सोमवार, 21 दिसंबर 2020

किसने सामने रखी हैं दोनों कौमों की सबसे बदसूरत तस्वीरें

 Monday: 21st December 2020 at 02:18 PM

श्याम मीरा सिंह बहुत खूबसूरत अंदाज़ में कर रहे हैं खुलासा


दिल्ली से हैदराबाद के सफर में हूं. वेटिंग लिस्ट की वजह से टिकट कैंसिल हो गई थी तो सीट नहीं मिली। दिल्ली से हैदराबाद के बीच 1680 किमी का रास्ता है, घण्टों में नापें तो 27 से 28 घन्टें। एक आदमी के लिए इतनी देर खड़े रहना मुश्किल है। बैठना भी। मैं स्लीपर क्लास की दस नंबर की बोगी में चढ़ गया। थोड़ा सकुचाने वाला स्वभाव है तो किसी की भी सीट पर नहीं बैठा, खड़ा ही रहा। एक शख्स जिसकी नजर बार-बार मुझपर पड़ रही थी ने मुझे अपनी सीट ऑफर की। मेरा नाम नहीं पूछा, मजहब भी नहीं। बातचीत के दौरान पता चला कि वह बंगलौर (कर्नाटक) जा रहे हैं।

इस बार श्याम मीरा सिंह के संस्मरण 
मैंने भी बताया कि मेरे पास 900 रुपए की टिकट है लेकिन सीट नहीं है, तो मुझे टोकते हुए उसने कहा कि "ये सीट है तो सही आप इसपर ही मेरे साथ सो जाना।" आगे उसने कहा लेकिन एक छोटी सी समस्या होगी कि मेरे अब्बू जोकि हार्ट के पेशेंट हैं वह भी नागपुर स्टेशन से साथ में होने वाले हैं उनकी भी सीट कन्फर्म नहीं हुई है। इसलिए उनके आने के बाद कुछ एडजस्टमेंट करना पड़ेगा।

मतलब कुछ-कुछ ईशारा यही कुछ था कि सीट छोड़नी पड़ेगी। रास्ते भर उसने मुझे खाने-पीने के सभी सामानों में बराबरी पर रखा। पानी, बिस्कुट, संतरें, काजू मठरी, लंच। सबमें आधा-आधा। सफर लम्बा था सीट छोटी। समस्या स्वभाविक रूप से उसे हुई ही होगी। लेकिन उसने एडजस्ट किया। करीब 16 घन्टे के सफर के बाद नागपुर स्टेशन भी आ ही गया। अब्बू चूंकि हर्ट के पेशेंट और उमर में बुजुर्ग थे,उनकी व्यवस्था करना पहली प्राथमिकता थी। मैंने समय की नजाकत को समझते हुए खुद को उस सीट से अलग करना जरूरी समझा और इधर उधर खड़ा होने लगा। एक चादर नुमा बिस्तर अगल-बगल की सीटों के ठीक बीच वाली जमीन पर लगा लिया गया। मैं वहां से कहीं और जाने के लिए अपना बैग संभालने लगा, इधर उधर पड़ा सामान रखने लगा। तभी उस बुजुर्ग ने कहा कि आप कहां जा रहे हैं, मैंने जवाब दिया कि "मैं इधर उधर ही कहीं देखता हूं, वैसे भी मैं दिन में सो ही लिया हूं सो अब सोने की अधिक आवश्यकता नहीं रही है, आप थोड़ा आराम करिए सीट पर, सर्दी भी अधिक है।"
ये दोनों शख्स मेरा मजहब नहीं जानते थे, मेरी जाति नहीं जानते थे। अगर मेरे लिबास से अंदाजा भी लगाते तो हिन्दू ही मालूम पड़ता। लेकिन उनके लिबास और दाढ़ी से साफ मालूम चल रहा था कि वो लोग मुस्लिम हैं, बिना मूछ, लंबी दाढ़ी, कुर्ता पैजामा, और एक अलग ही तरह का लहजा, बोली भारत में एक मुसलमान की पहचान करने के लिए यही काफी है. उन अंकल का नाम याद नहीं लेकिन उस लड़के का नाम याद है, सैय्यद वसीम।
मुझसे उम्र में कुछ साल बड़े सैयद ने मेरी मदद की, यह नेकदिली थी लेकिन सामान्य बात थी, लेकिन उसके अब्बू ने जो कहा वह मुझे और इस देश के तमाम लोगों को शर्म और फक्र दोनों का अहसास एक साथ कराने वाली चीज थी, शर्म उनके लिए जो मुसलमानों के लिबास देखकर ही मन में पूर्वाग्रह भर लाते हैं। फक्र उनके लिए जिन्हें इस मुल्क की साझी विरासत पर नाज है। लंबी सफेद दाड़ी वाले उस बुजुर्ग ने कहा कि उनका बेटा ज़मीन पर सो जाएगा और मैं उनके साथ सीट पर लेट जाऊं। इसीलिए जमीन पर चादर बिछाई गई है। शीत लहर के मौसम में अपने बेटे को जमीन पर सोने के लिए कहना, और एक अनजान को अपनी सीट पर जगह देने की बात का नाम ही "हिन्दोस्तां" हैं। यही वह हिन्द है जिसने विश्व के तमाम देशों को अपनी समृद्धि, संस्कृति से जलने को मजबूर किया। ऐसे अनेकों उदाहरण दिन-रात यूं ही मिल जाएंगे, यहां इत्तेफाक से मुस्लिम थे, कहीं मदद करने वाले हिन्दू होते हैं और सामने वाला मुसलमान। इन सबसे मिलकर भारत बनता है। हिन्दुस्तां वह नहीं जो टीवी पर फुटेज दिखा दिखा कर जताया जा रहा है। हिन्दुस्तां वह है जो असल जिंदगी में एक ही मुल्क में एक हवा से सांस ले रहा है।
हिंदुओं के एक बड़े तबके में मुसलमानों के लिए अजीब तरह की घृणा है, यही घृणा मुसलमानों के भी एक तबके में हिंदुओं के लिए है। लेकिन घृणा उन्हीं लोगों के मन मे है जो एक दूसरे समुदाय के लोगों से कभी मिले नहीं, दोस्ती नहीं की। घर पर नहीं गए, स्कूल में साथ नहीं घूमे, प्रेमी नहीं बने, प्रेमिकाएं नहीं बनाईं, आधे से ज्यादा हिंदुओं ने व्हाट्सएप वाला मुसलमान ही देखा है। जिसकी लंबी सी दाड़ी है-हाथ में चाकू है। जेब में बम है। उसे मदद करने वाले हाथ और मोहब्बत वाला दिल देखने को कभी नहीं दिखता। क्योंकि उसको तस्वीर ही एक ही रंग की भेजी जा रही हैं, मुसलमान से उसकी पहली मुलाकात ही इंटरनेट पर हुई थी। कुरान भी उसने आरएसएस के व्हाट्सएप ग्रुप पर पढ़ी है। आज से 4 साल पहले मैं भी मुसलमानों के प्रति इन्हीं पूर्वाग्रहों में जीता था। मुस्लिम क्षेत्र से निकलते वक्त कदमों की गति जल्दी जल्दी बढ़ती जाती थी। उन्हें देखते ही अजीब तरह का शक, डर और घृणा एक साथ आती थी। लेकिन तभी तक जब तक कि मैं असल में मुसलमानों से नहीं मिला, दोस्ती नहीं की। आज मेरे तमाम दोस्त इस मजहब के मानने वाले हैं। मैंने अपने भाई को अपने मुसलमान दोस्तों में पाया है। आज मैं जामा मस्जिद में नमाज पढ़ रही भारी भीड़ में भी अकेले चला जाता हूं लेकिन कभी नहीं लगा कि ये मस्जिद वाली भीड़ मंदिर वाली भीड़ से थोड़ी सी भी अलग हैं, वह उतने ही भावुक हैं जितने कि हिन्दू, वह उतने ही मजहबी हैं जितने कि हिन्दू, वह उतनी ही मेहमानबाजी जानते हैं जितने कि और मजहबों के लोग। आरएसएस और भाजपा की सफलता का एक ही कारण है कि उसने दोनों कौमों की सबसे बदसूरत तस्वीरें आपके बीच रखी हैं, नहीं तो इस मुल्क से अच्छा मुल्क नहीं, हिन्दू से अच्छा पड़ौसी नहीं, मुसलमान से अच्छा दोस्त नहीं।
मेरे संस्मरण (श्याम मीरा सिंह की फेसबुक प्रोफ़ाईल से साभार)

रविवार, 15 नवंबर 2020

मैं नेहरू की परछाई था--के एफ रुस्तमजी

Sunday:15th November 2020 at 9:07 AM

 नेहरुजी की  जयंती पर एल. एस. हरदेनिया की विशेष प्रस्तुति 

अगस्त 1942 में अंग्रेज़ो भारत  छोडो आंदोलन 
के दौरान महात्मा गांधी के साथ पंडित नेहरू
 
यह हमारे प्रदेश के लिए सौभाग्य की बात थी कि हमारे प्रदेश के आईपीएस कैडर के अधिकारी श्री के एफ  रुस्तमजी को छह वर्ष तक देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सुरक्षा करने का अवसर मिला। उन्हें 1952 में नेहरू जी की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी। वे नेहरू जी के साथ बिताए गए समय के अनुभवों को अपनी डायरी में नोट करते रहे। बाद में इन्हें एक किताब के रूप में प्रकाशित किया गया। इस किताब के  प्रकाशन में भी हमारे प्रदेश के दो आईपीएस अधिकारियों की प्रमुख भूमिका थी। यह दो अधिकारी थे श्री राजगोपाल और श्री के एस ढिल्लों।

नेहरू जी की जयंती के अवसर पर मैं उस किताब में प्रकाशित कुछ संस्मरणों को एक लेख के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूं। किताब का शीर्षक है ‘आई वास नेहरूस शेडो’ (मैं नेहरू की परछाई था)। किताब पढ़ने से एहसास होता है कि नेहरू जी कितने महान इन्सान थे। वे कभी 8-10 साल के बच्चे नजर आते हैं और कभी एक महान, गंभीर, संवेदनशील, परिपक्व व्यक्ति नजर आते हैं। संस्मरणों से पता लगता है कि अपने देश से और देश की जनता से वे कितनी मोहब्बत करते थे। सच पूछा जाए तो उनसे बड़ा देशभक्त होने का दावा कोई नहीं कर सकता।

रुस्तमजी लिखते हैं उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने के कुछ समय बाद 1952 के अगस्त माह में मैं जवाहरलाल नेहरू के साथ कश्मीर गया। उस समय नेहरूजी की आयु 63 वर्ष थी, परंतु वे 33 वर्ष के युवक नजर आते थे। वे गोरे थे, अति सुंदर थे  और सभी को अपनी ओर खींचने वाले अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे। वे सेना के जवान के समान तेजी से चलते थे। चैंपियन के समान तैरते थे और लगातार 16 घंटे काम करते थे।

उनका स्वभाव घुमक्कड़ था। अवसर मिलने पर वे खुले मैदानों में टेंट में रहना पसंद करते थे। इसी तरह की यात्रा के दौरान एक दिलचस्प घटना हुई। 1952 में वे अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर थे। इंदिरा गांधी उनके साथ थी। यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात एक आदिवासी मुखिया से हुई। मुखिया ने उनसे कहा, “मैं तुम्हारी बेटी से शादी करना चाहता हूं”। नेहरु जी ने कहा, “वह तो विवाहित और उसके दो बच्चे हैं”। इस पर आदिवासी ने कहा, “क्या हुआ हमारे हमारे यहां तो रिवाज है कि हम बीवी के साथ बच्चे भी रख सकते हैं” ।

रुस्तमजी दो और महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख करते हैं। 1955 के मार्च में नेहरू जी नागपुर की यात्रा पर थे। एकाएक एक व्यक्ति नेहरू जी की कार पर चढ़ गया। उस व्यक्ति के हाथ में एक बड़ा सा चाकू था। नेहरू जी ने उससे पूछा, “क्या चाहते हो भाई” बस यह पूछकर नेहरू गंभीर होकर बैठे रहे। चेहरे पर चिंता की लकीर तक नहीं आई। एक दिन की बात है कि नेहरू जी बिना टोपी के तीन मूर्ति भवन (प्रधानमंत्री आवास) के एक गेट से बाहर निकले और बाद में दूसरे गेट से परिसर में प्रवेश करने लगे। गेट पर खड़े सुरक्षाकर्मी ने उन्हें रोक दिया। नेहरु जी ने अपना परिचय दिया पर वह मानने को तैयार नहीं था कि उसके सामने  नेहरुजी खड़े हैं। नेहरु जी की पहचान टोपी पहने हुए नेहरू की थी इसलिए सुरक्षाकर्मी उन्हें नहीं पहचान पाया। काफी देर तक नेहरू और सुरक्षाकर्मी के बीच विवाद होता रहा।

