अदालत में प्रारंभ होने वाला है. इस संदर्भ में यह जिक्र करना भी उचित होगा कि चार्ली हेब्डो ने पैगम्बर का उपहास करने वाले कार्टूनों का पुनर्प्रकाशन किया था. ये कार्टून इस्लाम और पैगम्बर मोहम्मद को आतंकवाद से जोड़ते हैं. इन कार्टूनों की पृष्ठभूमि में 9/11 का आतंकी हमला है जिसके बाद अमरीकी मीडिया ने ‘इस्लामिक आतंकवाद’ शब्द गढ़ा और यह शब्द जल्दी ही काफी प्रचलित हो गया. चार्ली हेब्डो में इन कार्टूनों के प्रकाशन के बाद पत्रिका के कार्यालय पर  हमला हुआ, जिसमें उसके 12 कार्टूनिस्ट मारे गए. इस हिंसक हमले की जिम्मेदारी अलकायदा ने ली. यहां यह  उल्लेखनीय है कि अलकायदा को पाकिस्तान स्थित कुछ मदरसों में बढ़ावा दिया गया. इन मदरसों में इस्लाम के सलाफी संस्करण का उपयोग, मुस्लिम युवकों के वैचारिक प्रशिक्षण के लिए किया जाता था. सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन मदरसों का पाठ्यक्रम वाशिंगटन में तैयार हुआ था. अलकायदा में शामिल हुए व्यक्तियों के प्रशिक्षण के लिए अमेरिका ने आठ अरब डालर की सहायता दी और सात हजार टन असला मुहैया करवाया.

इसके नतीजे में पिछले कुछ दशकों से अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच, विशेषकर पश्चिम एशिया, पर आतंकवाद छाया हुआ है. मुसलमानों में अतिवाद दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. इस बीच अनेक देशों ने ईशनिंदा कानून बनाए और कुछ मुस्लिम देशों ने ईशनिंदा के लिए मृत्युदंड तक का प्रावधान किया. इन देशों में पाकिस्तान, सोमालिया, अफगानिस्तान, ईरान, सऊदी अरब और नाईजीरिया शामिल हैं.

हमारे पड़ोसी पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक के शासनकाल में ईशनिंदा के लिए सजा-ए-मौत का प्रावधान किया गया था. इसके साथ ही वहां इस्लामीकरण की प्रवृत्तियां भी तेज हो गईं. इसका एक नतीजा यह हुआ कि इन देशों में इस्लाम का अतिवादी संस्करण लोकप्रिय होने लगा. इसका जीता-जागता उदाहरण आसिया बीबी हैं जिन्हें ईशनिंदा का आरोपी बनाया गया था. पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर की निर्मम हत्या कर दी गई क्योंकि उन्होंने न सिर्फ इस कानून का विरोध किया वरन् जेल जाकर आसिया बीबी से मुलाकात भी की. इसके बाद तासीर के हत्यारे का एक नायक के समान अभिनंदन किया गया.

इस्लाम के इतिहासकार बताते हैं कि पैगम्बर मोहम्मद के दो सौ साल बाद तक इस्लाम में ईशनिंदा संबंधी कोई कानून नहीं था. यह कानून नौवीं शताब्दि में अबासिद शासनकाल में पहली बार बना. इसका मुख्य उद्देश्य सत्ताधारियों की सत्ता पर पकड़ मजबूत करना था. इसी तरह, पाकिस्तान में जिया उल हक ने अपने फौजी शासन को पुख्ता करने के लिए यह कानून लागू किया. इसका लक्ष्य इस्लामी राष्ट्र के बहाने अपनी सत्ता को वैधता प्रदान करना था. सच पूछा जाए तो फौजी तानाशाह, समाज में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना चाहते थे. इसके साथ ही गैर-मुसलमानों और उन मुसलमानों, जो सत्ताधारियों से असहमत थे, को काफिर घोषित कर उनकी जान लेने का सिलसिला शुरू हो गया. पाकिस्तान में अहमदिया और शिया मुसलमानों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. ईसाई और हिन्दू तो इस कानून के निशाने पर रहते ही हैं.

