खुशियाँ थी चार दिन की, आँसू हैं उम्रभर के
तनहाईयों में अक्सर रोयेंगे याद कर के
गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा
गुज़रा हुआ जमाना, आता नहीं दोबारा
हाफ़िज खुदा तुम्हारा
खुशियाँ थी चार दिन की, आँसू हैं उम्रभर के
तनहईयों में अक्सर रोयेंगे याद कर के
वो वक्त जो के हम ने, एक साथ हैं गुज़ारा
मेरी कसम हैं मुझ को, तुम बेवफ़ा ना कहना
मजबूर थी मोहब्बत सबकुछ पड़ा हैं सहना
टूटा हैं जिंदगी का, अब आखरी सहारा
मेरे लिए सहर भी, आई हैं रात बनकर
निकाला मेरा जनाज़ा, मेरी बरात बनकर
अच्छा हुआ जो तुम ने, देखा ना ये नज़ारा
तनहाईयों में अक्सर रोयेंगे याद कर के
गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा
नहीं रही पंजाब स्क्रीन की सक्रिय संचालिका कल्याण कौर |
हाफ़िज खुदा तुम्हारा
खुशियाँ थी चार दिन की, आँसू हैं उम्रभर के
तनहईयों में अक्सर रोयेंगे याद कर के
वो वक्त जो के हम ने, एक साथ हैं गुज़ारा
मेरी कसम हैं मुझ को, तुम बेवफ़ा ना कहना
मजबूर थी मोहब्बत सबकुछ पड़ा हैं सहना
टूटा हैं जिंदगी का, अब आखरी सहारा
मेरे लिए सहर भी, आई हैं रात बनकर
निकाला मेरा जनाज़ा, मेरी बरात बनकर
अच्छा हुआ जो तुम ने, देखा ना ये नज़ारा
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