Films लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Films लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 30 दिसंबर 2023

बिछ्ड़ी आत्मा ही निरंतर प्रेरणा बनी हुई है फिल्म मेकर परिवार की

शार्ट फिल्म ''पिंक लिटिल सांता'' ने हिमाचल फिल्म फेस्टिवल में भी बिखेरा अपना रंग

जीवन संगिनी के नाम पर ही रखा प्रोडक्शन हाउस का नाम

पत्नी के साथ बिताये 26 वर्षों के साथ को आज भी बरक़रार रखे हुए एस. पी. सिंह  

चंडीगढ़30 दिसंबर, 2023: (कार्तिका कल्याणी सिंह/पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::

हम चीज़ों को, दुनिया को और लोगों को अपनीं आँखों और अपनी समझ के अनुसार देखते हैं। जैसे हम अंदर से होंगे, वैसे ही हमें दुनिया नज़र आएगी।  जैसे अध्यात्म में वो कथन है-जो ब्रहमंडे, सोई पिंडे; जो खोजै, सो पावै ॥ अर्थात वो सब कुछ जो इस ब्रह्माण्ड में है वो हमारे अंदर भी है। जिन चीज़ों को हम बाहर  ढूंढ रहे हैं, वो असल में हमारे भीतर ही मौजूद हैं।  जिस खुशी और आनंद को हम दूसरों में खोजते हैं, वो हमारे अंदर ही समाया हुआ है। ये सारे सुख, खुशियां, आनंद,  सारे ही ब्रह्माण्ड, अनगिनत सूरज, तारे, धरतियां सब हमारे अंदर ही है। बस ज़रुरत है तो खुद को खोजने की। खुद को जानने की। खुद को समझने की।  इसे जानने और समझने की प्रक्रिया साधना बन जाती है। वही कोशिश ध्यान बन जाती है। तब उस गीत का मर्म भी समझ में आने लगता है जो वर्ष 1963 में आई फिल्म ताजमहल में था। गीत का मुखड़ा था-जब वायदा किया वो निभाना पड़ेगा..!

इसका संगीत तैयार किया था जानेमाने संगीतकार रोशन साहिब ने और गीत लिखा था ख्यालों की दुनिया तक जादुई उड़ान भरने में माहिर समझे जाने वाले शायर जनाब साहिर लुधियानवी साहिब ने। 
उस पर आवाज़ का जादू था जनाब मोहम्मद  साम्राज्ञी लता मंगेशकर  साहिबा का। 
गीत की शुरुआत में ही इश्क का दावा था। एक पुकार भी थी। वह पुकार जिसमें एक आदेश जैसा भाव भी। था 

जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा
रोके ज़माना चाहे, रोके खुदाई, तुमको आना पड़ेगा
इसके बाद इस पुकार में तड़प और मिन्नत भी है जब गीत के बोल सुनाई देते हैं:
तरसती निगाहों ने आवाज दी है
मोहब्बत की राहों ने आवाज दी है
जान-ए-हया, जान-ए-अदा छोड़ो तरसाना
तुमको आना पडेगा...
इसके बाद हुसन और मोहब्बत  वायदा भी सुनवाया जाता है:
हम अपनी वफ़ा पे ना इलज़ाम लेंगे
तुम्हें दिल दिया है, तुम्हें जां भी देंगे
जब इश्क का सौदा किया, फिर क्या घबराना
हमको आना पड़ेगा
जो वादा किया वो...
इससे आगे वाले अन्तरे में भी इसी वायदे को दृढ़ शब्दों में दोहराया गया है, ज़रा देखिए कुछ बोल:
चमकते हैं जब तक ये चाँद और तारे
ना टूटेंगे अब ऐह दो पैमां हमारे
एक दूसरा जब दे सदा, हो के दीवाना
हमको आना पड़ेगा
जो वादा किया वो...

