फिल्म जागते रहो का एक यादगारी गीत
Courtesy: //YouTube
फिल्म जागते रहो वर्ष 1956 में आई थी। एक रात की कहानी में इस फिल्म ने देश और समाज में पनप रहे जुर्मों की एक झलक बहुत ही सफलता से दिखाई थी। यह बात 1956 की है और फिल्म को बनने में भी कुछ समय लगा होगा। इस बात से स्पष्ट है कि आज़ादी के बाद शीघ्र ही सफेदपोश लोगों को मनमानी करने और जुर्म का साम्राज्य स्थापित करने की छूट मिल गयी थी। फिल्म आने के बाद भी न समाज जागा और न ही देश। न लोग जागे और न ही सरकारें। आज जो भ्र्ष्टाचार और जुर्म नज़र आ रहा है वह बहुत पहले मज़बूत होना शुरू हो गया था। यह फिल्म इस बात का एक स्पष्ट सबूत है।
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फिल्म जागते रहो वर्ष 1956 में आई थी। एक रात की कहानी में इस फिल्म ने देश और समाज में पनप रहे जुर्मों की एक झलक बहुत ही सफलता से दिखाई थी। यह बात 1956 की है और फिल्म को बनने में भी कुछ समय लगा होगा। इस बात से स्पष्ट है कि आज़ादी के बाद शीघ्र ही सफेदपोश लोगों को मनमानी करने और जुर्म का साम्राज्य स्थापित करने की छूट मिल गयी थी। फिल्म आने के बाद भी न समाज जागा और न ही देश। न लोग जागे और न ही सरकारें। आज जो भ्र्ष्टाचार और जुर्म नज़र आ रहा है वह बहुत पहले मज़बूत होना शुरू हो गया था। यह फिल्म इस बात का एक स्पष्ट सबूत है।
इस फिल्म का सच आज भी पूरा सच है। इस के गीत आज भी दिल को छूते हैं। इसका कारण है कि राज साहिब ने इसके हर पहलू की तरफ पूरा ध्यान दिया और दिल से काम किया। जब संगीतकार के चुनाव की बात आई तो राज कपूर साहिब ने इस फिल्म का संगीतकार सलिल चौधरी को चुना। उनका चुनाव स्वयं राज कपूर ने ही किया था। गौरतलब है कि उस समय तक शंकर-जयकिशन उनकी फिल्मों के स्थायी संगीतकार के तौर पर स्थापित हो चुके थे। इसके बावजूद सलील साहिब का चुनाव एक क्रांति थी।
मै कोई झुठ बोलिया-मैं कोई कुफ्र तोलिया ? |
वास्तव में फिल्म ‘जागते रहो’ बांग्ला फिल्म ‘एक दिन रात्रे’ का हिन्दी संस्करण थी और बांग्ला संस्करण के संगीतकार सलिल चौधरी को ही हिन्दी संस्करण के संगीत निर्देशन का दायित्व दिया गया था सभी जानते हैं कि साहित्य और संगीत पर बांग्ला कल्चर हमेशां ही आगे रहा है। राज साहिब की अपेक्षा पर खरा उतरते हुए सलिल चौधरी ने इस फिल्म के गीतों में पर्याप्त विविधता भी रखी। परिणाम यादगारी। इस फिल्म में उन्होने एक गीत ‘जागो मोहन प्यारे, जागो...’ की संगीत रचना ‘भैरव’ राग के स्वरों पर आधारित की थी। इस के बोल इसकी धुन आज भी सीधा आत्मा को झंकृत करते हैं। शैलेन्द्र के लिखे इस गीत के बोल जब लता मंगेशकर के स्वरों में ढले, तब यह गीत हिन्दी फिल्म संगीत का यादगारी गीत बन गया। ऐतिहासिक फिल्म का संदेश आज भी प्रसंगिक है। गीत जागो मोहन प्यारे आज भी ताज़ा है बिलकुल सुबह की तरह। फिल्म में पंजाबी तड़का भी है जिसकी चर्चा की जाएगी किसी अलग पोस्ट में। --रेक्टर कथूरिया
जागो
जागो जागो
जब उजियारा छाये
मन क अन्धेरा जाये
किरनों की रानी गाये
जागो हे, मेरे मन मोहन प्यारे
जागी रे जागी रे जग कलियां जागी
जागी रे जागी रे जागी रे
जागी रे जागी रे जग जग
जागो मोहन प्यारे जागो
नव युग चूमे नैं तिहारे
जागो, जागो मोहन प्यारे
जागी जागी रे जग कलियान जागी
जागी रे जागी रे जागी रे
जागी रे जागी रे जग जग
भीगी भीगी अँखियों से मुसकाये
ये नैइ भोर तोहे अंग लगाये
बाहें फैला ओ दुखियारे
जागो मोहन प्यारे ...
जिसने मन का दीप जलाया
दुनिया को उसने ही उजला पाया
मत रहना अँखियों के सहारे
जागो मोहन प्यारे ...
किरन परी गगरी छलकाये
ज्योत का प्यासा प्यास बुझाये
फूल बने मन के अंगारे
जागो मोहन प्यारे ...
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