मंगलवार, 7 जनवरी 2020

एक कहानी जो आपको नए रंग में रंग देगी

 रिश्तों में छुपी रूहानियत और पावन इश्क का अहसास 
इस कोलाज में जो डिनर की तस्वीर दिख रही है वह धन्यवाद सहित ली गई है आर जे Danish Sait की फेसबुक वाल से 
अतीत की दुनिया: 7 जनवरी 2020: (पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::
आल इण्डिया रेडियो की उर्दू सर्विस कभी बेहद मकबूल थी। इस सर्विस ने दोस्तों का एक नया नेटवर्क बनाया था। समाज को  बहुत ही शानदार भूमिका निभाई।  टीवी की लोकप्रियता तक भी उर्दू सर्विस छाई रही। इसी में एक प्रग्राम होता था रात को साढ़े बजे (10:30)  से लेकर सवा ग्यारह (11:15) बजे तक। दिल और दिमाग में आज तक जगह बना कर मौजूद उस प्रोग्राम का नाम था-तामील-इ-इरशाद।  हम लोग छोटा सा रेडिओ अपनी अपनी रजाई में छुपाकर पुराने गीत सुना करते। इस प्रोग्राम को पेश करने वालों की टीम भी बहुत शानदार थी।  दिलों में उतरती बातों के ज़रिये इन सभी से एक अलग सा रिश्ता भी था। एक बार रेडिओ स्टेशन के परिसर में जनाब शमीम कुरैशी साहिब से मुलाकात हुई। हम सभी उनके फैन थे। बहुत अच्छा चुनाव होता था उनके गीतों का। एक गीत को दुसरे गीत के साथ  लिंकिंग के शब्द भी कमल के हुआ करते थे। एक दिन शाम की चाय पीते उनसे पूछा आप ने कभी सच में भी इश्क किया है? झट से मुस्करा कर बोले हाँ किया है-अपनी मां से किया सबसे पहला इश्क। उसी अहसास से पता चला कि इश्क कितना रूहानी और पावन होता है। आज एक कहानी को  थो शम्मी साहिब याद आ गये। यह कहानी किसी मित्र ने बहुत पहले भेजी थी लेकिन सम्पादन के लिए पेंडिंग पड़ी सामग्री में से आज सामने आई। देखिये-पढ़िए और बताइये इसे पढ़ कर मन में क्या आया! --रेक्टर कथूरिया
एक दिन अचानक मेरी पत्नी मुझसे बोली - "सुनो, अगर मैं तुम्हे किसी और के साथ डिनर और फ़िल्म के लिए बाहर जाने को कहूँ तो तुम क्या कहोगे"।
मैं बोला-" मैं कहूँगा कि अब तुम मुझे प्यार नहीं करती"।
उसने कहा-"मैं तुमसे प्यार करती हूँ, लेकिन मुझे पता है कि यह औरत भी आपसे बहुत प्यार करती है और आप के साथ कुछ समय बिताना उनके लिए सपने जैसा होगा"।

वह अन्य औरत कोई और नहीं मेरी माँ थी। जो मुझ से अलग अकेली रहती थी। अपनी व्यस्तता के कारण मैं उन से मिलने कभी कभी ही जा पाता था।

मैंने माँ को फ़ोन कर उन्हें अपने साथ रात के खानेे और एक फिल्म के लिए बाहर चलने के लिए कहा।

"तुम ठीक तो हो,ना। तुम दोनों के बीच कोई परेशानी तो नहीं" माँ ने पूछा

मेरी माँ थोडा शक्की मिजाज़ की औरत थी। उनके लिए मेरा इस किस्म का फ़ोन मेरी किसी परेशानी का संकेत था।
" नहीं कोई परेशानी नहीं। बस मैंने सोचा था कि आप के साथ बाहर जाना एक सुखद अहसास होगा" मैंने जवाब दिया और कहा 'बस हम दोनों ही चलेंगे"।

उन्होंने इस बारे में एक पल के लिए सोचा और फिर कहा, 'ठीक है।'

शुक्रवार की शाम को जब मैं उनके घर पर पहुंचा तो मैंने देखा है वह भी दरवाजे पर इंतजार कर रही थी। वो एक सुन्दर पोशाक पहने हुए थी और उनका चहेरा एक अलग सी ख़ुशी में चमक रहा था।

कार में माँ ने कहा " 'मैंने अपनी friends को बताया कि मैं अपने बेटे के साथ बाहर खाना खाने के लिए जा रही हूँ। वे काफी प्रभावित थी"।

हम लोग माँ की पसंद वाले एक रेस्तरां पहुचे जो बहुत सुरुचिपूर्ण तो नहीं मगर अच्छा और आरामदायक था। हम बैठ गए, और मैं मेनू देखने लगा। मेनू पढ़ते हुए मैंने आँख उठा कर देखा तो पाया कि वो मुझे ही देख रहीं थी और एक उदास सी मुस्कान उनके होठों पर थी।

'जब तुम छोटे थे तो ये मेनू मैं तुम्हारे लिए पढ़ती थी' उन्होंने कहा।

'माँ इस समय मैं इसे आपके लिए पढना चाहता हूँ,' मैंने जवाब दिया।

खाने के दौरान, हम में एक दुसरे के जीवन में घटी हाल की घटनाओं पर चर्चा होंने लगी। हम ने आपस में इतनी ज्यादा बात की, कि पिक्चर का समय कब निकल गया हमें पता ही नही चला।

बाद में वापस घर लौटते समय माँ ने कहा कि अगर अगली बार मैं उन्हें बिल का पेमेंट करने दूँ, तो वो मेरे साथ दोबारा डिनर के लिए आना चाहेंगी।
मैंने कहा "माँ जब आप चाहो और बिल पेमेंट कौन करता है इस से क्या फ़र्क़ पड़ता है।
माँ ने कहा कि फ़र्क़ पड़ता है और अगली बार बिल वो ही पे करेंगी।

"घर पहुँचने पर पत्नी ने पूछा" - कैसा रहा।
"बहुत बढ़िया, जैसा सोचा था उससे कही ज्यादा बढ़िया" - मैंने जवाब दिया।

इस घटना के कुछ दिन बाद, मेरी माँ का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। यह इतना अचानक हुआ कि मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पाया ।

माँ की मौत के कुछ समय बाद, मुझे एक लिफाफा मिला जिसमे उसी रेस्तरां की एडवांस पेमेंट की रसीद के साथ माँ का एक ख़त था जिसमे माँ ने लिखा था " मेरे बेटे मुझे पता नहीं कि मैं तुम्हारे साथ दोबारा डिनर पर जा पाऊँगी या नहीं इसलिए मैंने दो लोगो के खाने के अनुमानित बिल का एडवांस पेमेंट कर दिया है। अगर मैं नहीं जा पाऊँ तो तुम अपनी पत्नी के साथ भोजन करने जरूर जाना।
उस रात तुमने कहा था ना कि क्या फ़र्क़ पड़ता है। मुझ जैसी अकेली रहने वाली बूढी औरत को फ़र्क़ पड़ता है, तुम नहीं जानते उस रात तुम्हारे साथ बीता हर पल मेरे जीवन के सबसे बेहतरीन समय में एक था।
भगवान् तुम्हे सदा खुश रखे।
I love you".
तुम्हारी माँ

उस पल मुझे अपनों को समय देने और उनके प्यार को महसूस करने का महत्त्व मालूम हुआ।

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