लेकिन मौत तो हर बंधन तोड़ देती है। ज़िंदगी में कही सुनी बातें मौत के अंधेरों में अक्सर गुम हो जाती हैं। कौन लौट कर आता है उस  जहां  से? शायद कोई नहीं लौटता। अध्यात्म की दुनिया में ऐसी यकीन भरी सच्ची बातें ज़रुर मिलती हैं लेकिन वे भी बहुत कम।  जो साथी जीवित भी रह जाता है दुनिया केवल उनकी तड़प ही देख पाती है। यह एक ऐसी कड़वी हकीकत होती है जिसे जीवित बचा साथी हर पल तड़पने के बावजूद उसे स्वीकार नहीं कर पाता। शायद यही होती है मुहब्बत के करिश्मे को दर्शाने  वाली जादू भरी शक्ति। चिता की अग्नि में सब कुछ अपने सामने राख हो  चुका देखने के बाद भी एक उम्मीद कायम रहती है।  अस्थि-कलश को बहते पानी में बहा देने के बावजूद भी एक  यकीन सा बना रहता है। प्रकृति के नियम को चुनौती की  ही देती है। यमराज से टकराने की हिम्मत भी इसी से आती है। दरअसल कुछ बहुत ही कम विवाह ऐसे होते हैं जिन में रेडियो की तरह सच्चे प्रेमी की फ़्रीकुएंसी जुड़ जाती है। तब कहीं जा कर ऐसे प्रेमी और प्रेमिका सच्चे पति पत्नी बन पाते हैं। वर्ण तो दुनिया नफे नुकसान और औपचारिकताओं में उलझ कर ही समाप्त हो जाती है।  शायद  यही होता है मानव जीवन का मिलना भी और व्यर्थ भी चले जाना। फ़्रीकुएंसी मिले बिना बने संबंध सचमुच जीवन को व्यर्थ जैसा कर देते हैं। जब फ्रीकवेंसी मिल जाती है, तो अलौकिक शक्तियां भी सहायक बन जाती हैं। इसका अहसास ऊपर दिए गीत के दूसरे भाग में है। 

हम आते रहे हैं, हम आते रहेंगे
मुहब्बत की रस्में निभाते रहेंगे
जान-ए-वफ़ा तुम दो सदा होके दीवाना
हमको आना पड़ेगा
जो वादा किया वो...

हमारी कहानी तुम्हारा फ़साना
हमेशा हमेशा कहेगा ज़माना
कैसी बला, कैसी सज़ा, हमको है आना
हमको आना पड़ेगा
जो वादा किया वो...

यह एक गहरी मेडिटेशन की अनुभूति है जिसे कहना, सुनना और समझना-समझाना शायद नामुमकिन जैसी कठिन बात हो सकती है। यह अनुभूति भी किस्मत से ही हो पाती है।  बस इसी ध्यान रुपी गंगा में डुबकी लगाने की एक विधि है, अपने काम में ही खो जाना। इस डुबकी के आनंद  और इसकी उपलब्धि को एक बार फिर कर दिखाया है फिल्म मेकर सम्राट सिंह।  मां ला बिछड़ना सम्राट सिंह के लिए असहनीय था। उसके प्रेरणा स्रोत पिता बब्बू सिंह के लिए भी नामुमकिन था जिन्हें हम स्नेह और सम्मान से एस पी सिंह  जानते हैं। 

इस हद तक मगन हो जाना कि न दुनिया की सुध रहे और न खुद की सेहत की। ऐसा ध्यान अपने काम में पूर्ण एकाग्रता के साथ ही आता है। जब आप में  और आप जो कर रहे हैं, दोनों भेद न रहे।  दोनों एक दूसरे में इतना संयोजित हो जाये कि कोई दोनों में भेद ढूंढ न पाए। चाहे आप को देखे या आप के काम को, दोनों ही अभिन्न लगें। जैसे नृत्य को नृत्यकार से अलग नहीं किया सकता। जैसे किसी कलाकार को उसकी कला से अलग नहीं सकता।  ऐसी साधना, ऐसा ध्यान ही साधने योग्य है।  

ऐसा ही ध्यान, कला जगत और रचनात्मकता से जुड़ा तकरीबन हर इंसान करता है। इसी कला जगत में फिल्में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। तमाम तरह के बैनर्स और बहुत बड़े बजट में बनने वाले फिल्मो से इतर शार्ट मूवीज का ट्रेंड आज कल बढ़ता है। कम बजट, दुगनी क्रिएटिविटी के साथ बनने वाली इन फिल्मों में समाज के कई मुद्दों से लेकर, अनदेखी कर दी जाने चीज़ें और ऑफ बीट टॉपिक्स को पहल दी जाती है।  कोरोना के दौरान  इन फिल्मों का दायरा काफी फ़ैल गया है।  ये फिल्में और डॉक्यूमेंटरीज, OTT प्लेटफॉर्म्स की ताकत बन गयी है।  इन्ही शार्ट फिल्मों में फिल्म निर्मातों और निर्देशकों को प्रोत्साहित करने के तमाम राज्य की सरकारों और प्राइवेट आर्गेनाईजेशन द्वारा फिल्म फेस्टिवल्स आयोजित करवाए जाते हैं।  जिन में से अलग अलग कैटेगरी और सिलेक्शन प्रोसेस के बाद उस साल की बेस्ट शार्ट फिल्म्स का चयन किया जाता है। जिस से इन फिल्ममकेर्स और एक्टर्स को अपने काम और अपनी कला को जारी रखने की प्रेरणा मिलने के साथ साथ उनका उत्साहवर्धन भी होता है।  

