गुरुवार, 21 जनवरी 2021

सैलमन मछलियों को बचाने के अभियान में जुटी नीरिया अलीसिया गार्सिया

 संघर्ष और विस्थापन से भरी है सैल्मन की ज़िंदगी  

Niria Alicia Garcia coordinates the annual Run 4 Salmon event alongside a community of indigenous activists. Photo: UNEP

19 जनवरी 2021//जलवायु परिवर्तन

शायद हर जीव को लगता हो कि शायद वही है मुश्किलों ने जिसका पीछा शुरू कर दिया। कदम कदम पर इम्तिहान हैं। हर मोड़ पर संग्राम है। मानव वर्ग के भी शायद बहु संख्यक लोगों को भी यही लगता है दुःख और शायद उसी की ज़िंदगी में हैं। वह कभी किस्मत को कोसता है और कभी भगवान को। लेकिन वास्तव में संग्राम और संघर्ष के बिना ज़िंदगी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। कभी भूख के साथ संघर्ष और कभी मौत का सामना। कभी बीमारी मुसीबत कभी वृद्धावस्था।  

ध्यान से देखें तो यह सिलसिला हर किसी के साथ है। यही कुछ होता  मछलियों के साथ। सैल्मोनिडे परिवार की विभिन्न प्रजातियों की मछली के लिए दिया जाने वाला एक आम नाम है सैल्मन। सुनने में काफी अच्छा भी लगता है। इस परिवार की कई अन्य मछलियों को ट्राउट भी कहा जाता है। दोनों के बीच बहुत बसे फर्क भी हैं लेकिन फिर भी प्रजाति तो एक ही है। अक्सर यह अंतर बताया जाता है कि सैल्मन विस्थापित होती रहती हैं और ट्राउट एक तरह से स्थायी निवासी होती हैं। एक ऐसी धारणा जो सैल्मो जीनस के लिए सच है। सैल्मन दोनों जगह रहती है, अटलांटिक में (एक प्रवासी प्रजाति सैल्मो सालार) और प्रशांत महासागर में, साथ ही साथ ग्रेट लेक्स में ओंकोरिन्कस जीनस की करीब एक दर्जन प्रजातियां हैं। थोड़े बहुत अंतर हर प्रजाति में हैं। बहुत सी खूबियां हैं। 

आज हम आपको इस विषय पर बता रहे हैं काफी कुछ लेकिन मुख्य फोकस रहेगा सैल्मन पर जिसके अस्तित्व को शायद अब खतरा पैदा हो गया है। आमतौर पर, सैल्मन ऐनाड्रोमस हैं, वे ताज़े पानी में पैदा होती हैं और फिर जल्दी ही सागर में विस्थापित हो जाती हैं। दिलचस्प बात है कि प्रजनन के लिए सैल्मन मछलियां फिर ताजे पानी में वापस आ जाती हैं। गौरतलब है कि ऐसी दुर्लभ प्रजातियां भी हैं जो केवल ताज़े पानी में ही जीवित रह सकती हैं। लोककथाओं में ऐसा कहा जाता है, कि मछली अंडे देने के लिए ठीक उसी जगह लौटती है जहां वह पैदा हुई थी; ट्रैकिंग अध्ययन से पता चला है कि यह सच है लेकिन इस स्मृति के काम करने की प्रकृति पर लंबी बहस होती रही है। फिर भी यह बता एक ठोस सत्य है। एक बहुत ही आश्चर्यजनक हकीकत है यह तथ्य। 

उल्लेखनीय है कि सैल्मन के अंडे मीठे पानी की धाराओं में आम तौर पर उच्च अक्षांश पर दिए जाते हैं। सेने की प्रक्रिया में अंडे अलेविन या साक फ्राई बन जाते हैं। खड़ी धारियों के छलावरण के साथ फ्राई जल्दी ही, पार में विकसित हो जाते हैं। पार छः महीने से तीन वर्ष तक अपनी देशी धारा में रहती है जिसके बाद वह स्मोल्ट बन जाती है, जिसे उनके चमकदार चांदी जैसे रंग से पहचाना जाता है और जो आसानी से मिट जाता है। यह अनुमान है कि सैल्मन के सभी अण्डों में केवल 10% इस स्तर तक जीवित रहते हैं। स्मोल्ट के शरीर के रसायन विज्ञान में परिवर्तन होता रहता है, जो उन्हें खारे पानी में रहने की अनुमति देता है। स्मोल्ट अपने प्रवास के बाहर का समय खारे पानी में बिताती हैं जहां उनका शारीरिक रसायन शास्त्र समुद्र में ऑस्मोरेग्युलेशन का आदी हो जाता है। जन्म के साथ ही कितना संघर्ष सामने आता है इसका अनुमान आप जन्म की इस बेहद कठिन प्रक्रिया से लगा ही सकते हैं। 