नेहरु जी ने एशिया और अफ्रीका के नवोदित देशों को एक मंच पर लाने में का महान प्रयास किया था। इसी महाप्रयास के तहत इंडोनेशिया के बांडुंग में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसी बीच नेहरू जी की श्रीलंका के प्रधानमंत्री सर जॉन कोटेलावाला से किसी मुद्दे पर गर्मागर्म बहस हो गई। बहस के दौरान नेहरू जी बहुत आक्रोशित हो गये। इसी बीच नेहरु जी ने अपना हाथ ऊंचा उठा लिया। ऐसा लग रहा था कहीं वे कोटा वाला को तमाचा न मार दें। इंदिराजी पास में ही खड़ी थी। उन्होंने हिंदी में नेहरू जी से कहा कि वे संयम रखें। इसके बाद भी दोनों के बीच बहस चलती रही। दोनों स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की तरह लड़ रहे थे। चीन के प्रधानमंत्री बीच में पड़े और अपनी टूटी-फूटी अंग्रेजी में उन्होंने दोनों को समझाने की कोशिश की। इसके थोड़े समय बाद नेहरु जी ने सम्मेलन को संबोधित किया। नेहरू जी का भाषण अद्भुत था।

रुस्तमजी एक और दिलचस्प घटना का उल्लेख करते हैं। नेहरू जी अजंता की गुफाओं की यात्रा पर गए। उनके साथ लेडी माउंटबेटन भी थी। इस बीच लेडी माउंटबेटन ने कॉफी पीने की फरमाइश की और वे दोनों कॉफी  पीने के लिए बैठ गये। मैंने वहां से खिसकना चाहा। जब भी मैं उठना चाहता तो नेहरु जी कहते बैठो हम लोगों के साथ पत्रकारों और फोटोग्राफरों का हुजूम था। नेहरू जी नहीं चाहते थे कि लेडी माउंटबेटन के साथ कॉफी पीने से कुछ गलतफहमी पैदा हो।

रुस्तमजी के बाद 1958 में श्री दत्त प्रधानमंत्री के मुख्य सुरक्षा अधिकारी बने। दत्त ने इस पुस्तक के संपादक को बताया कि जब भी लेडी माउंटबेटन आती थीं विदा होती थी तो नेहरु और लेडी माउंटबेटन एक दूसरे के गालों को चूमते थे। ऐसा करना पश्चिमी परंपरा है। इसके अलावा मैंने उन दोनों के बीच कुछ नहीं देखा। अतः  दोनों के संबंधों को लेकर नेहरू को बदनाम करने के लिए जो बातें  फैलाई जाती हैं, वह बेबुनियाद हैं।

जनता के बीच रहने में नेहरूजी को भारी आनंद आता था। नियमों के चलते जनसभाओं में प्रधानमंत्री के मंच और जनता के बीच में काफी दूरी रखी जाती थी। एक स्थान पर मंच और जनता के बीच में कटीले तार लगा दिए गए। नेहरूजी ने यह देखा तो मंच से कूदकर कटीले तार हटाने लगे। ऐसा करते हुए उनके हाथों से खून आने लगा। जब उन्हें बताया गया कि उन्हें ऐसा नहीं करना था तो उन्होंने कहा, कि “जनता और मेरे बीच में फासला मुझे पसंद नहीं है। यदि ऐसा आगे हुआ तो प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने में मैं नहीं हिचकूंगा” ।

किताब के मुखपृष्ठ पर एक अद्भुत फोटो छपी है। फोटो में नेहरू जी एक बच्चे के समान कार के बोनट पर बैठे हैं और कुछ खा रहे हैं। साथ में रुस्तमजी बैठे हैं। नेहरूजी हास्यप्रिय व्यक्ति भी थे। एक दिन रुस्तम जी ने नेहरू जी से पूछा “क्या मैं आपका फोटो ले सकता हू” इसपर नेहरूजी ने कहा “क्या मैं अपना फोटो साथ लेकर चलता हू”? रूस्तमजी ने जवाब दिया “नहीं मैं आपकी फोटो लेना चाहता हूँ” यह सुनकर नेहरुजी ने कहा, “एक अच्छा  फोटोग्राफर फोटो लेने के पहले इजाजत नहीं मांगता”। (12 नवंबर 2020)

 

शनिवार, 7 नवंबर 2020

Command Call

 Range training event at Fort Drum, N.Y 


Marine Corps Ashlee Ford repeats a command during a range training event at Fort Drum, N.Y., Nov. 6, 2020.

मंगलवार, 3 नवंबर 2020

20 कांग्रेसी कार्यकर्ताओ ने थामा भाजपा का दामन

3rd November 2020 at 5:49 PM

 यह सब जमालपुर मंडल के प्रधान भूपिंदर राय के प्रयासों से हुआ 

लुधियाना: 3 नवम्बर 2020: (पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी टीम)::

किसान आंदोलन और अकाली दल द्वारा गठबंधन तोड़ कर भाजपा का साथ छोड़ने के बावजूद भाजपा का जादू पंजाब में कम हुआ नहीं लगता। अभी भी लोग भाजपा में शामिल होना फायदे का सौदा समझते हैं। भाजपा ने दावा किया है की कांग्रेसी वर्कर अपनी पार्टी छोड़ कर भाजपा में आ मिले हैं। इस संबंध में बकदा एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की गई।  

भाजपा के जमालपुर मंडल के प्रधान भूपिंदर राय के प्रयासों से 20 कांग्रेसी कार्यकर्ताओ ने भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा के ज़िला प्रधान पुष्पेंद्र सिंगल ने कमांडर बलबीर सिंह के निवास स्थान पर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को सिरोपा डालकर पार्टी में शामिल किया जिसकी अध्यक्षता भाजपा के जमालपुर मंडल के प्रधान भूपिंदर राय ने की।  जिन लोगों के कांग्रेस छोड़ कर आने का दावा भाजपा ने किया है उनमें शामिल हैं-गुगु जमालपुर,सनी जमालपुर, बॉबी जमालपुर,पबिन्द्र सिंह, बलदेव सिंह, अनमोल, विक्की, सूंदर, देश राज, सूरज, बादल, ऋतिक शर्मा, संदीप सिंह, सतनाम सिंह, जसपाल सिंह,अशोक कुमार, जतिंदर दीपक आदि शामिल हैं। भाजपा की प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक इन लोगों ने कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह कर भाजपा को चुना। प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक भाजपा छोड़ने वालों ने वायदा भी किया कि आने वाले  2022 के विधासनसभा चुनावों में वह भाजपा के साथ डट कर खड़े रहेंगे।  

भाजपा ज़िला प्रधान ने इन लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि हम साफ सुथरी एवं ईमानदार राजनीति में विश्वास रखते हैं तथा जो भी लोग पंजाब एवं पंजाब के हित की बात करता है उसका पार्टी में स्वागत है।

      इस मौके पर लुधियाना भाजपा के ज़िला महामंत्री राम गुप्ता, ज़िला उपाध्यक्ष-यशपाल जनोत्रा, मीडिया सचिव-मनमीत चावला, मनोज चौहान, कमांडर बलबीर सिंह, अवतार भाटिया, मनीष कुमार, एस के दुग्गल और विनोद जोशी भी उपस्थित थे। इसी बीच कुछ वरिष्ठ भाजपा सूत्रों का कहना है आने वाले दिनों में कई और लोग भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं क्यूंकि भाजपा अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बन गई है। भाजपा की नीतियों को दुनिया के कई हिस्सों में पसंद किया जाता है। 

शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

वरुण परुथी से सीखिए संवेदनशीलता और दिव्यता का अंदाज़

इसे कहते हैं मीडिया और कलम का दिव्य सदुपयोग  

लुधियाना: 31 अक्टूबर 2020: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::

मीडिया में होने के कारण बहुत से ख़ास लोगों से भेंट अक्सर ही आसानी से हो जाती है लेकिन इसके बावजूद बहुत से लोग छूट भी जाते हैं। इन्हीं में से होते हैं कुछ ख़ास लोग और कुछ आम लोगो। उन्हीने में से एक हैं वरुण परुथी। जिसके मन में आज के इस कारोबारी युग में इन्सानियत ज़िंदा है। 
वरुण परुथी एक बहुत ही लोकप्रिय एक्टर, यूटयूबर और सबसे बढ़ कर संवेदनशील इंसान हैं। मन में आया तो अपना यू टयूब चैनल बना लिया। आरम्भिक दौर में ही सफलता इतनी मिली कि नाम बुलंदी पर पहुँच गया। अब तो उनकी पोस्टें लघु फ़िल्में जैसी महसूस होती हैं। कम बजट के बावजूद बहुत ही बड़ा संदेश देने वाली छोटी छोटी फ़िल्में। उन की बनाई गयी फ़िल्में आम तौर पर उन विषयों पर होती हैं जिनसे बहुत से लोग अक्सर किनारा कर जाते हैं। यूटयूब पर अपना अपना वैब चैनल चलाने वालों में से भी बहुत से अच्छे पत्रकार भी उन विषयों पर काम करना ठीक नहीं समझते क्यूंकि उनसे कोई पैसा आम तौर पर नहीं मिलता। लेकिन वरुण परुथी तो अनूठे निकले। उनकी अधिकतर  पोस्टें तकरीबन तकरीबन इसी तरह के विषयों पर मिलेंगी। 
त्योहारों का मौसम हो या ज़िंदगी की कड़की दिखाने वाले हालात वरुण परुथी उन्हीं विषयों को चुनते हैं जो ज़िंदगी के उन्हीं रंगों को दिखाते हैं जिन्हें गर्दिश के रंग कहा जाता है। सुना है गर्दिश के उन अंधेरे दिनों में तो अपना साया भी साथ छोड़ जाता है। गरीबी और दरिद्रता में अपने रिश्तेदार भी कोई रिश्ता रखना ठीक नहीं समझते। इस बेहद नाज़ुक दौर में ही वरुण परुथी याद दिलाते हैं की इंसानियत का रिश्ता इसी वक़्त में निभाना ज़रूरी होता है। ज़ाहि वक़्त होता है जब अपने अंदर छुपी दिव्यता को आप दुनिया  मिसाल बन कर सामने लाएं लेकिन बिना किसी को कुछ भी जताने के। चुपचाप बहुत ही ख़ामोशी से अपनी सहायता का हाथ ज़रूरतमंद लोगों की तरफ बढ़ाएं।
इसी पोस्ट के आरम्भ में दी गयी वीडियो देखने में कोई दिक्क्त आए तो आप उसे यहां क्लिक करके भी देख सकते हैं--

वरुण परुथी बहुत ही मासूमियत से पूछते हैं
दीपावली पर भी खुशियां न बांटी तो कब आयेगा ऐसा दिन? वह नहीं चाहते आप अपने बेशुमार धन दौलत का उपयोग केवल नई नई गाड़ियां खरीदने, कोठियां खरीदने या अपनी व्यक्तिगत प्रसन्नता के लिए करें। वह बहुत ही प्रभावी  देते हैं थोड़ा सा वक़्त और थोड़ा सा धन उनके लिए भी खर्च करो जिनके पास किसी भी भयउ वजह से कुछ नहीं बचा। अगर आपने उन्हें देख कर भोई नज़रअंदाज़ कर दिया तो आप कभी भी सच्ची खुशियां हासिल न कर पाएंगे।  

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

चार्ली हेब्डो कार्टून और समकालीन विश्व में ईशनिंदा कानून

  राम पुनियानी                                                                  28 अक्टूबर 2020  

Lyon France में पुलिस की मौजूदगी-फाईल फोटो जिसे क्लिक किया Ev (Unsplash) ने 

रूसी मूल के 18 साल के मुस्लिम किशोर द्वारा फ्रांस के स्कूल शिक्षक सेम्युअल पेटी की हत्या ने एक अंतर्राष्ट्रीय विवाद को जन्म दे दिया है। एक ओर फ्रांस के राष्ट्रपति ने मृत शिक्षक का समर्थन करते हुए राजनैतिक इस्लाम का मुकाबला करने की घोषणा की है तो दूसरी ओर, तुर्की के राष्ट्रपति एर्डोगन ने फ्रांस के राष्ट्रपति के बारे में अत्यधिक अपमानजनक टिप्पणी की है। प्रतिक्रिया स्वरूप, फ्रांस ने तुर्की से अपने राजदूत को वापिस बुलवा लिया है। इस दरम्यान अनेक मुस्लिम देशों ने फ्रांस के उत्पादों का बहिष्कार प्रारंभ कर दिया है। इसके साथ ही अनेक मुस्लिम देशों ने फ्रांस के राष्ट्रपति के विरूद्ध अपना आक्रोश व्यक्त किया है। पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत अनेक मुस्लिम देशों में विरोध प्रकट करने के लिए लोग सड़कों पर भी उतरे। 