अभी हाल ही में हिमाचल शार्ट फिल्म फेस्टिवल 2023 दिसंबर महीने में हुआ। ये फेस्टिवल मनाली के अटल बिहारी वाजपेयी मॉउंटरिंग थिएटर में आयोजित किया गया था। इस फेस्टिवल में देश भर के तमाम शार्ट फिल्म मेकर्स ने अप्लाई किया और एक काढ़े सिलेक्शन प्रोसेस के बाद कुछ चुनिंदा फिल्मों को बेस्ट अवार्ड्स की केटेगरी में जगह दी गयी है।  इन में एक बेस्ट चिल्ड्रनस फिल्म अवार्ड हाल ही में बनी शार्ट फिल्म ''पिंक लिटिल सांता'' को भी दिया गया।  ये फिल्म पिछले साल यानी 2022 क्रिसमस वाले दिन यूट्यूब के परदे पर पाई।  इस फिल्म के निर्माता व् निर्देशक सम्राट सिंह द्वारा निर्मित व् निर्देशित 6 मिनट 39 सेकंड की ये फिल्म एक उम्मीद की किरण है। ये फिल्म इस बात पर जोर देती है, कि खुशी बांटने से ही बढ़ती है।  दूसरों के चेहरों की मुस्कान, हमारा पूरा दिन, क्या पूरी ज़िन्दगी भी बना सकती है। एक छोटी सी बच्चा का किरदार आपको पूरी फिल्म देखने के लिए विवश कर देगा।  एक चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर ऐसी एक्टिंग आपको अपने अंदर के बच्चे से प्यार करना सीखा देगी। 


मोटी मोटी जानकारी के तौर पर आपको बता दें कि ये फिल्म लकी 26 प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी है। इस प्रोडक्शन हाउस के नाम के पीछे भी एक बैकग्राउंड स्टोरी है। इस प्रोडक्शन हाउस के फाउंडर एस.पी. सिंह (अभिनेता व् निर्देशक) ये नाम अपनी पत्नी लकी (स्व: जसपाल कौर) के नाम पर रखा है। उनकी याद में रखा है। वो ही उनकी पहली मोहब्बत थी, प्रेमिका थी, वही पत्नी बनी, जीवन संगिनी बनी और जब वह पत्नी भी न रह सकी, तो एक याद बन कर रह गई।  इसी याद को संजो कर उन्होंने इस प्रोडक्शन हाउस को खड़ा किया है। दूसरों के लिए ये एक प्रोडक्शन हाउस हो सकता है, लेकिन उनके लिए ये उनका प्रेम है। 

यह फ़िल्में तो केवल उस जुड़ाव से मिल रही प्रेरणा का ही परिणाम हैं जो मौत के बाद भी लगातार बना हुआ है। इन संबंधों में बिछड़ने का दर्द भी दिखाई देता है और अलौकिक मिलन के आनंद की अनुभूति भी। बहुत सी बातें और भी हैं जिन्हें फर्क कभी किसी अलग पोस्ट में आपके सामने रखा जाएगा। 

निरंतर सामाजिक चेतना और जनहित ब्लॉग मीडिया में योगदान दें। हर दिन, हर हफ्ते, हर महीने या कभी-कभी इस शुभ कार्य के लिए आप जो भी राशि खर्च कर सकते हैं, उसे अवश्य ही खर्च करना चाहिए। आप इसे नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके आसानी से कर सकते हैं।