सैल्मन खुले सागर में एक से पांच साल (प्रजातियों के आधार पर) का समय बिताती हैं और जहां वे यौन रूप से पूरी तरह परिपकव भी हो जाती हैं। वयस्क सैल्मन अंडे देने के लिए मुख्यतः अपनी जन्म धारा में लौटती है। अलास्का में, दूसरी धाराओं में जाने से सैल्मन की आबादी दूसरी धाराओं में भी बढ़ती है, जैसे कि वे जो ग्लेशियर वापसी के रूप में आती हैं। सैल्मन अपना मार्गनिर्देशन कैसे करती हैं इसकी सटीक विधि को अभी स्थापित नहीं किया जा सका है, हालांकि गंध की उनकी गहरी समझ इसमें शामिल है। अटलांटिक सैल्मन एक से चार साल तक समुद्र में रहती हैं। (जब एक मछली सिर्फ एक साल में समुद्र में रह कर लौट आती है तो उसे ब्रिटेन और आयरलैंड में ग्रिलसे कहते हैं।) अंडा देने से पहले, प्रजातियों के आधार पर, सैल्मन परिवर्तन से गुजरती है। उनका कूबड़ निकल सकता है, कैनाइन दांत आ सकते हैं, काइप का विकास हो सकता है (नर सैल्मन में जबड़े की स्पष्ट वक्रता). सभी कुछ बदल जाता है, समुद्र की एक चमकदार नीली मछली से एक गहरे रंग में परिवर्तन. सैल्मन अद्भुत सफर करती है, कभी-कभी मजबूत धाराओं के खिलाफ सैकड़ों मील चलती है और जनन के लिए वापस आती है। 

आप अनुमान लगा सकते हैं कि जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक संघर्ष ही संघर्ष है। मानव की तरह इन मछलियों को भी इसधर उधर आना जाना पड़ता है। हमारी भाषा में शायद इसे भटकना भी कहा जाता है। भटकनों से भरे जीवन को जीती सैल्मन का जीवन शायद खतरों से भर गया है। इस खतरे के साथ ही उसे चाहने वाले भी आगे आए हैं। इस समंध में हम एक युवती की तस्वीर भी यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं। इस युवती की तस्वीर और इसके बचाव कार्य के विवरण को जनता के सामने लाने की पहल का प्रयास किया है संयुक्त राष्ट्र संघ ने।  

अमेरिका की एक युवती को संयुक्त राष्ट्र ने युवा पृथ्वी चैम्पियन के रूप में सराहा है, जो वर्चुअल रियलिटी की मदद से सैलमन मछलियों को बचाने के अभियान में लगी हैं। 

नीरिया अलीसिया गार्सिया स्थानीय कार्यकर्ताओं के समुदाय के साथ मिलकर वार्षिक ‘रन4सैलमन’ अभियान का समन्वय करती हैं. इस अभियान के तहत वो कैलिफोर्निया के सबसे बड़े जल क्षेत्र में सैक्रामेंटो चिनुक सैलमन मछली की ऐतिहासिक यात्रा को जीवन्त करने के लिये वर्चुअल रियलिटी का उपयोग करते हुए,इस अमूल्य पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में जागरूकता बढ़ाती हैं। 

नीरिया अलीसिया संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)के यंग चैम्पियंस ऑफ़ द अर्थ, 2020 के रूप में पहचान बनाने वाले सात नवप्रवर्तकों में से एक हैं। 

इस मछली को खाने और  खाने की सिफारिश करने वाले बताते हैं कि इस मछली में बहुत से पोषक तत्व होते हैं। आँखों के लिए भी यह बहुत फायदेमंद है और हड्डियों लिए। भी। बॉडीबिल्डिंग के लिए भी  इसे काफी अच्छा माना जाता है। रक्तचाप में भी यह काफी फायदेमंद है। 

इसके कुछ नुक्सान भी बताये जाते जाते हैं। तलाबों  में पाली जानेवाली मछलियां बड़े समुन्द्रों में पाली जाने  मछलियों  होने लगती हैं। तालाबों की मछलियों में पारे मात्रा बढ़ जाती है।

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

बात जोगिंदरपाल पांडे के श्रद्धांजलि कार्यक्रम की

चुनौतियों का सामना करने वाला वह संकल्प कहीं कमज़ोर तो नहीं?