लेखक डा. राम पुनियानी 
पेटी अपनी कक्षा में अभिव्यक्ति की आजादी का महत्व समझा रहे थे और अपने तर्कों के समर्थन में उन्होंने ‘चार्ली हेब्डो’ में प्रकाशित कार्टून बच्चों को दिखाए. इसके पहले उन्होंने कक्षा के मुस्लिम विद्यार्थियों से कहा कि अगर वे चाहें तो क्लास से बाहर जा सकते हैं. यहां यह उल्लेखनीय है कि चार्ली हेब्डो के कार्टूनिस्टों की 2015 में हुई हत्या का मुकदमा अदालत में प्रारंभ होने वाला है. इस संदर्भ में यह जिक्र करना भी उचित होगा कि चार्ली हेब्डो ने पैगम्बर का उपहास करने वाले कार्टूनों का पुनर्प्रकाशन किया था. ये कार्टून इस्लाम और पैगम्बर मोहम्मद को आतंकवाद से जोड़ते हैं. इन कार्टूनों की पृष्ठभूमि में 9/11 का आतंकी हमला है जिसके बाद अमरीकी मीडिया ने ‘इस्लामिक आतंकवाद’ शब्द गढ़ा और यह शब्द जल्दी ही काफी प्रचलित हो गया. चार्ली हेब्डो में इन कार्टूनों के प्रकाशन के बाद पत्रिका के कार्यालय पर  हमला हुआ, जिसमें उसके 12 कार्टूनिस्ट मारे गए. इस हिंसक हमले की जिम्मेदारी अलकायदा ने ली. यहां यह  उल्लेखनीय है कि अलकायदा को पाकिस्तान स्थित कुछ मदरसों में बढ़ावा दिया गया. इन मदरसों में इस्लाम के सलाफी संस्करण का उपयोग, मुस्लिम युवकों के वैचारिक प्रशिक्षण के लिए किया जाता था. सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन मदरसों का पाठ्यक्रम वाशिंगटन में तैयार हुआ था. अलकायदा में शामिल हुए व्यक्तियों के प्रशिक्षण के लिए अमेरिका ने आठ अरब डालर की सहायता दी और सात हजार टन असला मुहैया करवाया.

इसके नतीजे में पिछले कुछ दशकों से अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच, विशेषकर पश्चिम एशिया, पर आतंकवाद छाया हुआ है. मुसलमानों में अतिवाद दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. इस बीच अनेक देशों ने ईशनिंदा कानून बनाए और कुछ मुस्लिम देशों ने ईशनिंदा के लिए मृत्युदंड तक का प्रावधान किया. इन देशों में पाकिस्तान, सोमालिया, अफगानिस्तान, ईरान, सऊदी अरब और नाईजीरिया शामिल हैं.

हमारे पड़ोसी पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक के शासनकाल में ईशनिंदा के लिए सजा-ए-मौत का प्रावधान किया गया था. इसके साथ ही वहां इस्लामीकरण की प्रवृत्तियां भी तेज हो गईं. इसका एक नतीजा यह हुआ कि इन देशों में इस्लाम का अतिवादी संस्करण लोकप्रिय होने लगा. इसका जीता-जागता उदाहरण आसिया बीबी हैं जिन्हें ईशनिंदा का आरोपी बनाया गया था. पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर की निर्मम हत्या कर दी गई क्योंकि उन्होंने न सिर्फ इस कानून का विरोध किया वरन् जेल जाकर आसिया बीबी से मुलाकात भी की. इसके बाद तासीर के हत्यारे का एक नायक के समान अभिनंदन किया गया.

इस्लाम के इतिहासकार बताते हैं कि पैगम्बर मोहम्मद के दो सौ साल बाद तक इस्लाम में ईशनिंदा संबंधी कोई कानून नहीं था. यह कानून नौवीं शताब्दि में अबासिद शासनकाल में पहली बार बना. इसका मुख्य उद्देश्य सत्ताधारियों की सत्ता पर पकड़ मजबूत करना था. इसी तरह, पाकिस्तान में जिया उल हक ने अपने फौजी शासन को पुख्ता करने के लिए यह कानून लागू किया. इसका लक्ष्य इस्लामी राष्ट्र के बहाने अपनी सत्ता को वैधता प्रदान करना था. सच पूछा जाए तो फौजी तानाशाह, समाज में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना चाहते थे. इसके साथ ही गैर-मुसलमानों और उन मुसलमानों, जो सत्ताधारियों से असहमत थे, को काफिर घोषित कर उनकी जान लेने का सिलसिला शुरू हो गया. पाकिस्तान में अहमदिया और शिया मुसलमानों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. ईसाई और हिन्दू तो इस कानून के निशाने पर रहते ही हैं.

अभी हाल में (25 अक्टूबर) एक विचारोत्तेजक वेबिनार का आयोजन किया गया. इसका आयोजन मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी नामक संस्था ने किया था. वेबिनार में बोलते हुए इस्लामिक विद्वान जीनत शौकत अली ने कुरान के अनेक उद्वरण देते हुए यह दावा किया कि पवित्र ग्रंथ में इस्लाम में विश्वास न करने वालों के विरूद्ध हिंसा करने की बात कहीं नहीं कही गई है (कुरान में कहा गया है ‘तुम्हारा दीन तुम्हारे लिए, मेरा दीन मेरे लिए’). वेबिनार का संचालन करते हुए जावेद आनंद ने कहा कि ‘‘हम इस अवसर पर स्पष्ट शब्दों में, बिना किंतु-परंतु के, न केवल उनकी निंदा करते हैं जो इस बर्बर हत्या के लिए जिम्मेदार हैं वरन् उनकी भी जो इस तरह के अपराधों को प्रोत्साहन देते हैं और उन्हें उचित बताते हैं. हम श्री पेटी की हत्या की निंदा करते हैं और साथ ही यह मांग करते हैं कि दुनिया में जहां भी ईशनिंदा संबंधी कानून हैं वहां उन्हें सदा के लिए समाप्त किया जाए’’.

इस वेबिनार में जो कुछ कहा गया वह महान चिंतक असगर अली इंजीनियर की इस्लाम की विवेचना के अनुरूप है. असगर अली कहते थे कि पैगम्बर इस हद तक आध्यात्मिक थे कि वे उन्हें भी दंडित करने के विरोधी थे जो व्यक्तिगत रूप से उनका अपमान करते थे. इंजीनियर, पैगम्बर के जीवन की एक मार्मिक घटना का अक्सर उल्लेख करते थे. पैगम्बर जिस रास्ते से निकलते थे उस पर एक वृद्ध महिला उन पर कचरा फेंकती थी. एक दिन वह महिला उन्हें नजर नहीं आई. इस पर पैगम्बर तुरंत उसका हालचाल जानने उसके घर गए. यह देखकर वह महिला बहुत शर्मिंदा हुई और उसने इस्लाम स्वीकार कर लिया.

यहां यह समझना जरूरी है कि आज के समय में इस्लाम पर असहिष्णु प्रवृत्तियां क्यों हावी हो रही हैं? इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जब मुस्लिम शासकों ने इन प्रवृत्तियों का उपयोग सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए किया. वर्तमान में इस प्रवृत्ति में नए आयाम जुड़ गए हैं. सन् 1953 में ईरान में चुनी हुई मोसादिक सरकार को इसलिए उखाड़ फेंका गया क्योंकि वह तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करने वाली थी. यह सर्वविदित है कि इन कंपनियों से  अमेरिका और ब्रिटेन के हित जुड़े हुए थे. समय के साथ इसके नतीजे में कट्टरपंथी अयातुल्लाह खौमेनी ने सत्ता पर कब्जा कर लिया. वहीं दूसरी ओर अफगानिस्तान पर सोवियत कब्जे के बाद अमेरिका ने कट्टरवादी इस्लामिक समूहों को प्रोत्साहन दिया. इसके साथ ही मुजाहिदीन, तालिबान और अलकायदा से जुड़े आतंकवादियों को प्रशिक्षण देना भी प्रारंभ किया. नतीजे में पश्चिमी एशिया में अमेरिका की दखल बढ़ती गई जिसके चलते अफगानिस्तान, ईराक आदि पर हमले हुए और असहनशील तत्व हावी होते गए जिसके चलते पेटी की हत्या जैसी घटनाएं होने लगीं.

ईशनिंदा एवं ‘काफिर का कत्ल करो’ जैसी प्रवृत्तियों को कैसे समाप्त किया जाए, इस पर बहस और चर्चा आज के समय की आवश्यकता है. 

(हिंदी रूपांतरणः अमरीश हरदेनिया) 

(लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

शनिवार, 24 अक्तूबर 2020

किसी मनुष्य को कुत्ता कह कर कुत्ते का अपमान न करें

 गौर कीजिये-बहुत सी विशेषताएं हैं कुत्तों में जनाब!
*इस यादगारी और भवनात्मक तस्वीर को क्लिक किया जानेमाने कैमरामैन Atharva Tulsi (Unsplash) ने 

लुधियाना: 24 अक्टूबर 2020: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::

ये बोला दिल्ली के कुत्ते से गाँव का कुत्ता!
कहाँ से सीखी अदा तू ने दुम दबाने की!
वो बोला दुम के दबाने को बुज़-दिली न समझ!
जगह कहाँ है यहाँ दुम तलक हिलाने की!
                                       ---साग़र ख़य्यामी

यह तस्वीर दिल्ली में बने हुए किसी पुराने बादशाह के मकबरे की है लगता है तस्वीर में नज़र आ रहे कुत्ते ने कई दिनों से नहाने की ज़रूरत भी नहीं समझी या फिर नहाने जितना पानी ही उसे उपलब्ध नहीं हुआ क्यूंकि पानी के बंटवारे को लेकर तो लड़ाई झगड़ों का माहौल गरमाया हुआ है। इस हालत के बावजूद यह कुत्ता खुश लग रहा है। शायद इसी लिए कहा जाता है कि कुत्ते दरवेश होते हैं। इस संबंध में कई कहानियां भी प्रचलित हैं।  कुत्तों को भूत-प्रेत भी नज़र आ जाते हैं। जहाँ भी रहते हैं वहां के परिवार में मृत्यु की दस्तक आने पर कुत्ते उसे झट से पहचान लेते हैं और भौंकना शुरू कर देते हैं या रोना शुरू कर देते हैं।  बहुत से लोगों ने देखा होगा की जब कोई कुत्ता रोने लगता है तो कुछ ही घंटों में उस गली के किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है। समझना आ जाए तो ये अपनी भाषा में बहुत सी काम की बातें भी कहते हैं। 

बहुत से अघोरी और अन्य साधु भी कुत्तों को अपने साथ रखना ज़रूरी समझते हैं। इस बात को न भी माना जाये तो भी इसकी वफादारी तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इसकी सूंघने की शक्ति और इसकी मेघा भी बहुत विशेष होती है। पुलिस और सेना में कुत्ते बहुत ही काम के होते हैं। पहले तो कुत्तों के वृद्ध होने पर सेना में उन्हें गोली मार कर मार दिए जाने का चलन भी था लेकिन अब इसे सुधारा जा रहा है। वृद्धा अवस्था में कुत्तों के पुनर्वास करने की बातें भी सुनी गई हैं। बहुत से अमीर लोगों के परिवारों में कुत्तों को विशेष सम्मान मिलता है। जो परिवार कुत्तों को पालने के शौक़ीन हैं वे इसे पारिवारिक सदस्य की तरह ही स्नेह करते हैं। अब सरकारें भी लोगों की इस भावुक कमज़ोरी को समझ गई हैं और उनके पालने पर नई नई किस्म के टेक्स और खर्चे घोषित हो रहे हैं। कुत्ते पालना अब महंगा सौदा हो गया है। 

इसी बीच कई बरसों से कुत्तों का कारोबार बहुत मुनाफा भी देने लगा है। छोटे छोटे पिल्लै बहुत महंगे भाव पर बिकते हैं। कुत्तों के अच्छे कारोबारी कुत्तों को  समय उन्हें सबंधित टीके इत्यादि लगवा कर ही बेचते हैं। 
इससे उन्हें हलकाने या कोई अन्य रोग नहीं होता। जब भी इतिहास लिखा गया तो यह बात दर्ज रहेगी कि जब लोग अपने परिवारों और देशों के साथ वफादारी भूल गए थे तो उस स्वार्थ भरे दौर में भी कुत्ते वफ़ादारी की मिसाल बने रहे। 

इस लिए एक निवेदन है आप सभी से। जब भी किसी आज के किसी तथाकथित इंसान, बेवफा व्यक्ति, धोखेबाज़ मित्र या ऐसे किसी भी अन्य मनुष्य को गाली देने का मन करे तो कृपया उसे कुत्ता कह कर कुत्ते का अपमान न करें। 