सोमवार, 16 नवंबर 2015

Nikle The Kahan Jane Ke Liye

Pahunche hain kahan Maloom Nahin 

Courtesy:Ultra Hindi //YouTube: Film: Bahu Begum Singer(s)Asha Bhosle Music ByRoshan
Lyricist(s): Sahir Ludhianvi
अपने ज़माने का हिट गीत जो हर गली के हर मोड़ पर दिलों को झंक्झोरता हुआ अपनी तरंगें छोड़ जाता था। ज़िंदगी और प्रेम की नाकामियों से गुज़रते हर नौजवान को यह गीत अपना अपना
सा लगता। हर बुज़ुर्ग अपनी गुज़र चुकी नाकाम ज़िंदगी का दर्द इस गीत के ज़रिये गुनगुनाता।  साहिर साहिब ने तोइसे कई बार जिया था। हर कदम पर इसे महसूस किया था। सं १९६७ में आई इस हिंदी फिल्म बहु बेगम के निर्देशक थे-एम सादिक और संगीत तैयार किया था-रौशन ने। फिल्म के सितारों में थे प्रदीप कुमार, मीना कुमारी और अशोक कुमार। लखनऊ की पृष्टभूमि और माहौल में इस फिल्म की कहानी उस दौर के मज़बूत थीम पर थि. प्रेम कहीं और हो जाना और शादी कहीं और। फिल्म में हर कलाकार ने अपना किरदार बहुत ही जानदार तरीके से निभाया। ज़िंदगी के दोराहे और दुविधा को इस गीत में बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है। अहसास को सादगी भरे शब्दों में महसूस करने वाले जनाब साहिर साहिब ने इस दर्द को हर दिल में उतार दिया था। 

Nikle the kaha jane ke liye, pahunche hai kaha malum nahi
Abb apne bhatkate kadmo ko, manjil kaa nisha malum nahi

Hamne bhi kabhi iss gulshan me, ek khwabe bahara dekha tha
Kab phul jhare kab gard udi, kab aayi khija malum nahi

Dil shola e gham se khak huwa, ya aag lagi aramano me
Kya chiz jali kyon sine se utha hai dhuwa malum nahi

Barabad wafa kaa afasana ham kise kahe, aur kaise kahe
Khamosh hain lab, aur dooniya ko ashko ki juban malum nahi


Ashok Kumar as Nawab Sikander Mirza
Pradeep Kumar as Yusuf
Meena Kumari as Zeenat Jahan Begum
Lalita Pawar as Naziran Bai
Jhonny Walker as Achchan
Naaz as Suraiya
Zeb Rehman as Bilqees
D.K. Sapru as Nawab Mirza Sultan
Indira Bansal as Shafugupta Begum
Durrani
Rajan Haksar as Nawab Pyare Miya
Shahid Bijnori
Helen as Courtesan