लुधियाना: 19 जनवरी 2021: (मीडिया लिंक रविंद्र//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::

उन दिनों को अब कई दशक गुज़र चुके लेकिन उनकी याद आते ही आज भी बदन में एक सिहरन सी  दौड़ जाती है। दिमाग में खौफ का वह माहौल ताज़ा हो जाता है। जिन लोगों ने वे दिन देखे हैं वे आज भी हर उस बात से दूरी बनाए रखना चाहते हैं जिन बातों से वह माहौल बना था। हर तरफ गोली का राज था। बम धमाके भी आम सी बात हो गई थी। घर से निकलते वक़्त इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल सा होता था कि शाम तक घर लौट पाएंगे या नहीं? हर गली हर मोहल्ले में पुलिस की गश्त भी होती थी लेकिन इसके बावजूद ए के 47 वाले अपनी मनमानी कर गुज़रते थे। सियासत की खतरनाक चालें भाईचारे के बटवारे की रेखाओं को गहरी करने में कामयाब हो रहीं थी। लोग इंसानियत से हट कर हिन्दू सिख बन कर सोचने लगे थे। घरों और परिवारों में खौफ छाया रहता था।  उस समय कांग्रेस पार्टी से सबंधित जानेमाने नेता सतपाल मित्तल और जोगिंदर पाल पांडे की जोड़ी अपनी सक्रियता निरंतर बनाए हुए थी। उनकी लोकप्रियता भी शिखर पर थी। उनके मित्रों में हिन्दू भी थे, सिख भी, मुस्लमान भी और ईसाई भी। यह जोड़ी हर गली हर मोहल्ले  में जा कर लोगों को हौंसला देती कि चिंता मत करो हम हैं न आपके साथ!  उनकी महफिलें किसी दरबार से कम न थीं जहाँ आने वाले मेहमानों के लिए हर वक़्त चाय, कॉफी, दाल-रोटी जलपान चलता रहता।  इसी बहाने उस वक़्त के मौजूदा हालात पर चर्चाएं भी चलती रहतीं। .... एक दिन 19 जनवरी का ही दिन था जब अनहोनी हो के रही। 

वरिष्ठ कांग्रेसी निर्दोष भारद्वाज बताते हैं कि उस दिन जोगिंदर पाल पांडे की कार भारत नगर चौंक के नज़दीक ही स्थित पैट्रोल पम्प में आ कर रुकी। श्री पांडे चंडीगढ़ जा रहे थे। पैट्रोल भरवाने के लिए रुके तो कोई न जनता था की यहां हमेशां ही ज़िंदगी को ब्रेक लगने वाली है। पंजाब का वह शेर होनी के जल में फंस चूका था। देखते ही देखते अचानक उसी पैट्रोल पम्प पर ए के 47 वाले लोग भी आ धमके। दिन दहाड़े गोलियों की बरसात हुई और श्री पण्डे को हमसे हमेशां के लिए छीन लिया गया। तब से लेकर कांग्रेस पार्टी गुटबंदियों के बावजूद इस दिन को मनाती आ रही है। इस घटना से जोगिंदरपाल की छवि एक हिन्दू नेता के तौर पर भी गहरी हो कर उभरी। 