शनिवार, 12 सितंबर 2020

ग्रीस द्वीप में नई आग लगने से बचे-कुछे आवास भी नष्ट, हज़ारों लोग बेघर

Saturday: 12th September 2020 at 5:34 AM
 मंगलवार को लगी आग बार बार लग रही है 
ग्रीस के लेसबॉस द्वीप स्थित पंजीकरण व पहचान केन्द्र में ठहराए गए कुछ बच्चे खेलते हुए. (15 दिसम्बर 2018) ©UNICEF/Ron Haviv VII Photo
11 सितम्बर 2020//प्रवासी और शरणार्थी
ग्रीस के एक द्वीपीय केन्द्र लेसबॉस में नए सिरे से लगी आग ने वहाँ ठहराए गए हज़ारों शरणार्थियों व प्रसावियों के लिये आवासों को नष्ट कर दिया है। इससे पहले मंगलवार शाम को भी वहाँ आग लग चुकी है जिसमें बड़ी संख्या में इन शरणार्थियों व प्रवासियों के आवासों को नुक़सान पहुँचा था। 

संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने शुक्रवार को एक चेतावनी जारी करके कहा कि लेसबॉस में बुधवार और गुरूवार को आग की नई लहर के बाद हर उम्र के लोग बेघर हो गए हैं। 

मंगलवार, बुधवार और गुरूवार को लगी इस आग के कारणों की जानकारी नहीं मिली है। 

यूएन शरणार्थी एजेंसी की प्रवक्ता शाबिया मण्टू ने बताया, “ताज़ा आग ने मोरिया पंजीकरण व पहचान केन्द्र के आसपास के स्थानों को प्रभावित किया है... जिससे वहाँ बचे-खुचे आवासों को भी नष्ट कर दिया है।”

प्रवक्ता ने कहा कि इस आग में किसी के हताहत होने कि ख़बर नहीं है लेकिन इस आग के कारण ऐसे लगभग साढ़े 11 हज़ार लोग बिना किसी आवास के रह गए हैं जो शरण की माँग करने के लिये वहाँ थे. अब उन सभी को खुले स्थानों में रहना और सोना पड़ रहा है। 

रास्तों, मैदानों और तटों पर गुज़ारा
यूएनएचसीआर की प्रवक्ता शबिया मण्टू के अनुसार इस आग से प्रभावितों में लगभग 2 हज़ार 200 ऐसी महिलाएँ और 4 हज़ार बच्चे हैं जिन्हें सड़कों, खुले मैदानों और तटों पर रहना और सोना पड़ रहा है।  

“इनमें बहुत नाज़ुक स्वास्थ्य हालात का सामना कर रहे लोग, बहुत छोटी उम्र के बच्चे, गर्भवती महिलाएँ और विकलांग जन शामिल हैं।”

मोरिया पंजीकरण व पहचान केन्द्र शिविर में ज़रूरत से ज़्यादा संख्या में प्रवासी और शरणार्थी रहने को मजबूर हैं, जबकि ये केन्द्र शुरू करते समय वहाँ इतनी संख्या की अपेक्षा नहीं की गई थी। 

मंगलवार को लगी शुरुआती आग के बाद अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) ने कहा था कि 12 हज़ार 600 से ज़्यादा प्रवासी और शरणार्थी विस्थापित हो गए थे और वहाँ बनाए गए आवासों में से लगभग 80 प्रतिषत राख में तब्दील हो गए थे. वो सुविधा केन्द्र केवल 3 हज़ार लोगों को ठहराने के इरादे से बनाया गया था। 

प्रवासन संगठन ने कहा था कि इस आग के बाद जो लोग बेघर हो गए उनमें लगभग 400 ऐसे बच्चे भी हैं जिनको सहारा देने के लिये कोई भी उनके साथ नहीं है। 

बाद में प्रवासन संगठन ने योरोपीय आयोग के उस निर्णय का भी स्वागत किया जिसमें इस द्वीपीय स्थान से लोगों को कहीं और भेजने पर आने वाला वित्तीय ख़र्च वहन करने की बात कही गई है। 

बेल्जियम, नॉर्वे आए मदद के लिये
इस आग संकट में मदद करने के लिये आगे आईं यूएन एजेंसियों में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने शुक्रवार को कहा कि वो ग्रीस सरकार से अनुरोध मिलने के बाद पंजीकरण व पहचान केन्द्र के लिये दो चिकित्सा दल भेज रहा है। 

संगठन प्रवक्ता फ़देला चाएब ने कहा, “हमारे पास एक टीम बेल्जियम से और दूसरी नॉर्वे से है. ये टीमें घटनास्थल पर शनिवार और सोमवार को पहुँचने की योजना पर काम कर रही हैं जो वहाँ स्वास्थ्य समन्वय प्रकोष्ठ बनाएँगे जिनमें प्रभावित लोगों की ज़रूरतों के अनुसार स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया कराई जा सकें।”

विश्व स्वास्थ्य संगठन घटनास्थलों पर ऐसी मौजूदा चिकित्सा सेवाओं की क्षमता बढ़ाने के लिये चिकित्सा सामान की आपूर्ति का भी इन्तेज़ाम कर रहा है जो या तो बाधित हुई हैं या जिन्हें कुछ ज़्यादा नुक़सान पहुँचा है। 

तनाव
यूएन शरणार्थी एजेंसी ने आग से प्रभावित और बेघर हुए लोगों के साथ शुक्रवार को एकजुटता दिखाते हुए सभी से संयम बरतने और ऐसी किसी कार्रवाई या गतिविधि से बचने का आग्रह किया जिससे किसी तरह का तनाव भड़क सकता हो। 

यूएनएचसीआर ने योरोपीय संघ और सम्बन्धित सरकारों से मोरिया और ग्रीस के अन्य द्वीपों में शरण चाहने वालों और शरणार्थियों की समस्याओं का दीर्घकालीन हल निकालने की अपनी अपील फिर दोहराई है। 
ग्रीस के लेसबॉस द्वीप स्थित पंजीकरण व पहचान केन्द्र में ठहराए गए कुछ बच्चे खेलते हुए. (15 दिसम्बर 2018)© UNICEF/Ron Haviv VII Photo
ग्रीस के लेसबॉस द्वीप स्थित पंजीकरण व पहचान केन्द्र में ठहराए गए कुछ बच्चे खेलते हुए. (15 दिसम्बर 2018)
    

सोमवार, 17 अगस्त 2020

जनजातीय स्वास्थ्य और पोषण पोर्टल–‘स्‍वास्‍थ्‍य’ का शुभारंभ

प्रविष्टि तिथि: 17 August 2020 at 4:25 PM by PIB Delhi
 राष्ट्रीय प्रवासी और राष्ट्रीय जनजातीय फैलोशिप पोर्टल भी साथ होगा 
नई दिल्ली: 17 अगस्त 2020: (पीआइबी//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::
आदिवासी और जनजातीय वर्गों के लिए जो जो कदम सरकार उठाती है उनका सही विवरण आम जनता तक नहीं पहुंच पाता। परिणाम यह होता है कि इन वर्गों और इन क्षेत्रों के अम्बन्ध में एक धुंध सी पसरने लगती है। इस धुंध में सच क्या है और झूठ क्या है इसका कुछ पता ही नहीं लगता। आज इन वर्गों पर विशेष पोर्टल लांच होने से इस धुंध को हटाने में काफी सहायता मिलेगी। इस पोर्टल के लांच होने का पूरा विवरण दिया है पत्र सूचना कार्यालय ने। 
इसी पोर्टल से साभार ली गई तस्वीर
पीआईबी ने बताया कि जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा आज कई पहलों की घोषणा की हैं जिनमें जनजातीय स्वास्थ्य एवं पोषण पोर्टल ‘स्‍वास्‍थ्‍य’ और स्वास्थ्य तथा पोषण पर ई-न्यूजलेटर ‘आलेख’, राष्‍ट्रीय प्रवासी पोर्टल और राष्‍ट्रीय जनजातीय फैलोशिप पोर्टल शामिल हैं। इस अवसर पर केन्‍द्रीय जनजा‍तीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा, जनजातीय कार्य राज्य मंत्री श्रीमती रेणुका सिंह सरुता, कैबिनेट सचिवालय में सचिव (समन्वय), श्री वी.पी. जॉय और जनजातीय कार्य मंत्रालय में सचिव श्री दीपक खांडेकर उपस्थित थे। जनजातीय कार्य मंत्रालय के संयुक्‍त सचिव श्री नवलजीत कपूर ने मंत्रालय के डैशबोर्ड के कार्य निष्‍पादन के बारे में प्रस्‍तुति दी, जिसमें 11 योजनाओं के परिणाम संकेतक तथा मंत्रालय की पहल का प्रदर्शन किया गया। 
इस पोर्टल पर जनजातीय जीवन को दर्शाती जीवंत तस्वीरें इसे बहुत ही आकर्षक बनाती हैं। जनजातीय वर्गों के स्वास्थ्य और लाईफस्टाईल की एक झलक मिलती है इस सामग्री में। 
श्री अर्जुन मुंडा ने आदिवासी स्वास्थ्य और पोषण पर ‘स्वास्‍थ्‍य’ नामक ई-पोर्टल का उद्घाटन किया, जो अपने किस्‍म का पहला ऐसा ई-पोर्टल है जो एक ही मंच पर भारत की जनजातीय आबादी के स्वास्‍थ्‍य और पोषण संबंधी जानकारी उपलब्ध कराता है। ‘स्‍वास्‍थ्‍य’ साक्षों, विशेषज्ञता और अनुभवों के आदान-प्रदान की सुविधा के लिए भारत के विभिन्‍न हिस्‍सों से एकत्र की गई नवाचारी प्रक्रियाओं, शोध रिपोर्टों, मामला अध्‍ययनों, श्रेष्‍ठ प्रक्रियाओं को साझा करेगा। जनजातीय कार्य मंत्रालय ने स्‍वास्‍थ्‍य और पोषण के लिए ज्ञान प्रबंधन हेतु उत्‍कृष्‍टता केन्‍द्र के रूप में पीरामल स्वास्थ्य को मान्‍यता दी है। यह केन्‍द्र लगातार मंत्रालय से जुड़ा रहेगा और भारत की जनजातीय आबादी के स्‍वास्‍थ्‍य और पोषण से संबंधित साक्ष्‍य आधारित नीति और निर्णय लेने के लिए इनपुट उपलब्‍ध कराएगा। यह पोर्टल http://swasthya.tribal.gov.in एनआईसी क्लाउड पर होस्ट किया गया है। कुल मिला कर यह बहुत सहजता से चलने वाला आसान सा पोर्टल है जिसका संचालन बहुत ही सुगम और सहज है।
इसी पोर्टल से साभार ली गई एक अन्य तस्वीर
श्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता हमारे प्रधानमंत्री की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। हालांकि समय के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों में काफी सुधार हुआ है लेकिन जनजातीय और गैर-जनजातीय आबादी के बीच अंतर बना हुआ है। हम इस अंतर को पाटने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मुझे खुशी है कि स्‍वास्‍थ्‍य पोर्टल बहुत अच्‍छा काम करेगा। इस पोर्टल की शुरुआत देश की जनजातीय आबादी की सेवा करने के बड़े लक्ष्‍य की दिशा में पहला कदम है। सभी हितधारकों के सहयोग से मुझे मज़बूत होने और हमारे प्रधानमंत्री के विजन को पूरा करने की दिशा में बेहतर सेवा करने की उम्‍मीद है।  
उन्होंने गोइंग ऑनलाइन एज लीडर्स (जीओएएल) के माध्‍यम से फेसबुक के साथ भागीदारी में मंत्रालय की पहल के बारे में भी जानकारी दी। इस जीओएएल के माध्‍यम से मंत्रालय का उद्देश्‍य देश के 5000 जनजातीय युवाओं को सलाह देना और उन्‍हें अपने समुदाय के लिए ग्राम स्‍तर के डिजिटल युवा नेता बनाने में सक्षम करना है। उन्‍होंने कहा कि हम इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं। मुझे पूरी उम्‍मीद है कि यह पहल अपने उद्देश्‍यों को प्राप्‍त करेगी और जनजातीय युवाओं को अपने प्रभाव क्षेत्र में अग्रणी संसाधन बनाने के लिए सशक्‍त बनाएगी। इसके अलावा, उन्‍हें नेतृत्‍व कौशल प्राप्‍त करने अपने समाज में समस्‍याओं की पहचान करने, उनका समाधान करने और समाज की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के लिए अपने ज्ञान का उपयोग करने में भी समर्थ बनाएगी। जीओएएल कार्यक्रम को सभी हितधारकों का भारी समर्थन मिला है। इस कार्यक्रम के तहत 5 सितम्‍बर, 2020 को शिक्षक दिवस के अवसर पर मोबाइल वितरण और कार्यक्रम लॉन्‍च करने की भी घोषणा की गई।  
दिलचस्प बात है की जनजातीय जीवन की रिपोर्टिंग करते इस पोर्टल में जनजातीय महिलायों पर विशेष ध्यान दिया गया है। इन लडकियों और औरतों की तस्वीरें एक ऐसी झक दिखाती हैं कि इस जनजीवन को देखने की उत्सुकता सी भी पैदा होती है।
डीबीटी पोर्टल पर टिप्पणी करते हुए, श्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि जनजातीय कार्य मंत्रालय ने अभी हाल में डीबीटी मिशन के मार्गदर्शन के अधीन आईटी सक्षम छात्रवृत्ति योजना के माध्‍यम से जनजातीय लोगों के सशक्तिकरण के लिए 66वें स्कोच स्‍वर्ण पुरस्‍कार प्रदान किए हैं। यह भी जानकारी दी गई कि केपीएमजी द्वारा सामाजिक समग्रता पर केन्द्रित केन्‍द्र प्रायोजित योजनाओं के राष्‍ट्रीय आकलन ने जनजातीय कार्य मंत्रालय के प्रत्‍यक्ष लाभ हस्‍तांतरण पोर्टल को मान्‍यता दी है। इस पोर्टल को ई-गवर्नेंस में श्रेष्‍ठ प्रक्रिया अनुसूचित जनजाति के छात्रों को सेवा की आपूर्ति में पारदर्शिता, जवाबदेही और मौलिक सुधार के लिए अग्रणी माना गया है। फैलोशिप और प्रवासी छात्रवृत्ति के लिए ऑनलाइन आवेदन के शुरू होने के बारे में उन्‍होंने कहा कि राष्‍ट्रीय फैलोशिप और प्रवासी छात्रवृत्ति पोर्टल अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए बेहतर पारदर्शिता और आसान जानकारी उपलब्‍ध कराएगा। उन्‍होंने   प्रधानमंत्री द्वारा परिकल्पित डिजिटल इंडिया के सपनों को साकार करने की दिशा में उनके मंत्रालय द्वारा किए जा रहे असाधारण प्रयासों के बारे में भी जानकारी दी।
जनजातीय कार्य मंत्रालय के डैशबोर्ड के कार्य निष्‍पादन के बारे में उन्‍होंने कहा कि यह डैशबोर्ड अनुसूचित जनजातियों को सशक्‍त बनाने की दिशा में काम करने के लिए डिजिटल इंडिया का एक हिस्‍सा है जो सिस्‍टम में दक्षता और पारदर्शिता लाएगा। जनजातीय कार्य मंत्रालय और नीति आयोग द्वारा निर्धारित तंत्र के अनुसार एसटीसी घटक के तहत जनजातियों के कल्‍याण के लिए अपने बजट की आवंटित राशि को खर्च करने के लिए अपेक्षित 37 अन्‍य मंत्रालयों के कार्य प्रदर्शन को भी डैशबोर्ड पर विभिन्‍न पैरामीटर पर देखा जा सकता है। डैशबोर्ड को राष्‍ट्रीय सूचना केन्‍द्र के तहत सेंटर ऑफ एक्‍सीलेंस ऑफ डेटा एनेलिटिक्‍स (सीईडीए) संगठन द्वारा सार्वजनिक नाम http://dashboard.tribal.gov.in से विकसित किया गया है।  
श्रीमती रेणुका सिंह सरुता ने एक त्रैमासिक ई-न्‍यूज लेटर आलेख जारी किया। जनजातीय कार्य मंत्रालय की जनजातीय समुदायों के स्‍वास्‍थ्‍य और भलाई में सुधार के लिए प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए उन्‍होंने कहा कि मैं उन व्‍यक्तियों और संगठन के प्रति बड़ी आभारी हूं जो कोविड के दौरान अनुसूचित जनजाति के लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं उपलब्‍ध कराने में विशेष रूप से समुदाय की बेहतरी के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। मुझे उम्‍मीद है कि यह न्‍यूज लेटर हमारे सभी हितधारकों के काम का प्रदर्शन करने और उन्‍हें एक-दूसरे की सफलता और असफलताओं से सीखने के लिए प्रोत्‍साहित करेगा। मुझे खुशी है कि जीओएएल कार्यक्रम के माध्‍यम से जनजातीय कार्य मंत्रालय और फेसबुक संयुक्‍त रूप से जनजातीय युवाओं विशेष रूप से लड़कियों तक पहुंच रहे हैं और डिजिटल मंच के माध्‍यम से उनमें उद्यमशीलता कौशल विकसित कर रहे हैं। मुझे पूरा विश्‍वास है कि यह उन्‍हें सामाजिक और आर्थिक रूप से चैंपियन बनने हेतु सशक्‍त करेगा।
कैबिनेट सचिवालय में सचिव (समन्वय) श्री वी.पी. जॉय ने शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए ऑनलाइन आवेदन आमंत्रित करने के लिए राष्ट्रीय प्रवासी और राष्ट्रीय फैलोशिप पोर्टल का शुभारंभ किया। उन्होंने डीबीटी के माध्यम से सभी छात्रवृत्ति योजनाओं के संबंध में उत्कृष्ट डेटाबेस बनाने और डैशबोर्ड के माध्‍यम से पारदर्शिता और दक्षता लाने के लिए मंत्रालय के प्रयासों की सराहना की।
लॉग इन और डैशबोर्ड सिस्टम से इस पोर्टल से जुड़ने वाले लोगों को एक अपनत्व का अहसास भी होगा। उन्हें यह नहीं लगेगे कि यह कोई सरकारी पोर्टल है बल्कि यूं महसूस होगा कि यह हमारा ही पोर्टल है। हमारा अपना पोर्टल। 
  इस अवसर पर पीरामल फाउंडेशन के सीईओ श्री परेश परासनिस, पब्लिक हेल्‍थ नवाचार, पीरामल स्‍वास्‍थ्‍य के उपाध्‍यक्ष श्री शैलेन्‍द्र हेगड़े और फेसबुक से श्री रजत अरोड़ा उपस्थित थे। डिजिटल तकनीक की दुनिया में यह एक ऐसा कदम जो जन जन को जोड़ने में सहायक साबित होगा। 

