शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

लाखों बैंक मुलाज़िम मना रहे हैं राष्ट्रीयकरण की 45वीं वर्षगांठ

साथ ही ले रहे हैं निजीकरण के दानव को रोकने का संकल्प 
लुधियाना:18 जुलाई 2014:(रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन//कैमरा: मोहन लाल):
बैंकों का राष्ट्रीयकरण किये जाने की ऐतिहासिक घटना को लम्बा समय व्यतीत हो चूका है। उस जनहित कदम की यादें ताज़ा करते हुए और संगठन की इस गौरवशाली जीत की 45 वीं वर्षगांठ के संबंध में जगह जगह कार्यक्रम किये जा रहे हैं। गौरतलब है कि कल 19 जुलाई को इसकी 45 वीं वर्षगांठ है। ख़ुशी के इस अवसर पर बैंक मुलाज़िम चिंतित भी थे। यह उपलब्धि अब खतरे में है। इस के सर पर लटक रही है निजीकरण की तलवार। लोग अच्छे कदमों का विकास करते हैं लेकिन हमारे यहाँ अच्छे कदमों को फिर से पीछे की तरफ लेजाने की साज़िशें  रची जा रही हैं। उन्होंने सावधान किया कि आजकल किसी देश को वष में करने के लिए सेना या हथियारों से जंग की  पड़ती बल्कि दुश्मन उस देश की अर्थ  व्यवस्था को ही अपने हाथों में कर लेता है।  यहाँ भी यही हो रहा है लेकिन हम इस कुचेष्टा को सफल नहीं होने देंगें।
लुधियाना में भी आल इण्डिया बैंक इम्प्लाईज़ एसोसिएशन (AIBEA) ने 19 जुलाई के दिन को  अखिल भारतीय मांग दिवस के रूप में मनाया।  संगठन के नेता और वर्कर सख्त गर्मी के बावजूद दूर दूर से आये थे पूरे जोश और संकल्प के साथ कि इस राष्ट्रीयकरण को हमें किसी भी रूप में कायम रखना है।  निजीकरण का दानव इसे निगलने न पाये इस पर नज़र रखनी है। सरकारी बैंकों के कामकाज को जानबूझ कर कमज़ोर करने की साज़िशों को नाकाम बनाना है। 
गौरतलब है कि अगर आज गाँव गाँव में आम इन्सान बैंक सेवाओं का लाभ ले पा रहा है तो इसका 
श्रेय राष्ट्रीकरण को ही जाता है। 
   विवरण                                                   1969                                          2014 
बैंक शाखाएं                                                 8268                                         85,000 
ग्रामी अर्ध शहरी शाखाएं                               1833                                         44,000 
जमाराशियां                                                 4,646 करोड़ रूपये                      80 लाख करोड़ रूपये 
अग्रिम                                                        3,599  करोड़ रूपये                    62 लाख करोड़ रूपये                 ग्राहकों की संख्या                                                                                          60 करोड़               
कृषि हेतु ऋण                                               162 करोड़ रूपये                         6,90,000  करोड़ रूपये    
कुल स्टाफ                                                    1,65,000                                   10,68,000 
प्रति शाखा औसत आबादी                              65,000:1                                  15,000:1 

इस शानदार हकीकत के बावजूद कुछ कड़वे सत्य अभी बाकी हैं। अभी भी देश में 50 करोड़ से अधिक लोगों के पास बैंक का खता नहीं है। पांच लाख से अधिक गाँवों में एक भी  है। इन कुछ कड़वे सत्यों को आधार बनाकर ही सरकार अपने कदम बढ़ा रही निजीकरण की ओर। दूसरी तरफ कार्पोरेट सेक्टर लगातार सार्वजनिक धन को बैंक ऋण अदा न करके लूटने में कामयाब है। इस तरह के डिफल्ट्रॉन को बैंक संगठन अपने तौर पर कई बार उनके नाम सार्वजनिक करके बेनकाब कर चुके हैं लेकिन सरकार इस मामले में कभी गंभीर नहीं दिखी। सरकार और पूंजीपति लगातार बैंकों के निजीकरण और बैंकों के विलय के प्रयासों में लगे हैं। 
जिन लोगों के खाते सरकारी बैंकों में  शून्य एकाउंट से भी खुल जाते हैं वे ज़रा निजी बैंकों में जा कर देखें की वहां खाता कैसे खुलता है? इस लिए बैंकों को निजीकरण से बचाने का संघर्ष केवल बैंक मुलाज़िमों का नहीं बल्कि आम जनता का भी होना चाहिए वरना आपके खाते, आपकी पूंजी सब कुछ पहुँच जायेगा पूंजीपतियों के निजी हाथों में। क्या आपको यह सब खतरनाक नहीं लगता?

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