रविवार, 6 सितंबर 2015

ਸਮਾਜ ਲਈ ਗੰਭੀਰ ਸੁਆਲ ਹੈ ਫਿਲਮ ਰੁਪਿੰਦਰ ਗਾਂਧੀ: ਦ ਗੈਂਗਸਟਰ

ਪੰਜਾਬੀ ਸਿਨੇਮਾ ਲਈ ਨਵੇਂ ਰਾਹ ਖੋਲ੍ਹੇਗੀ ਇਹ ਫਿਲਮ: ਦਲਜੀਤ ਸਿੰਘ
ਇਹ ਫਿਲਮ ਖੜ੍ਹਾ ਕਰੇਗੀ ਦਰਸਕਾਂ ਦੇ ਮਨ ਵਿੱਚ ਸਵਾਲ: ਤਰਨ ਮਾਨ
ਲੁਧਿਆਣਾ: 5 ਸਤੰਬਰ 2015: (ਰੈਕਟਰ ਕਥੂਰੀਆ//ਪੰਜਾਬ ਸਕਰੀਨ): 
ਜਦੋਂ ਸ਼ਰਾਫਤ ਹਾਰ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਭਾਵਨਾ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਸ਼ਰਾਫਤ ਛੋੜ ਦੀ ਮੈਨੇ। ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਕਈ ਵਾਰ ਅਜਿਹੇ ਹਾਲਾਤ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਸ਼ਰਾਫਤ ਛੱਡ ਕੇ ਡੰਡਾ ਫੜਨਾ ਹੀ ਇੱਕੋ ਇੱਕ ਹੀਲੇ ਵਸੀਲਾ ਰਹਿ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਬਦਮਾਸ਼ੀ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਖੜਾ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਕਦੇ "ਭਾਈ" ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਕਦੇ "ਦਾਦਾ" ਅਤੇ "ਜੱਗਾ"। ਹਿੰਦੀ ਫਿਲਮਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਕੋੜੀਆਂ ਹਕੀਕਤਾਂ ਦਾ ਚਿਤਰਣ ਬੜੀ ਵਾਰ ਹੋਇਆ ਹੈ ਪਰ ਪੰਜਾਬੀ ਫਿਲਮਾਂ ਵਿੱਚ ਘੱਟ। ਐਲਾਨੀਆਂ ਢੰਗ ਨਾਲ ਇਸ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਆਈ ਹੈ ਦਲਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤਰਨ ਮਾਨ ਦੀ ਟੀਮ। ਫਿਲਮ ਅਜੇ ਨਹੀਂ ਦੇਖੀ ਇਸ ਲਈ ਕੁਝ ਕਹਿਣਾ ਉਚਿਤ ਨਹੀਂ ਪਰ ਨਾਮ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਫਿਲਮ ਗੁੰਡਾਗਰਦੀ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿੱਚ ਖੜੇ ਹੋਏ ਬਹਾਦਰ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਸੁਨੇਹੇ ਨੂੰ ਲੋਕਾਂ ਤੱਕ ਲੈ ਕੇ ਆ ਰਹੀ ਹੈ। ਬੱਬੂ ਮਾਨ ਦੇ ਹਿੱਟ ਹੋਏ ਗੀਤ--ਚੱਕ ਲੋ ਰਿਵਾਲਵਰ ਰਫਲਾਂ ਕਿ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਏ ਵਾਲੇ ਸੰਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਤੋਰਨ ਵਿੱਚ ਇਹ ਫਿਲਮ ਮਦਦ ਕਰਦੀ ਜਾਪਦੀ ਹੈ। ਲਗਾਤਾਰ ਵਧ ਰਹੀਆਂ ਬੇਇਨਸਾਫੀਆਂ ਦੇ ਦੌਰ ਵਿੱਚ ਇਸ ਰਸਤੇ ਤੋਂ ਬਚ ਕੇ ਤੁਰਨ ਦਾ ਕੋਈ ਹੋਰ ਰਸਤਾ ਹੈ ਵੀ ਨਹੀਂ। 
ਇੱਕ ਕਾਂਗਰਸੀ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿੱਚ 2 ਅਕਤੂਬਰ ਨੂੰ ਜਨਮੇ ਰੁਪਿੰਦਰ ਦਾ ਨਾਮ ਘਰ ਦੇ ਮੁਖੀ ਨੇ ਗਾਂਧੀ ਰੱਖਿਆ।  ਉਸ ਦਿਨ ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਦਿਨ ਜੁ ਸੀ। "ਬਿਧ ਮਾਤਾ" ਨੇ ਇਹ ਦੇਖ ਕੇ ਮੁਸਕਰਾਹਟ ਛੱਡੀ ਹੋਣੀ ਹੈ-ਲੈ ਮੈਂ ਦੇਖਦੀ ਆਂ ਇਹ ਕਿਵੇਂ ਬਣਦੈ ਗਾਂਧੀ। ਹਾਲਾਤ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਨੇ ਇਸ ਗਾਂਧੀ ਦੇ ਹੱਥ ਕਦੋਂ ਬੰਦੂਕ ਫੜਾ ਦਿੱਤੀ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਪਤਾ ਨ ਲੱਗਿਆ। ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਦਰਦ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸਮਝਦਾ ਇਹ ਗਾਂਧੀ ਕਿਸੇ ਸਿਆਸੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਨਾਲ ਸਬੰਧਿਤ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਸ਼ਾਇਦ ਮਾਓਵਾਦੀ ਅਖਵਾ ਰਿਹਾ ਹੁੰਦਾ। ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਚੁੱਕੀ ਬੰਦੂਕ ਨੇ ਉਸਨੂੰ  ਗੈਂਗਸਟਰ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ। ਜੱਗਾ ਡਾਕੂ ਵੀ ਸ਼ਾਇਦ ਇਹਨਾਂ ਹਾਲਾਤਾਂ ਦੀ ਉਪਜ ਹੋਵੇਗਾ। ਰੁਪਿੰਦਰ ਦੀ ਸ਼ਖਸੀਅਤ ਬੜੀ ਹਰਮਨ ਪਿਆਰੀ ਸੀ। ਉਸਦੇ ਪ੍ਰਸੰਸਕਾਂ ਨੇ ਉਸ ਦੇ ਨਾਮ ਨਾਲ ਸਟੂਡੈਂਟਸ ਯੂਨੀਅਨ ਬਣਾਈ ਤਾਂ ਉਹ ਵਿਸ਼ਾਲ ਹੁੰਦੀ ਚਲੀ ਗਈ।  ਗਾਂਧੀ ਗਰੁੱਪ ਆਫ਼ ਸਟੂਡੈਂਟਸ ਯੂਨੀਅਨ ਨਾਲ ਤਿੰਨ ਲੱਖ ਤੋਂ ਵਧੇਰੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਜੁੜੇ ਹੋਏ ਹਨ।