क्या भाजपा सरकार में हट जायेगा शराब का कारोबार या माफिया?

 हर सत्ता में मजबूत और अडिग बना रहा शराब माफिया 
* लुधियाना की सभी 6 विधानसभाओं में ज़हरीली शराब पीने से हुई सैंकड़ों मौतों के बावजूद शराब माफिया के खिलाफ  कारवाई न होने के विरोध में भाजपा कार्यकर्ताओं ने कैप्टन सरकार के खिलाफ ज़ोरदार प्रदर्शन किया
* भाजपा का यह प्रदर्शन विषैली शराब कांड के पीड़ितों को न्याय सुनश्चित करने के लिए है--पुष्पेंद्र सिंगल
लुधियाना: 17 अगस्त 2020: (प्रदीप शर्मा इप्टा//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::
सरकारों को मोटी आमदन देने वाली शराब हर सत्ता में अजेय और सबसे प्रिय बनी रही। शराब का कारोबार लगातार तरक्की करता रहा। शराब के कारोबार को हर नाज़ुक समय में सुरक्षा प्रदान करने वाले लोग किसी गैंग की तरह काम करते रहे। किसी की हिम्मत न होती किसी शराब कारोबारी के खिलाफ कोई कुछ कह या कर सके। यह एक ऐसा कारोबार बन गया जो हर हाल में चलता था। सत्ता इतनी मेहरबान रहती कि देर रात तक ठेके बंद होने का नियम भी ताक पर रख दिया जाता। छोटे और आंधीं कारोबार बंद होते चले गए लेकिन शराब के ठेके बड़े बड़े डेकोरेटड शोरूम बनते चले गए। यह सारा सिलसिला अन्य सरकारों की तरह अकाली भाजपा सर्कार के समय भी जारी रहा। शराब का विरोध किसी सियासी मजबूरी या फैशन जैसा बन गया। विरोध करने वाले खुद भी शराब खरीदने/बेचने और पीने में एक दुसरे से आगे रहे। गिफ्ट के लिए शराब लोकप्रिय चीज़ बनती चली गई। इसी बीच बेलन ब्रिगेड का तूफ़ान उठा था जिसने कुछ उम्मीद दिलाई थी की शराब के इस कारोबार को बंद करवा के ही दम लेंगें लेकिन अनीता शर्मा की लाख कोशिशों के बावजूद यह अभियान भी बीच में ही दम तोड़ गया। 
भारतीय जनता पार्टी पंजाब प्रधान अश्वनी शर्मा के दिशा निर्देशों के मुताबिक ज़िला लुधियाना भाजपा के प्रधान पुष्पेंद्र सिंगल के नेतृत्व में जगह जगह विरोध प्रदर्शन किये गए। प्रदेश में जहरीली शराब पीने से हुई सैंकड़ों मौतों के बावजूद शराब माफिया पर के खिलाफ बड़ी कारवाई न होने के विरोध में भाजपा कार्यकर्ताओं ने कैप्टन सरकार के खिलाफ ज़ोरदार गुस्से का प्रदर्शन किया।
लुधियाना की सभी 6 विधान सभाओं के अंतर्गत आते सभी क्षेत्रों में यह रोष प्रदर्शन किया गया व पंजाब सरकार के खिलाफ हाथों में तख्तियां लेकर नारेबाजी भी की गयी। ज़िला प्रधान पुष्पेंद्र सिंगल ने कहा कि भाजपा का यह प्रदर्शन विषैली शराब कांड के पीड़ितों को न्याय सुनश्चित करने के लिए है और ऐसा तभी संभव है जब पीड़ितों के आरोपों के घेरे में आने वाले राजनीतिक शरण प्राप्त लोगों पर भी कड़ी कारवाई हो। सरकार केवल छोटी मछलियों पर कारवाई करके इस कांड के असली दोषियों को बचाने की फिराक में है जिसे भाजपा कतई बर्दाशत नहीं करेगी। खुद श्री सिंगल इन सभी धरनों की सफलता के लिए लगभग सभी स्थानों पर पहुंचे और कार्यकर्ताओं को संबोधन किया। हर जगह यह धरना प्रदर्शन कामयाब भी रहा। 
हल्का उत्तरी जालंधर बाई पास चौक में परवीन बंसल व ज़िला सचिव कांतेंदु शर्मा, हल्का केंद्रीय में आते शगुन पैलेस के बाहर शिंगार सिनेमा रोड पर गुरदेव शर्मा देबी व अश्वनी बहल व हल्का पश्चिम में पड़ते गुरुनानक भवन के बाहर पेट्रोल पंप के साथ फ़िरोज़पुर रोड पर कमल चेतली व ज़िला उपाध्यक्ष योगेंद्र मकोल, जिला महामंत्री सुनील मौदगिल की देखरेख में धरना पर्दर्शन किया गया। कुल मिलकर सारा कार्यक्रम सुनियोजित था। लेकिन किसी  नहीं दिया कि उनकी सर्कार आने पर शराब के कारोबार बंद क्र दिए जायेंगे। 
इसी तरह हल्का पूर्वी के ताजपुर मेन रोड पट्रोल पंप के पास पंजाब भाजपा के महासचिव जीवन गुप्ता, जिला उपाध्यक्ष राजेश्वरी गोसाई, हल्का आत्म नगर के प्रताप चौक नज़दीक संगीत सिनेमा के पास रविंदर अरोड़ा व ज़िला सचिव डॉ.निर्मल नय्यर व हल्का दक्षिण ग्यासपूरा,स्टेडियम वाला पार्क के साथ डॉ सुभाष वर्मा व सरदार तरनजीत सिंह की देखरेख में धरने प्रदर्शन हुए। 
          धरने पर्दर्शन में भाजपा जिला सचिव यशपाल जनोत्रा,पार्षद दल के नेता सुनीता शर्मा,युवा मोर्चा के प्रधान महेश शर्मा, मंडल प्रधान रोहित सिक्का, दीपक गुप्ता, राजिंदर शर्मा, अजय गुप्ता, हरीश सग्गड़, भाजपा उद्योग प्रकोष्ट पंजाब के प्रधान दिनेश सरपाल, संतोष कालड़ा, सुनील मेहरा, इन्दर अग्रवाल, ओमप्रकाश रतड़ा, यशपाल चौधरी, भाजपा पंजाब एस सी मोर्चा पंजाब के प्रधान राज कुमार अटवाल, एस सी मोर्चा के प्रधान सुखजीव बेदी, कैलाश चौधरी, दविंदर जग्गी, हरिंदर जॉली, राजीव शर्मा, पवन शर्मा, सीमा शर्मा, सुधा खन्ना, अवतार तारी, राजिंदर हंस, तजिंदर राजा, हरबंस लाल फैंटा, हरीश शर्मा, डॉ.सतीश कुमार, अभिषेक सिंगल, नीरज वर्मा, अंकित बत्रा, विक्की सहोता, नमन बंसल पार्षद ऐनी सिका, जोगिन्दर, विजय कुमार, अजिंदर सिंह, पंजाब किशन मोर्चा के उपाध्यक्ष दविंदर सिंह घुम्मन, पार्षद मनिंदर कौर घुम्मन, मंडलों के प्रधान आकाश गुप्ता,राजेश कश्यप,राकेश जग्गी,विजय दादू,सुकेश कालिया, संदीप पूरी, डा.परमजीत सिंह, अश्वनी मरवाहा, कुशाग्र कश्यप, मंजीत कौर, भाजपा खजांची बॉबी जिंदल, नवल जैन, राजकिशोर लकी, मंडल प्रधानों में जसदेव  तिवारी, तीर्थ तनेजा, भूपिंदर राय, रोम्मी मल्होत्रा, सर्वं तिवारी,मन्नू अरोड़ा, सुरेश मिगलानी, बलविंदर गरचा, प्रार्थना तिवारी, जसवीर कौर, संतोष, परमजीत कौर, क्रांति डोगरा, दीपक गोयल, दलबीर सिंह गिल बंटी, संजीव धीमान, मनोज महन, पंजाब उद्योग प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष राजीव शर्मा, संतोष, विजय कुमार, निर्मल सिंह संत, राजेश पांडेय, अमित सूद, सुरिंदर शर्मा, मंडल प्रधानों में पंकज शर्मा, सुरेश अग्रवाल, केवल गर्ग, पार्षद सोनिया शर्मा, कविता, संतोष, आशा शर्मा, सुनीता, कुलदीप सिंह मल्ही, विजय पूरी, बलविंदर सिंह, घ्यान सिंह, पवन भरद्वाज, पवित्र सिंह, सुनील सिंगला, अजय दुबे आदि भाजपा कार्यकर्ता  इस पर्दर्शन में शामिल हुए। क्या अकाली भाजपा सर्कार आने पर शराब का कारोबार रुक जायेगा?