अभी हाल में (25 अक्टूबर) एक विचारोत्तेजक वेबिनार का आयोजन किया गया. इसका आयोजन मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी नामक संस्था ने किया था. वेबिनार में बोलते हुए इस्लामिक विद्वान जीनत शौकत अली ने कुरान के अनेक उद्वरण देते हुए यह दावा किया कि पवित्र ग्रंथ में इस्लाम में विश्वास न करने वालों के विरूद्ध हिंसा करने की बात कहीं नहीं कही गई है (कुरान में कहा गया है ‘तुम्हारा दीन तुम्हारे लिए, मेरा दीन मेरे लिए’). वेबिनार का संचालन करते हुए जावेद आनंद ने कहा कि ‘‘हम इस अवसर पर स्पष्ट शब्दों में, बिना किंतु-परंतु के, न केवल उनकी निंदा करते हैं जो इस बर्बर हत्या के लिए जिम्मेदार हैं वरन् उनकी भी जो इस तरह के अपराधों को प्रोत्साहन देते हैं और उन्हें उचित बताते हैं. हम श्री पेटी की हत्या की निंदा करते हैं और साथ ही यह मांग करते हैं कि दुनिया में जहां भी ईशनिंदा संबंधी कानून हैं वहां उन्हें सदा के लिए समाप्त किया जाए’’.

इस वेबिनार में जो कुछ कहा गया वह महान चिंतक असगर अली इंजीनियर की इस्लाम की विवेचना के अनुरूप है. असगर अली कहते थे कि पैगम्बर इस हद तक आध्यात्मिक थे कि वे उन्हें भी दंडित करने के विरोधी थे जो व्यक्तिगत रूप से उनका अपमान करते थे. इंजीनियर, पैगम्बर के जीवन की एक मार्मिक घटना का अक्सर उल्लेख करते थे. पैगम्बर जिस रास्ते से निकलते थे उस पर एक वृद्ध महिला उन पर कचरा फेंकती थी. एक दिन वह महिला उन्हें नजर नहीं आई. इस पर पैगम्बर तुरंत उसका हालचाल जानने उसके घर गए. यह देखकर वह महिला बहुत शर्मिंदा हुई और उसने इस्लाम स्वीकार कर लिया.

यहां यह समझना जरूरी है कि आज के समय में इस्लाम पर असहिष्णु प्रवृत्तियां क्यों हावी हो रही हैं? इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जब मुस्लिम शासकों ने इन प्रवृत्तियों का उपयोग सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए किया. वर्तमान में इस प्रवृत्ति में नए आयाम जुड़ गए हैं. सन् 1953 में ईरान में चुनी हुई मोसादिक सरकार को इसलिए उखाड़ फेंका गया क्योंकि वह तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करने वाली थी. यह सर्वविदित है कि इन कंपनियों से  अमेरिका और ब्रिटेन के हित जुड़े हुए थे. समय के साथ इसके नतीजे में कट्टरपंथी अयातुल्लाह खौमेनी ने सत्ता पर कब्जा कर लिया. वहीं दूसरी ओर अफगानिस्तान पर सोवियत कब्जे के बाद अमेरिका ने कट्टरवादी इस्लामिक समूहों को प्रोत्साहन दिया. इसके साथ ही मुजाहिदीन, तालिबान और अलकायदा से जुड़े आतंकवादियों को प्रशिक्षण देना भी प्रारंभ किया. नतीजे में पश्चिमी एशिया में अमेरिका की दखल बढ़ती गई जिसके चलते अफगानिस्तान, ईराक आदि पर हमले हुए और असहनशील तत्व हावी होते गए जिसके चलते पेटी की हत्या जैसी घटनाएं होने लगीं.

ईशनिंदा एवं ‘काफिर का कत्ल करो’ जैसी प्रवृत्तियों को कैसे समाप्त किया जाए, इस पर बहस और चर्चा आज के समय की आवश्यकता है. 

