मन की शक्ति का फलसफा भी याद दिलाती है फिल्म अनुराग
फ़िल्मी दुनिया-फ़िल्मी यादें: 9 जनवरी 2020: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::
अपने ज़माने में हिंदी फ़िल्म "अनुराग" बहुत हिट हुई थी। सन 1972 के आखिरी महीने दिसंबर में रिलीज़ हुई इस फिल्म ने दर्शकों को चुंबक की तरह खींचा था। निर्माता निर्देशक थे शक्ति सामंत। मौसमी चटर्जी की तो यह पहली फिल्म थी। राजेश खन्ना भी इसी फिल्म के एक छोटे से रोल में नज़र आए। इसी फिल्म को सन 1973 का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला। मध्य वर्ग के लोगों ने तो एक से ज़्यादा बार भी यह फिल्म देखी। यह एक ऐसी प्रेम कहानी है जो आंखों की रौशनी को केंद्रीय बिंदु बना कर बनी गई है। नायक पूरी तरह अच्छा भला लेकिन नायका की आंखों में रौशनी नहीं। ऐसी स्थिति में भी प्रेम होता है और पूरी शिद्दत से होता है। यूं कह लो कि इश्क यहां भी अपना लोहा मनवा लेता है। इसी फिल्म का एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। इस फिल्म में नायक का नायिका से वायदा है: फिल्म के पांच यादगारी गीतों में इस गीत का जादू अनूठा ही था
तेरे नैनों के मैं दीप जलाऊँगा
अपनी आँखों से दुनिया दिखलाऊँगा
नायक और नायका शायद सागर के सामने खड़े हैं। सागर और हवा की अठखेलियों का सहारा ले कर रूमानी सा माहौल बनाया जाता है और इसी माहौल में गीत शुरू होता है एक सादा किस्म के सवाल से--वो क्या है?
जवाब भी बहुत सीधा और सादा से। वो क्या है पूछे जाने पर जवाब मिलता है-इक मंदिर है। नया सवाल होता है उस मंदिर में? इसका जवाब भी बहुत सीधा सा-उस इक मूरत है। अगला सवाल है--वो मूर्त कैसी होती है-जवाब बहुत ही रूमानी है--तेरी सूरत जैसी होती है...! कितनी दिव्यता है गीत के इन बोलो में। कितना विश्वास है। इसी गीत के किसी अगले सवाल में एक अंधी लड़की को जब उसका प्रेमी तीसरा सवाल करता है कि तुमने कैसे जान लिया? इस सवाल से दिल, दिमाग और मन फ़िल्म के सभी दृश्यों से किसी हल्की सनसनी की तरह कट जाता है दर्शक को इसका न तो अहसास होता है और न ही कोई झटका लगता है। यही है निर्देशक का कमाल कि दर्शक भी फ़िल्म के दृश्यों और गीत के बोलों के साथ बहता हुआ यही पूछने लगता है-तुमने कैसे जान लिया? इस सवाल का जवाब बहुत गहरा है। अपने आप में पूरा फलसफा समेटे हुए। तुमने कैसे जान लिया के जवाब में मन की शक्ति का अहसास कराता यह जवाब कहता है-मन से आंखों का काम लिया! धार्मिक प्रवचनों से दूर-धार्मिक परिवेश से दूर बैठे दर्शक को पहली बार मन की शक्ति का अहसास इतने संगीतमय और काव्य से भरे इतने मधुर लेकिन बहुत सादगी भरे शब्दों से कराया जाता है-मन से आंखों का काम लिया!
इसके बाद भी गीत अपनी दिलचस्पी को कायम रखता हुआ आगे बढ़ता है।
लीजिये यह पूरा गीत भी पढ़िए जिसे लिखा था जनाब आनंद बख्शी साहिब ने और संगीत से सजाया था एस.डी. बर्मन साहिब ने। आवाज़ दी थी जनाब मोहम्मद रफ़ी साहिब और सुर साम्राज्ञी मंगेशकर ने। इस फिल्म के पांच यादगारी गीतों में से इस गीत का जादू कुछ अलग सा ही रहा।
अब लीजिये इस गीत के यादगारी बोल भी गुनगुनाईये
तेरे नैनों के मैं दीप जलाऊँगा
अपनी आँखों से दुनिया दिखलाऊँगा
अच्छा?
वो क्या है? इक मंदिर है
उस मंदिर में? इक मूरत है
ये मूरत कैसी होती है?
तेरी सूरत जैसी होती है
वो क्या है? इक मंदिर है
मैं क्या जानूँ छाँव है क्या और धूप है क्या
रंग-बिरंगी इस दुनिया का रूप है क्या
वो क्या है? इक परबत है
उस परबत पे? इक बादल है
ये बादल कैसा होता है?
तेरे आँचल जैसा होता है
वो क्या है? इक परबत है
मस्त हवा ने घूंघट खोला, कलियों का
झूम के मौसम आया है रंगरलियों का
वो क्या है? इक बगिया है
उस बगिया में? कई भँवरे हैं
भँवरे क्या जोगी होते हैं?
नहीं, दिल के रोगी होते हैं
वो क्या है? इक बगिया है
ऐसी भी अनजान नहीं मैं अब सजना
बिन-देखे मुझ को दिखता है सब सजना
अच्छा?
वो क्या है? वो सागर है
उस सागर में? इक नैया है
अरे, तूने कैसे नाम लिया?
मन से आँखों का काम लिया
वो क्या है? वो सागर है
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