स्वतंत्रता दिवस पर हुआ ट्राई सिटी चंडीगढ़ में महिला काव्य मंच का आयोजन

 पुरुष हो कर भी नारी कलमकारों को एकजुट करने में लगे हैं नरेश नाज़ 
चंडीगढ़: 16 अगस्त 2020: (पुष्पिंदर कौर//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)
स्वतंत्रता दिवस के सुअवसर पर यह सारा आयोजन यूं तो पंजाबी में था लेकिन हिंदी भाषी कविता का भी गर्मजोशी से स्वागत हुआ। नामी ग्रामी सक्रिय शायरा ऐमी ह्रदय अर्थात अमरजीत कौर हिरदे के प्रयासों और नरेश नाज़ साहिब के आशीर्वाद से ही यह सब सम्भव हो सका। आरम्भ किया ऐमी हृदय ने अपनी इन पंक्तियों से जिनमें उन सपनों का ज़िक्र है जिन सपनों में उसकी चाहत का हिन्दोस्तान है---
ख्वाबां दा तू दे दे मेरा हिंदुस्तान,
भाईचारक जागीर बनाना चाहनी आं।
तिन रंग मेरे मन विच जिहड़े दमक रहे ,
आज़ादी तस्वीर बनाना चाहनी आं।
"महिला काव्य मंच मोहाली" इकाई के अध्यक्ष अमरजीत कौर हृदय जी के इस शेयर ने सभी कवित्रीयों के ममतामई  मन के ख्वाबों  के भावों के समुद्र को एक घड़े में समेट दिया। यह सारा आयोजन सम्भव हो सका नरेश नाज़ के कारण क्यूंकि वह देश  के साथ साथ दुनिया भर की कवियत्रिओं को भर एक मंच पर लाने के प्रयासों में लगे हैं।
वास्तव में महिला काव्य मंच संस्था के  संस्थापक श्री नरेश नाज़ जी हैं। महिला काव्य मंच की स्थापना, जिस उद्देश्य को लेकर की गई है, वह नारी भाव कवि मन द्वारा बुने गए ख्वाबों के हिंदुस्तान के साथ अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में अग्रसर हुआ है।अपने कवि मन के भावों, एहसासों, जज्बातों और  उदगारों  को 'मन से मंच तक' लेकर आने के उद्देश्य से ही महिलाओं को यह मंच प्रदान किया है। जिसके अंतर्गत पूरे देश भर की कवित्रीयों को अपने कवि मन से उठे भावों को प्रकट करने के लिए इकाईयां बनाकर इस तरह के कवित्री सम्मेलन आयोजित किए जाते रहे हैं और किये जाते रहेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती शारदा मित्तल जी ने की जो महिला काव्य मंच की चंडीगढ़ ट्राई सिटी की अध्यक्ष हैं।   
उन्होंने अपने अध्यक्षीय  भाषण में भारत के गौरवमई इतिहास और सभ्यता के बारे में बताते हुए कहा कि शहीदों ने अपना बलिदान देकर इस धरती की रक्षा की है और हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने सभ्याचार और संस्कारों को संभालना पड़ेगा। तभी ख्वाबों के हिंदुस्तान की बुनियाद रखी जा सकेगी। उन्होंने कहा कि कवियों ने भारत की सांस्कृतिक विरासत के सकारात्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला है। अपना आशीर्वाद देते हुए, उन्होंने उपस्थित कवियों को इस तरीके से रचना जारी रखने और भारत की प्रगति और विकास के माध्यम से प्रेरित किया।
महिला काव्य मंच की मोहाली इकाई अध्यक्ष अमरजीत कौर हृदय ने अपनी योग्य प्रबंधन के साथ 15 अगस्त 2020  को 'मेरे ख्वाबों का हिंदुस्तान' शीर्षक मिसरे के लिए  विषय पर महिला काव्य सम्मेलन करवाया गया। इस कवियत्री सम्मेलन का सफल आयोजन किया।  मोहाली इकाई की तरफ से  इसमें सभी कवित्रीयों ने सचमुच ही अपने ख्वाबों के हिंदुस्तान को अपनी लेखनी के द्वारा चित्रित कर दिया। देश को स्वर्ग व परी देश जैसा, जिसमें कोई व्यक्ति भूखा, बिना घर के , नीच, पीड़ित, दलित, कशमित, दीन-हीन, ग़रीब बेरोजगार, नशेबाज शराबी कोई नहीं।  जिस उद्देश्य से शहीदों ने अपना खून बहा कर आजादी को लिया था। अध्यक्ष अमरजीत कौर हृदय जी ने अपनी ग़ज़ल में शेयरों के द्वारा एक ऐसे हिंदुस्तान की तस्वीर बनाई जिसमें धर्म नस्ल और जातिवाद भेदभाव से ऊपर उठ कर सब की  प्रगति व भाई-चारे की एकता को हमेशा रखने पर जोर दिया। उन्होंने कवित्रीयों और मानयोग मेहमानों का धन्यवाद किया। 
चडीगढ़ ट्राई सिटी की उपाध्यक्ष सुश्री राशि श्री वास्तव भी मंच पर मौजूद रही उन्होंनेे  सैनिकों के बलिदान पर कविता प्रस्तुत की: 
 देश की आन पर आए तो, पीछे नहीं हम हटते हैं,
 शेरों की ललकार है ,अब यह मुंह की खाएंगे ,
हारें गे वह हर बाजी जब जिद पर हम आ जाएंगे।
 सुनीता गर्ग   अध्यक्ष,  ट्राई सिटी पंचकुला ,गरिमा,   उपाध्यक्ष,  ट्राई सिटी पंचकुला, संगीता कुंद्रा अध्यक्ष,  ट्राई सिटी,  सुदेश नूर  जी मंच पर मौजूद रही । इस कवि सम्मेलन का मंच संचालन डॉ रुपिंदर कौर जी ने सभी कवित्रीयों की कविताओं की समीक्षा करते हुए किया। 
कारोना काल के अंतर्गत प्रचलन हो रहे कवि सम्मेलन की तरह इस प्रोग्राम को "मोहब्बत रेडियो और उनके फेसबुक पेज पर लाइव हो कर 30 के करीब कवित्रीयों को अपनी कविता प्रसारित करने  का सफल प्रयास करवाया गया। "गगन रेडियो की तरफ से भी  सहयोग मिले। इसीलिए उन का तहेदिल से धन्यवाद। आने वाली मासिक मीटिंग में कवित्रीयों को रेडियो की तरफ से प्रशंसा पत्र भी भेंट किए जाएंगे। यह इस नए प्रयोग की भी इस संस्था की तरफ से एक और उपलब्धि है।
इस कवियत्री दरबार में ट्राइसिटी की देश विदेश के अलग-अलग शहरों में बसी 30 के आस-पास कवित्रीयों ने भाग लिया। मंच की परंपरा के अनुसार प्रोग्राम का आरंभ नीरू मित्तल के सरस्वती वंदना के गायन से किया गया।  
दविंदर ढिल्लो ने टप्पे गा के  हिंदुस्तान की मिट्टी को याद किया:      
तंद चरखे ते पाँवा,
 मिट्टी ए हिंद दिए तेैनूं,
चुम मत्थे नैव लावां।
रेणु अब्बी 'रेणू'  ने अपने ख्वाबों के हिंदुस्तान को इस तरह पेश किया
मेरे ख्वाबों का हिंदुस्तान हम सबसे  , 
बड़ी मुश्किल से मिली आज़ादी , 
रखना इसे हिफाज़त  से।
डेज़ी बेदी जुनेजा ने अपनी कविता के माध्यम से मातृभूमि के लिए अपना प्यार व्यक्त किया:
कोटि कोटि नमन मेरी मातृभूमि को
तीन रंगों में तिरंगा इसकी पहचान है
सबसे अच्छा, सिर्फ मेरा भारत
शैलजा पांडेय कुंद्रा ने अपने शब्दों में देश की स्वतंत्रता के लिए किए गए बलिदानों का वर्णन किया:
कुछ ने मृत्युदंड की बात कबूल की है
इसलिए मुझे हवा में स्वतंत्रता मिली
इस कवि सम्मेलन में नीना सैनी, सुनीत मदान, संगीता राय,  मंजू बिस्ला, संगीता कुंद्रा, मीनू सुखमणि, हरप्रीत कौर प्रीत, अनीता गरेजा, नीरजा शर्मा ,सोनिमा सतिया ,सीता श्याम, शीला गहलावत सीरत, गीता उपधयाय, रेणुका चुग मिढ्ढा, शैलजा पांडे, मोनिका कटारिया, , आभा मुकेश साहनी, संगीता गर्ग, सुधा जैन सुधीप, डेज़ी  मनोरमा श्रीवास्तव और प्रभजोत ने भी हिस्सा लिया। 