(हिंदी रूपांतरणः अमरीश हरदेनिया) 

(लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

शनिवार, 24 अक्तूबर 2020

किसी मनुष्य को कुत्ता कह कर कुत्ते का अपमान न करें

 गौर कीजिये-बहुत सी विशेषताएं हैं कुत्तों में जनाब!
*इस यादगारी और भवनात्मक तस्वीर को क्लिक किया जानेमाने कैमरामैन Atharva Tulsi (Unsplash) ने 

लुधियाना: 24 अक्टूबर 2020: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::

ये बोला दिल्ली के कुत्ते से गाँव का कुत्ता!
कहाँ से सीखी अदा तू ने दुम दबाने की!
वो बोला दुम के दबाने को बुज़-दिली न समझ!
जगह कहाँ है यहाँ दुम तलक हिलाने की!
                                       ---साग़र ख़य्यामी

यह तस्वीर दिल्ली में बने हुए किसी पुराने बादशाह के मकबरे की है लगता है तस्वीर में नज़र आ रहे कुत्ते ने कई दिनों से नहाने की ज़रूरत भी नहीं समझी या फिर नहाने जितना पानी ही उसे उपलब्ध नहीं हुआ क्यूंकि पानी के बंटवारे को लेकर तो लड़ाई झगड़ों का माहौल गरमाया हुआ है। इस हालत के बावजूद यह कुत्ता खुश लग रहा है। शायद इसी लिए कहा जाता है कि कुत्ते दरवेश होते हैं। इस संबंध में कई कहानियां भी प्रचलित हैं।  कुत्तों को भूत-प्रेत भी नज़र आ जाते हैं। जहाँ भी रहते हैं वहां के परिवार में मृत्यु की दस्तक आने पर कुत्ते उसे झट से पहचान लेते हैं और भौंकना शुरू कर देते हैं या रोना शुरू कर देते हैं।  बहुत से लोगों ने देखा होगा की जब कोई कुत्ता रोने लगता है तो कुछ ही घंटों में उस गली के किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है। समझना आ जाए तो ये अपनी भाषा में बहुत सी काम की बातें भी कहते हैं। 

बहुत से अघोरी और अन्य साधु भी कुत्तों को अपने साथ रखना ज़रूरी समझते हैं। इस बात को न भी माना जाये तो भी इसकी वफादारी तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इसकी सूंघने की शक्ति और इसकी मेघा भी बहुत विशेष होती है। पुलिस और सेना में कुत्ते बहुत ही काम के होते हैं। पहले तो कुत्तों के वृद्ध होने पर सेना में उन्हें गोली मार कर मार दिए जाने का चलन भी था लेकिन अब इसे सुधारा जा रहा है। वृद्धा अवस्था में कुत्तों के पुनर्वास करने की बातें भी सुनी गई हैं। बहुत से अमीर लोगों के परिवारों में कुत्तों को विशेष सम्मान मिलता है। जो परिवार कुत्तों को पालने के शौक़ीन हैं वे इसे पारिवारिक सदस्य की तरह ही स्नेह करते हैं। अब सरकारें भी लोगों की इस भावुक कमज़ोरी को समझ गई हैं और उनके पालने पर नई नई किस्म के टेक्स और खर्चे घोषित हो रहे हैं। कुत्ते पालना अब महंगा सौदा हो गया है। 

इसी बीच कई बरसों से कुत्तों का कारोबार बहुत मुनाफा भी देने लगा है। छोटे छोटे पिल्लै बहुत महंगे भाव पर बिकते हैं। कुत्तों के अच्छे कारोबारी कुत्तों को  समय उन्हें सबंधित टीके इत्यादि लगवा कर ही बेचते हैं। 
इससे उन्हें हलकाने या कोई अन्य रोग नहीं होता। जब भी इतिहास लिखा गया तो यह बात दर्ज रहेगी कि जब लोग अपने परिवारों और देशों के साथ वफादारी भूल गए थे तो उस स्वार्थ भरे दौर में भी कुत्ते वफ़ादारी की मिसाल बने रहे। 

इस लिए एक निवेदन है आप सभी से। जब भी किसी आज के किसी तथाकथित इंसान, बेवफा व्यक्ति, धोखेबाज़ मित्र या ऐसे किसी भी अन्य मनुष्य को गाली देने का मन करे तो कृपया उसे कुत्ता कह कर कुत्ते का अपमान न करें।