ਇੱਕ ਫੁੱਟਬਾਲ ਦਾ ਖਿਡਾਰੀ ਸਰਪੰਚ ਬਣਨ  ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਬੰਦੂਕ ਕਿਓਂ ਚੁੱਕਦਾ ਹੈ ਇਸਦਾ ਜੁਆਬ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ? ਉਸਦੀ ਹਰਮਨ ਪਿਆਰਤਾ ਦੱਸਦੀ ਹੈ ਕਿ ਅੱਜ ਦੇ ਹਾਲਾਤ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਕਿਸ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਨਾਇਕ ਬਣਾਉਣਾ ਪਸੰਦ ਕਰਦੇ ਹਨ? ਕਤਲ ਹੋਣ ਤੋਂ 12 ਵਰ੍ਹਿਆਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਜੇ ਉਹ ਸ਼ਖਸ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਵਿੱਚ ਜਿਊਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਉੱਪਰ ਫਿਲਮ ਬਣਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਸੋਚਣਾ ਸਮਾਜ ਦੇ ਠੇਕੇਦਾਰਾਂ ਦਾ ਕੰਮ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਜੇ ਅਜਿਹੇ ਲੋਕ ਨਾਇਕਾਂ ਵੱਲ ਆਕਰਸ਼ਿਤ ਹਾਂ ਤਾਂ ਕਿਓਂ?  ਜਦੋਂ ਤੱਕ ਬੇਇਨਸਾਫੀਆਂ ਜਾਰੀ ਰਹਿਣਗੀਆਂ ਉਦੋਂ ਤੱਕ ਅਜਿਹੇ ਨਾਇਕ ਵੀ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੇ ਰਹਿਣਗੇ।  ਸਮਾਜ ਦੀ ਨਿੰਦਾ ਨਿਖੇਧੀ ਨਾਲ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕੋਈ ਫਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਣਾ। 
11 ਸਤੰਬਰ ਨੂੰ ਸਿਨੇਮਿਆਂ ਦਾ ਸਿੰਗਾਰ ਬਨਣ ਜਾ ਰਹੀ ਪੰਜਾਬੀ ਫਿਲਮ ਰੁਪਿੰਦਰ ਗਾਂਧੀ-ਦ ਗੈਂਗਸਟਰ ਦੀ ਸਮੁੱਚੀ ਟੀਮ ਅੱਜ ਇੱਥੇ ਪੱਤਰਕਾਰਾਂ ਦੇ ਰੂ-ਬ-ਰੂ ਹੋਈ ਨੌਜਵਾਨ ਨਿਰਦੇਸ.ਕ ਤਰਨ ਮਾਨ ਦੇ ਨਿਰਦੇਸ.ਨ ਹੇਠ ਬਣੀ ਇਸ ਫਿਲਮ ਦੇ ਪ੍ਰੋਡਿਊਸਰ ਦਲਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੋਲਾ, ਰਵਨੀਤ ਚਹਿਲ ਅਤੇ ਤਰਨਵੀਰ ਸਿੰਘ ਹਨ ਜਦਕਿ ਇਸ ਦੀ ਕਹਾਣੀ ਖੁਦ ਤਰਨ ਮਾਨ ਨੇ ਹੀ ਲਿਖੀ ਹੈ। ਫਿਲਮ ਵਿੱਚ ਮੁੱਖ ਭੂਮਿਕਾ ਦੇਵ ਖਰੋੜ ਅਤੇ ਕੂਲ ਸਿੱਧੂ ਨੇ ਨਿਭਾਈ ਹੈ।
ਫਿਲਮ ਦੇ ਸਬੰਧ ਵਿੱਚ ਗੱਲਬਾਤ ਕਰਦਿਆਂ ਤਰਨ ਮਾਨ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਫਿਲਮ ਦੇ ਨਾਮ ਤੋਂ ਹੀ ਸਪੱਸਟ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਫਿਲਮ ਦਰਸਕਾਂ ਲਈ ਇੱਕ ਸਵਾਲ ਖੜ੍ਹਾ ਕਰੇਗੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਖੁਦ ਹੀ ਫਿਲਮ ਦੇਖਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਫੈਸਲਾ ਲੈਣਾ ਹੈ ਕਿ ਫਿਲਮ ਵਿੱਚ ਆਖਿਰ ਕੀ ਦਿਖਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਫਿਲਮ ਵਿੱਚ ਦਿਖਾਏ ਹਰ ਸੀਨ ਨੂੰ ਇਸ ਹੱਦ ਤੱਕ ਕਲਾ ਦਾ ਇੱਕ ਨਮੂਨਾ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ ਜਿਸ ਨੂੰ ਹਰ ਇੱਕ ਦਰਸਕ ਗਹਿਰਾਈ ਨਾਲ ਦੇਖ ਕੇ ਫਿਲਮ ਦੀ ਅਸਲੀਅਤ ਨੂੰ ਜਾਨਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਵੇਗਾ। 
ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਡਰੀਮ ਰਿਅਲਟੀ ਮੂਵੀਜ ਦੀ ਪ੍ਰੋਡਕਸਨ ਇਹ ਫਿਲਮ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਖੰਨਾ ਇਲਾਕੇ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਇੱਕ ਪਿੰਡ ਦੇ ਸਰਪੰਚ ਰੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਗਾਂਧੀ ਦੀ ਸੱਚੀ ਕਹਾਣੀ ਤੇ ਅਧਾਰਿਤ ਹੈ, ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਇੱਕ ਚੰਗਾ ਖਿਡਾਰੀ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਇੱਕ ਹੋਸਲੇ ਵਾਲਾ ਨੇਤਾ ਅਤੇ ਕਮਜੋਰ ਅਤੇ ਜਰੂਰਤਮੰਦ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਆਪਣੇ ਸੁਪਨੇ  ਵੀ ਤਿਆਗ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਸੀ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਫਿਲਮ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਹੀ ਨੈਗੇਟਿਵ ਅਤੇ ਪੌਜੇਟਿਵ ਪੱਖ ਦੇਖਣ ਵਾਲੇ ਹਨ। ਹੁਣ ਦੇਖਣਾ ਹੈ ਕਿ ਫਿਲਮ ਦੇਖ ਕੇ ਕਿੰਨੇ ਕੁ ਲੋਕ ਰੁਪਿੰਦਰ ਗਾਂਧੀ ਦੇ ਰਸਤੇ ਤੇ ਤੁਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਕਿੰਨੇ ਕੁ ਇਸ ਰਸਤੇ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਕੋਈ ਹੋਰ ਰਾਹ ਲਭਦੇ ਹਨ? 