रविवार, 16 अगस्त 2020

कोरोना की सहम भरी खामोशियों को तोडा एफ आई बी ने

गैर सरकारी तौर पर केवल हमने तिरंगा लहराया--डा. भारत 
लुधियाना: 16 अगस्त 2020: (पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::
इस बार कोरोना का कहर और ऊपर से लॉक डाउन। हर तरफ एक सहम भरी चुप्पी। हर गली मोहल्ले में खामोशियों का पहरा। ऐसे में आया स्वतंत्रता दिवस पहले की तरह जोशीला नहीं था। बंदिशों के चलते बड़े आयोजन करने सम्भव भी नहीं थे। कदम कदम पर सख्ती भी थी। अगर  कोई ऐसा कदम उठाने की कोशिश भी करता तो पुलिस बड़ी सख्ती से उसे रोक देती। इस के बावजूद FIB अर्थात फस्ट इन्फर्मेशन ब्यूरो के प्रमुख डाक्टर भारत और उनकी टीम निराश नहीं हुई। हाँ पहले की तरह रौनक मेला सम्भव नहीं था लेकिन फिर भी आयोजन तो हुआ। कोरोना के बावजूद इस आयोजन का सिलसिला लगातार जारी रहा। झंडा फहराने की रस्म के अवसर पर स्थानीय पार्षद जयप्रकाश विशेष तौर पर पहुंचे। 
बेलन ब्रिगेड की प्रमुख सुश्री अनीता शर्मा ने इस बार भी इस कार्यक्रम में पहुँच कर नशे के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की।  सशक्तिकरण की बात भी ज़ोर दे कर कही। उन्होंने ज़ोर दे कर कहा कि महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता मिले तो पूरे समाज को इसका फायदा होगा। 
भारतीय जनता पार्टी के महिला मोर्चा की राज्य सचिव मैडम सुधा खन्ना ने भी इस आयोजन की सफलता में अपना योगदान दिया। उन्होंने व्यस्तताओं के बावजूद कार्यक्रम की हर गतिविधि में भाग लिया। उन्होंने आश्वासन भी दिया की समाजिक उत्थान के लिए मैं हर पल तैयार हूं। 
इंडियन पीपलज़ थिएटर एसोसिएशन की  तरफ से प्रदीप शर्मा इप्टा भी पहुंचे। इन कार्यक्रमों के शानदार इतिहास में हर बार डाक्टर भारत के सक्रिय साथी रहे 85 वर्षीय उम्र लेकिन युवायों जैसे जोशीले ओंकार सिंह पूरी भी पूरी तरह सरगर्म रहे। 
एफ आई बी के ही सोनू शर्मा और राजू सहित अन्य लोग भी शुरू से लेकर आखिर तक कार्यक्रम में हाज़िर रहे।लडडू बांटे गए और झंडा फहराया गया। 
तिरंगे के साथ इश्क करने वालों ने कोरोना के सहम से भरी खामोशियों को तोड़ते हुए देश प्रेम से भरे जानदार गीत हर दिल तक सुनवाए। इसकी आवाज़ गली मोहल्ले के हर घर तक पहुंच रही थी। 
डाक्टर भारत ने इस सारे आयोजन के इतिहास की भी चर्चा की और संकल्प भी उठाया कि हम लगातार इस सिलसिले को जारी रखेंगे। साथ ही नशे की  रोकथाम पर भी विस्तृत चर्चा हुई। दक्रतर भारत ने कहा कि इस बार लुधियाना में केवल एक तो राजकीय आयोजन  गया और दूसरा हमने झंडा लहराया। कोरोना की दहशत भी हमें रोक नहीं सकी। हमने इस बार काफी सादगी से काम लिया और नियमों की पालना करते हुए स्वतंत्रता दिवस मनाया। 
पार्षद जयप्रकाश ने कहा कि नशे के कारोबार कोई कोई भी खबर किसी के पास भी हो तो वह उन तक पहुंचाए। हम उसका नाम पता गुप्त रखेंगे। नशे को जड़ से उखाड़ना हमारी सरकार  निशाना है।
इसी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मैडम अनीता शर्मा ने कहा की सभजी सरकारें सिर्फ बातें ही करती हैं नशे को जड़ से उखाड़ने के लिए वास्तव में कुछ नहीं करतीं। अब भी सरकार सख्ती करे तो बहुत से घरों को बचाया जा सकता है।    
          --कार्तिका सिंह 

सेलुलर जेल–बलिदान का मूर्त रूप

Posted On: 01 August 2017 a 8:34 PM
 विशेष लेख स्‍वाधीनता दिवस 2017                                                                    *एस. बालाकृष्‍णन 
*एस. बालाकृष्‍णन
“ओ, मेरी प्रिय मातृभूमि, तुम क्‍यों आंसू बहा रही हो?
विदेशियों के शासन का अंत अब होने को है!
वे अपना सामान बांध रहे हैं!
राष्‍ट्रीय कलंक और दुर्भाग्‍य के दिन अब लदने ही वाले हैं!
आजादी की बयार अब बहने को है,
आजादी के लिए तड़प रहे हैं बूढ़े और जवान!
जब भारत गुलामी की बेडि़यां तोड़ेगा,
‘हरि’ भी अपनी आजादी की खुशियां मनायेगा!’’
यह ‘हरि’ कौन हैं, जो अपनी आजादी की खुशियां मनाने को आतुर है? श्री बाबू राम हरि पंजाब के गुरदासपुर जिले के कादियां के रहने वाले थे और ‘स्‍वराज्‍य’ के संपादक थे। उन्‍हें अपने तीन संपादकीयों को ब्रिटिश हुक्‍मरानों द्वारा ‘राजद्रोह’ करार दिये जाने के कारण अंडमान की सेलुलर जेल में 21 वर्ष की कैद हुई थी।
इस तरह भारत की आजादी का ख्‍वाब संजोने वाले लोगों को ब्रिटिश हुक्‍मरानों द्वारा ऐसे ही बेरहमी से कुचला गया था। भयानक सेलुलर जेल, बलिदान की ऐसी ही एक वेदी थी। कालकोठरी की सजा के लिए इस विशेष तरह की कोठरियों के इंतजाम वाली (इसलिए इसे सेलुलर जेल का नाम दिया गया) इस जेल का नाम भारत की आजादी के संघर्ष के साथ अमिट रूप से जुड़ा हुआ है।
भारतीय बेस्टिल
सुभाष चन्‍द्र बोस ने उचित रूप से ही इस जेल को ‘भारतीय बेस्टिल’ कहकर पुकारा था। दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान, अंडमान पर जापानियों द्वारा जीत हासिल किए जाने के बाद 8 नवंबर, 1943 को जारी वक्‍तव्‍य में नेताजी ने कहा था, ‘‘जिस तरह फ्रांस की क्रांति के दौरान सबसे पहले पेरिस के बेस्टिल के किले को मुक्‍त कराकर वहां बंद राजनीतिक कैदियों की रिहाई कराई गई थी, उसी तरह भारत के स्‍वाधीनता संग्राम के दौरान अंडमान को भी, जहां भारतीय कैदी यातनाएं भोग रहे हैं, सबसे पहले मुक्‍त कराया जाना चाहिए।’’ (हालांकि, बाद में सहयोगी देशों ने इस द्वीप पर दोबारा कब्‍जा जमा लिया था।)
कैदियों की बस्तियां
ब्रिटिश उपनिवेश भारत और बर्मा में संगीन अपराधों के लिए दोषी ठहराये गये कैदियों के लिए बैंकोलिन (सर्वप्रथम 1787 में), मल्‍लका, सिंगापुर, अराकान और तेनास्‍सेरिम में कैदियों की बस्तियां स्‍थापित की गईं। अंडमान की जेल इस श्रृंखला की आखिरी कड़ी और भारतीय सरजमीं पर स्‍थापित होने वाली अपने किस्‍म की पहली जेल थी। हालांकि, इससे काफी पहले 1789 में ही पोर्ट कॉर्नवालिस, उत्तरी अंडमान में कैदियों की बस्‍ती स्‍थापित की गई थी, लेकिन सात साल बाद उसे खाली कर दिया गया था।
ब्रिटिश हुक्‍मरानों ने आजादी के प्रथम स्‍वाधीनता संग्राम (1857), को ‘सिपाहियों की बगावत’ का नाम दिया था और इसी के मद्देनजर कैदियों की बस्‍ती का विचार पुन: जीवित हो उठा। तथाकथित बागियों, भगोड़ों और विद्रोहियों को निर्वासित और कैद करने के लिए दूर-दराज के इलाके - अंडमान का चयन किया गया। 10 मार्च, 1858 को 200 ‘गंभीर राजनीतिक अपराधियों’ के पहले जत्थे ने दक्षिण अंडमान में पोर्ट ब्लेयर बंदरगाह के अंतर्गत चाथलाम द्वीप के छोर पर कदम रखा। 216 कैदियों का दूसरा जत्‍था पंजाब सूबे से आया। 16 जून, 1858 तक यहां पहुंचने वाले कैदियों की कुल तादाद 773 हो गई, 64 कैदियों ने अस्‍पताल में दम तोड़ दिया था, फरार होने और दोबारा हाथ न आने वाले कैदियों की संख्‍या 140 थी, एक कैदी ने आत्‍महत्‍या की थी, फरार होने के बाद दोबारा पकड़े जाने पर फांसी पर लटकाये गये कैदियों की संख्‍या 87 थी, यह जगह छोड़ने वाले कैदियों की संख्‍या 481 थी। 28 सितंबर, 1858 तक यहां करीब 1330 कैदी पहुंच चुके थे। 1858 और 1860 के बीच देश के कोने-कोने से लगभग 2,000-4,000 स्‍वाधीनता सेनानियों को अंडमान भेजा जा चुका था। दुखद बात यह है कि उनमें से अधिकांश ने जीने की और कार्य करने की बेहद पीड़ादायक परिस्थितियों के कारण दम तोड़ दिया। फरार होकर जंगल की ओर भागने वालों में से कोई भी जीवित न बच सका। बाद में आपराधिक मामलों में दोषी ठहराये गए लोगों को भी कड़ी सजा के लिए यहीं भेजा जाने लगा। एक सदी के बाद, 15 अगस्‍त, 1957 को पोर्ट ब्‍लेयर में ‘शहीद स्‍तम्‍भ’ प्राण न्‍यौछावर करने वाले अचर्चित और गुमनाम शहीदों को समर्पित किया गया।
सेलुलर जेल
ब्रिटिश हुक्‍मरानों को डर था कि राजनीतिक कैदी दूसरे कैदियों के बीच अपने क्रांतिकारी विचारों को फैलाने लगेंगे और उनके समूह के साथ घुलने-मिलने लगेंगे। लिहाजा, उन्‍होंने एक दूर-दराज के इलाके में कालकोठरियां बनाने का फैसला किया। इस प्रकार 1906 में कुख्‍यात सेलुलर जेल पूर्ण हो गई, जिसकी कालकोठरियों की संख्‍या बढ़कर 693 हो गई! जैसे-जैसे स्‍वाधीनता संग्राम जोर पकड़ने लगा, 1889 में पूना से 80 क्रांतिकारियों को निर्वासित कर यहां भेजा गया। जैसे-जैसे स्‍वाधीनता संग्राम में उफान आया, 132 लोगों (1909- 1921), उसके बाद (1932-38) में 379 लोगों को यहां भेजा गया। विभिन्‍न तरह के षडयंत्र के मामलों में शामिल राजनीतिक कैदियों को सेलुलर जेल भेजा गया। इनमें से कुछ मामलों में अलीपुर बम मामला (माणिकटोला षडयंत्र मामले के नाम से भी चर्चित), नासिक षडयंत्र मामला, लाहौर षडयंत्र मामला (गदर पार्टी के क्रांतिकारी), बनारस षडयंत्र मामला, चटगांव शस्‍त्रशाला मामला, डेका षडयंत्र मामला, अंतर-प्रांतीय षडयंत्र मामला, गया षडयंत्र मामला और बर्मा षडयंत्र मामला आदि शामिल हैं। इनके अलावा, वहाबी विद्रोहियों, मालाबार तट के मोपला प्रदर्शनकारियों, आंध्र के रम्‍पा क्रांतिकारियों, मणिपुर स्‍वाधीनता सेनानियों, बर्मा के थावरडी किसानों को भी अंडमान भेजा गया।
जेल में जीवन
सेलुलर जेल में जीवन विशेषकर शुरुआती कैदियों के लिए बेहद अमानवीय और बर्बर था। राजनीतिक कैदियों को बहुत कम भोजन और कपड़े दिये जाते थे और उनसे कड़ी मशक्‍कत कराई जाती थी। ऐसी कठोर मेहनत की आदत न होने के कारण वे अपना रोज के काम का कोटा पूरा नहीं कर पाते थे, जिसके कारण उन्‍हें गंभीर सजा भुगतनी पड़ती थी। ऐसे व्‍यवहार का मकसद उन राजनीतिक कैदियों को अपमानित करना और उनकी इच्‍छा शक्ति को तार-तार करना था। उन्‍हें कोल्‍हू पर जोता जाता था, उनसे नारियल छिलवाये जाते थे, नारियल के रेशों की पिसाई कराई थी, रस्‍सी बनवाई जाती थी, पहाड़ तोड़ने के लिए भेजा जाता था, दलदली जमीन की भरत कराई जाती थी, जंगल साफ कराये जाते थे, सड़कें बिछवाई जाती थी आदि। सबसे भयानक काम ‘मोटे सान की कटाई’ बहुत अधिक अम्‍लता वाली रामबन घास, ‘रस्‍सी बनाने की कला’ थी, जिसके बाद लगातार खुजली, खरोंचना और रक्‍तस्राव जैसे तकलीफें होती थीं!
भूख हड़ताल
जुलाई 1937 में जब भारत के सात सूबों में कांग्रेस मिनिस्‍ट्रीज का गठन हुआ, तो सेलुलर जेल के राजनीतिक कैदियों को मुख्‍य भूमि में भेजे जाने की मांग जोर पकड़ने लगी। जब बार-बार की अपीलों और प्रदर्शनों का कोई नतीजा न निकला तो उनमें से 183 लोग 24 जुलाई, 1937 से, 37 दिन की भूख हड़ताल पर बैठ गये। इससे उनके समर्थन की लहर उठी और मुख्‍य जेलों में बंद उनके साथियों ने भी भूख हड़ताल शुरू कर दी। देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए। आखिरकार अंग्रेजों को झुकना पड़ा और 22 सितंबर 1937 को स्‍वाधीनता से‍नानियों का पहला जत्‍था अंडमान से रवाना हुआ। आखिरी जत्‍था भी 18 जनवरी, 1938 तक अंडमान से रवाना हो गया। आपराधिक मामलों के दोषियों की वहां से रवानगी 1946 तक जारी रही, जब कैदियों की इस बस्‍ती को बंद कर दिया गया।
राष्‍ट्रीय स्‍मारक
इस जेल में अनेक करिश्‍माई हस्तियों को बंदी बनाकर रखा गया। उनमें अन्‍य लोगों के अलावा सावरकर बंधु, मोतीलाल वर्मा, बाबू राम हरि, पंडित परमानंद, लढ्डा राम, उलास्कर दत्त, बरिन कुमार घोष, भाई परमानंद, इंदु भूषण रॉय, पृथ्वी सिंह आजाद, पुलिन दास, त्रैलोकीनाथ चक्रवर्ती, गुरुमुख सिंह शामिल हैं। यह फेहरिस्‍त लंबी और विशिष्‍ट है। सेलुलर जेल में बंद रहे हमारे स्‍वाधीनता संग्राम सेनानियों के अमूल्‍य बलिदान की याद और सम्‍मान में 11 फरवरी, 1979 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई द्वारा इसे राष्‍ट्रीय स्‍मारक के रूप में राष्‍ट्र को समर्पित किया गया। वहां का संग्रहालय और साउंड एंड लाइट शो जेल के कठिन जीवन की झलक प्रस्‍तुत करते हैं, जहां उन लोगों ने सिर्फ इसलिए कुर्बानियां दी, ताकि हम आजादी और शांति के साथ जी सकें। सेलुलर जेल यूनेस्को की विश्‍व धरोहर स्‍थल की संभावित सूची में शामिल हैं, क्‍योंकि राष्‍ट्रीय स्‍तर पर उसकी तुलना में कोई और स्‍थान नहीं है।
किसी जमाने में भयावह स्‍थान रही यह सेलुलर जेल, अब एक राष्‍ट्रीय स्‍मारक बन चुकी है, जो बलिदान का मूर्त रूप है, एक ऐसा स्‍थान है, जो हमें याद दिलाता है कि हमें आज़ादी बड़ी मुश्किलों से मिली है।
****
*लेखक चेन्‍नई में स्‍वतंत्र पत्रकार हैं।
इस लेख में व्‍यक्‍त किए गये विचार लेखक के निजी विचार हैं।  (PIB)
वीके/आरके/वीके -117//
(Features ID: 150109) 0
Posted On: 01 August 2017 a 8:34 PM