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

फ़िल्म जगत के एक और युग का अंत: नहीं रही सुचित्रा सेन

Veteran film actress Suchitra Sen passes away

Courtesy:INBMINISTRY//YouTube
17-01-2014 पर प्रकाशित 
Suchitra Sen was a legendary actress who ruled Bengali cinema for decades. Her powerful roles in films were highly acclaimed and will be remembered by generations of film lovers. During her illustrious career she was not only a recipient of Padma Shri Award but also became the first Bengali actress who was awarded 'Best Actress Award' at an international film festival. Her sad demise is a huge loss to the Indian film industry, particularly Bengali Cinema".

सोमवार, 18 नवंबर 2013

ICFFI-2013: Sannette Naeye:

Masterclass on "Marketing Children's Films Internationally" by Sannette Naeye

18-11-2013 पर प्रकाशित
Courtesy:INBMINISTRY//YouTube
International Children's Film Festival of India is a biennial festival that strives to bring the most delightful and imaginative national and international children's cinema to young audiences in India. ICFFI is one of the largest and most colourful children's film festivals in the world. A unique feature of the festival is its audience: more than a hundred thousand children travel from little villages and towns from across India to view high quality international children's cinema.

शनिवार, 16 नवंबर 2013

ICFFI 2013: Raju Hirani and 'Little Directors' in an interactive session...


16-11-2013 पर प्रकाशित
Courtesy:INBMINISTRY//YouTube
International Children's Film Festival of India is a biennial festival that strives to bring the most delightful and imaginative national and international children's cinema to young audiences in India. ICFFI is one of the largest and most colourful children's film festivals in the world. A unique feature of the festival is its audience: more than a hundred thousand children travel from little villages and towns from across India to view high quality international children's cinema.

ICFFI-2013: In Conversation with Shilpa Ranade, Director of Goopi Gawaiy...


16-11-2013 पर प्रकाशित                
International Children's Film Festival of India is a biennial festival that strives to bring the most delightful and imaginative national and international children's cinema to young audiences in India. ICFFI is one of the largest and most colourful children's film festivals in the world. A unique feature of the festival is its audience: more than a hundred thousand children travel from little villages and towns from across India to view high quality international children's cinema.  Courtesy:INBMINISTRY

ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਉਤਸਵ:ਸਿਰਫ ਦੋ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਬਣਾਈ ਗਈ ਇਹ ਛੋਟੀ ਜਿਹੀ ਫਿਲਮ


10-11-2011 को अपलोड किया गया
This short film is developed in just two days, My friend made this for "Guru Nanak Jayanti". This video was even shown on to all who came for pheri at "Hari Kirtan Darbar - Ulhasnagar" and also live on cable tv. 

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

Public Reaction on 18th International Children Film Festival India

14-11-2013 पर प्रकाशित
International Children's Film Festival India (ICFFI) also popularly known as The Golden Elephant is a biennial festival that strives to bring the most delightful and imaginative national and international children's cinema to young audiences in India. Outstanding features, shorts, live action and animation films are screened over seven days of festive celebrations, attended by more than a hundred thousand children and hundreds of film professionals from across the world. 18th Edition of ICFFI will take place in the historic city of Hyderabad, the festival venue for the last 8 editions and is organized by Children's Film Society India (CFSI) -- an autonomous body under the Ministry of Information and Broadcasting in collaboration with Government of Andhra Pradesh.

18th International Children's Film Festival India (ICFFI) :

Preparations in final stage
13-11-2013 पर प्रकाशित
18th International Children's Film Festival India (ICFFI) : 

Preparations in final stage

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

The Naxalites_Part1-Mithun, Smita Patel classic

ख्वाज़ा अहमद अब्बास की  कहानी पर आधारित एक ऐतिहासिक फ़िल्म जिसने इसके कई पहलू दिखाए 
Uploaded on Aug 20, 2008
THE NAXALITES (MERA INQUILAB) LAND OF DEPRIVED AND DISPOSSESSED Producer/Director: K.A Abbas Music: Prem Dhawan Officially Release: 1980 Language: Hindi and Bengali Cast:  Mithun Chakraborty, Smita Patil, Nana Palisker Jalal Agha, Tinu Anand, Dina Pathak, Imtiaz khan, Dilip Raj Pinchoo Kapoor, Yunus Parvez, Jawaharlal Kaur To read the full review visit the link: http://www.maadhukari.com/misc/the-na...

सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

Singh Saab The Great | Official Trailer |

Sunny Deol, Amrita Rao, Prakash Raj and Urvashi Rautela

27-10-2013 पर प्रकाशित
The film Directed by Anil Sharma, 'Singh Saab The Great' is an upcoming Hindi action-packed, social drama starring Sunny Deol, Amrita Rao, Anjali Abrol, Prakash Raj & new find Urvashi Rautela.

Singh Saab The Great is a story about a Collector, who takes pride in his honesty. He leads a simple life and believes in his duties.
Sunny Deol Plays a Collector of a small city of UP, who fights for his honor and love.
This story depicts Change not Revenge.
The film is slated to release on 22nd November 2013.

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013

Legendary Singer Manna Dey passed away

I&B Minister Shri Manish Tewari condoles death of legendary Singer Manna Dey

Published on Oct 23, 2013                                      ਮੰਨਾ ਡੇ ਹੁਣ ਸਾਡੇ ਦਰਮਿਆਨ ਨਹੀਂ ਰਹੇ
Legendary Singer Manna Dey passed away in Bangalore today. The 94-year-old singer was undergoing treatment for severe lung infection.

The Dadasaheb Phalke Award winner singer had given several hits songs during his several decades long career which include 'Poochho na kaise maine rain bitayee', 'Ae mere pyare watan, ae mere bichhade chaman' and 'Laga chunari main daag', to name a few.