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

राम मंदिर निर्माण और ठाकुर जी का जन्मोत्सव एक साथ आये

Thursday: 6th August 2020 at 6:41 PM
 नामधारी संगत ने दोनों पर किया संयुक्त उत्सव का आयोजन 
लुधियाना: 5 अगस्त 2020: (पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::
जिस रूप में कोई श्रद्धा से याद करे उसी रूप में उसके पास पहुंचते हैं ठाकुर जी 
भगवान राम और उनके राज्य में आस्था रखने वालों के लिए पांच अगस्त का दिवस विशेष था। उस दिन अयोध्या में राम मंदिर का नींव पत्थर रखा गया।  वही राम मंदिर जिसका वायदा भारतीय सियासतदान लम्बे समय से करते आ रहे थे। उसी दिन उन लोगों के लिए भी विशेष सुअवसर था जो ठाकुर दलीप सिंह जी में ही भगवान राम का रूप देखते हैं क्यूंकि ठाकुर जी का जन्मदिवस भी उसी दिन था। लुधियाना की राजदीप इंजीनियर नामक फर्म में ठाकुर जी का जन्मोत्सव बहुत श्रद्धा और आस्था से मनाया गया। कोरोना का संकटकाल न होता तो शायद धूमधाम भी ज्यादा होती। इस आध्यात्मिक उत्सव के साथ ही राम मंदिर निर्माण की खुशियां भी बहुत उत्साह से मनाई गयीं।इस सुअवसर पर नामधारियों के सक्रिय और खाड़कू नेता बचित्तर सिंह भुर्जी ने तो विशेष उत्साह दिखाया। उन्होंने कहा कि राम मंदिर निर्माण और ठाकुर जी का जन्मोत्सव एक साथ आना हम सभी के लिए बहुत बड़ा मौका भी है और सौभाग्यशाली सुअवसर भी है। गौरतलब है कि नामधारियों ने ठाकुर दलीप सिंह के नेतृत्व में बहुत पहले संघर्ष के दिनों में ही कह दिया था की हम राम मंदिर के निर्माण में सक्रिय सहयोग देंगें। जब भी ज़रूरत होगी हम जत्थे भेजेंगे। ठाकुर जी ने सिरसा के नज़दीक एक जन्माष्टमी मंच पर स्पष्ट कहा भी था कि राम मंदिर शक्ति से ही बनेगा। उल्लेखनीय है कि  इस मौके पर इसी मंच पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख डाक्टर मोहन भागवत भी मौजूद थे। 
श्री भुर्जी ने कहा कि आज का दिन हम सभी भारतियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्यूंकि सभी  भारत वासियों ने 
अयोध्या में राममंदिर निर्माण का सपना बहुत पहले देखा था और बार बार देखा था। इस सपने को साकार करने के लिए बहुत सी कुबानियाँ भी हुईं। राम जन्मभूमि पर राम मंदिर बनने का सपना प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी की वजह से ही पूरा हो सका है। 
यह बहुत ही सुखद संयोग है कि आज ही ठाकुर दलीप सिंह जी का 67वां जन्मोत्सव भी है। ठाकुर जी को कोई भगवान कृष्ण के ूप में देखता है और कोई भगवान राम के रूप में। जिस श्रद्धा भावना से ठाकुर जी कोई कोई यद् करता है ठाकुर जी उसी रूप में उसके पास पहुँच जाते हैं। इस बात को सच होते महलों वालों ने भी देखा है और झुग्गी झौंपड़ी वालों ने भी। इस तरह के अनुभव करने वालों में महिलाएं भी शामिल हैं और पुरुष भी। बच्चे भी और बज़ुरग भी। इस तरह की अनगिनत सच्ची कहानियां हैं जिन्हें ठाकुर जी प्रचार का साधन नहीं बनने देते। फिर भी हम इन सभी सच्ची कहानियों को संकलित करने के प्रयास में हैं। आपके साथ भी कोई ऐसा अनुभव हुआ हो तो अवश्य बताएं।
गौरतलब है कि आज ठाकुर जी का जन्मोत्सव देश विदेश में एक जैसे उत्साह और जोश से मनाया गया। घरों में दीपमाला हुई और मिठाईयां बांटी गयीं। लडडू तो बहुत पसंद किये गए। बहुत से लोगों ने अपने तौर पर भी लडडू बांटे। इन खुशीयों पर विशेष बात यह भी थी कि ज़रूरतमंद सिखों के पास जा कर उनकी हर ज़रूरत पूरी की गई।नामधारी हरविंदर सिंह, नामधारी नवतेज सिंह, नामधारी अमरजीत सिंह, नामधारी ईशर सिंह, नामधारी प्रभजोत सिंह, नामधारी मनप्रीत सिंह, नामधारी रोहित कुमार, नामधारी सुभाष कुमार, नामधारी बलविंदर सिंह बल्लू, नामधारी जगजीत सिंह, नामधारी जरनैल सिंह और नामधारी अरविंदर सिंह लाडी भी मौजूद रहे। 
पटियाला, जालंधर, अमृतसर, नई दिल्ली और हरियाणा में ऐसे ही आयोजन हुए। इसी तरह बहुत से  पर भी इसी श्रद्धा भावना से इसी तरह के भव्य कार्यक्रम हुए। 


मंगलवार, 30 जून 2020

कोविड-19: ख़त्म होने के नज़दीक भी नहीं है यह महामारी

29 जून 2020//स्वास्थ्य//30th June 2020, 6:25 AM
 कोरोनावायरस को लेकर WHO की एक और गंभीर चेतावनी 
विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 का पहला मामला चीन के वूहान शहर में सामने आने के क़रीब छह महीने बाद यह संकट अभी ख़त्म होने से दूर है और उस पर क़ाबू पाने के लिये और ज़्यादा प्रयास करने होंगे। विश्व भर में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या एक करोड़ से ज़्यादा हो जाने के दुखद पड़ाव पर यूएन स्वास्थ्य एजेंसी (WHO) के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने यह चेतावनी दी है।  साथ ही उन्होंने लोगों की जीवनरक्षा के लिए वैश्विक संकल्प को फिर से मज़बूत किए जाने की पुकार लगाई है। 
UN Photo/Evan Schneider न्यूयॉर्क के क्वीन्स इलाक़े में एक संदिग्ध संक्रमित को अस्पताल में भर्ती किया जा रहा है
कोविड-19 के कारण अब तक पाँच लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और संक्रमण के मामले भारत, अमेरिका, ब्राज़ील और अन्य देशों में तेज़ी से बढ़ रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक घेबरेयेसेस ने कहा कि वायरस के फैलाव से जिस तरह व्यवधान पैदा हुआ है, छह महीने पहले उसके बारे में कल्पना करना भी मुश्किल था। 

“हम अपनी ज़िन्दगी पर फिर लौटना चाहते हैं. लेकिन कड़वी सच्चाई ये है कि यह अभी ख़त्म होने के नज़दीक भी नहीं है।”

“वैसे को अनेक देशों ने कुछ प्रगति दर्ज की है लेकिन वैश्विक स्तर पर महामारी तेज़ी से फैल रही है. हम सभी इसमें एक साथ हैं और हम सभी लम्बे समय के लिए एक साथ हैं।”
‘नव सामान्य’
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 31 दिसम्बर 2019 से अब तक की गई कार्रवाई और अहम पड़ावों की अपनी टाइमलाइन में अपडेट किए हैं। 

साल 2019 के आख़िरी दिन ही चीन के वूहान शहर में अज्ञात कारणों से न्यूमोनिया के कई मामले सामने आने के बाद यूएन स्वास्थ्य एजेंसी को पहली बार इस बीमारी के बारे में मालूम हुआ था। 

इसके बाद से यूएन एजेंसी ने जवाबी कार्रवाई के तहत स्वास्थ्यकर्मियों को ऑनलाइन ट्रेनिंग मुहैया कराई है, टैस्ट किटें और निजी बचाव सामग्री व उपकरण ज़रूरतमन्द देशों के लिए रवाना किये गए हैं और वायरस को हराने व प्रभावी उपचार की तलाश करने के लिए एकजुटता ट्रायल शुरू किया है। 

यूएन एजेंसी के महानिदेशक घेबरेयेसस ने बताया कि स्वास्थ्य संगठन विज्ञान, एकजुटता और समाधान के साथ देशों को अपनी सेवाएँ प्रदान करना जारी रखेगा।
“आने वाले महीनों में देशों के लिए सबसे अहम सवाल यही होगा कि इस वायरस के साथ किस तरह से जिया जाए. यही नई सामान्य स्थिति है।”
जीवनरक्षा के पाँच तरीक़े
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने लोगों की ज़िन्दगियाँ बचाने के लिए देशों को पाँच प्राथमिकताएँ तय करने के लिए कहा है।
*अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए लोगों को सशक्त बनाना (सुरक्षा के लिए शारीरिक दूरी बरते जाने सहित अन्य स्वास्थ्य उपायों का पालन करना, मास्क पहनना, भरोसेमन्द स्रोत से सूचना प्राप्त करना)
*वायरस के फैलाव पर क़ाबू पाने के प्रयास जारी रखना और संक्रमित लोगों के सम्पर्क में आने वाले लोगों के बारे में जानकारी हासिल करके उन्हें एकान्तवास में रखने की व्यवस्था करना,
*जल्द से जल्द संक्रमण के मामलों का पता लगाना, संक्रमित लोगों को चिकित्सा देखभाल मुहैया कराना और स्वास्थ्य जोखिम वाले समूहों, जैसे कि वृद्धजन और नर्सिंग होम में रह रहे लोगों की स्वास्थ्य रक्षा के लिए प्रयास करना,
*रीसर्च की गति को बढ़ाया जाना क्योंकि अभी इस वायरस के बारे में बहुत कुछ सीखा जाना बाक़ी है,
*संक्रमण के फैलाव पर क़ाबू पाने, ज़िन्दगियाँ बचाने और सामाजिक व आर्थिक असर को कम करने के लिए व्यापक रणनीति में राष्ट्रीय एकता और वैश्विक एकजुटता को सुनिश्चित करना।
विश्वव्यापी महामारी के फैलाव के अगले चरण के लिए रीसर्च प्राथमिकताओं का आकलन करने और प्रगति का मूल्याँकन करने के इरादे से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस सप्ताह एक बैठक बुलाई है।
साथ ही यूएन एजेंसी अगले हफ़्ते एक टीम चीन के लिए रवाना करेगी जहाँ वायरस के पशुजनित स्रोत के मुद्दे पर एक बैठक होनी है।
कोविड-19: ख़त्म होने के नज़दीक भी नहीं है यह महामारी