आज भी इस दिन को कांग्रेस पार्टी ने बहुत ही आस्था से लुधियाना के कांग्रेस भवन में मनाया। अब जबकि हालात फिर से खतरनाक होने के इशारे दिखाई देने लगे हैं उस समय अतीत का ज़िक्र आवश्यक भी लगने लगा है। जिन लोगों ने उस नाज़ुक दौर में अपनी जान गंवाई तांकि एकता के सिद्धांत को बचाया सके, देश को बचाया जा सके, आपसी भाईचारे को बचाया जा सके; उन्हें याद करना  सिर्फ परिवारों और पार्टी का कर्तव्य ही नहीं बल्कि उन सभी का कर्तव्य  भी है जो उस सोच के साथ सहमत हैं। अब तो पंजाब में कांग्रेस  पार्टी की सत्ता इस लिए यह आयोजन  बहुत बड़े पैमाने पर होना चाहिए था। दिवंगत नेता जोगिंदरपाल पण्डे के बेटे एम एल ए राकेश पण्डे से लोगों को अब अभीबहुत उम्मीदें हैं लेकिन वह न जाने क्यूं निराश से हो कर बैठे हैं। अपने पिता की तरह वह सक्रिय नहीं हो पा रहे। पार्टी और सरकार के हालात चाहे कुछ भी क्यूं न हों। उनमें उनकी कजिन का असर तो दिखना ही  चाहिए। जो बनी बनाई विरासत और रियासत उन्हें जन्म से ही मिली है उनके पिता को तो जन्म में वह भी नहीं मिली थी। उन्होंने सब कुछ अपनी स्ट्रगल से अर्जित किया। राकेश पण्डे को अपनी स्थिति का फायदा उठाना चाहिए। सब कुछ पार्टी पर छोड़ना आज जैसे हालात में उचित भी नहीं कहा जा सकता। आज हर कांग्रेसी को स्वयं पार्टी बन कर बाहर निकलना होगा। अकेले ही यह हिम्मत करनी होगी। देखते ही देखते काफिला बन जाएगा। 

फिर भी जो हो सका पार्टी ने वह किया। जिला कांग्रेस कमेटी (शहरी) के प्रधान अश्वनी शर्मा की अध्यक्षता में कांग्रेस भवन में एक शोक सभा का आयोजन किया गया। इस शोक सभा में स्व. जोगिंदर पाल पांडे को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस दौरान अश्वनी शर्मा ने कहा कि जोगिंदर पाल पांडे ने आतंकवाद के समय पूरी निर्भिकता के साथ कांग्रेस पार्टी को दिशा प्रदान की और अपने जीवन की कुर्बानी दे दी। कई वरिष्ठ कांग्रेसी आए तो सही लेकिन एक औपचारिकता की तरह। लगता है बहुत से लोग वह सब भूल भी गए हैं। अब उन्हें कौन यह गीत सुनाए कि अब याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आये! 

हालांकि अश्वनी शर्मा ने कहा कि उनकी कुर्बानी को कांग्रेस कभी भी भूला नहीं सकती। इस मौके पर मेयर बलकार सिंह संधू, सीनियर डिप्टी मेयर शाम सुंदर मल्होत्रा, जिला महिला कांग्रेस कमेटी की प्रधान लीना टपारिया ने भी स्व. जोगिंदर पाल पांडे को श्रद्धांजलि भेंट की। फिर भी रह रह कर यही लगता रहा कि जानेवाले चले जाते हैं और वक़्त की धुल धीरे धीरे सब कुछ भुलाती चली जाती है।  

इस मौके पर सुशील पराशर, कुलवंत सिद्धू, रोशन लाल, दुष्यंत पांडे, बनवारी लाल, हरबंस पनेसर, सोमनाथ बत्रा, विपन सूद, अरूणा टपारिया, सावित्री देवी, हरमीत सिंह भोला, अमृतपाल सिंह, प्रदीप ढल्ल, कपिल किशोर, अश्वनी मल्होत्रा, जयप्रकाश, सुरजीत गिल, दिनेश मरवाहा, राकेश कुमार, संजीव मलिक, विपन शर्मा, अशोक कुमार आशु, सुरिंदर दत्त, सुरिंदर शर्मा, अहमद अली, गोल्डी अग्निहोत्री आदि ने भी स्व. जोगिंदर पाल पांडे को श्रद्धा सुमन भेंट किए। इन सभी के बोलों और शब्दों दर्द भी था, आस्था भी थी, सम्मान भी था लेकिन उन चुनौतियों का सामना  करने वाला वह संकल्प आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है। महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू की सोच वाली  कांग्रेस को बचाना बेहद ज़रूरी हो गया है। उस पुरानी कांग्रेस को बचा कर ही शायद देश को भी बचाया जा सके वरना बेचने वालों ने इसे बाजार में ला कर रख ही दिया है। 

अंत में चर्चा हरीश रावत की। उन्होने  श्री पांडे को याद करते हुए कहा है,पंजाब में अमन_शांति कायम रखने के लिये अपने प्राणों की आहुति देने वाले अमर शहीद श्री जोगिंदर_पाल_पांडे जी की 34वीं पुण्यतिथि पर उन्हें शत्-शत् नमन एवं भावभीनी श्रद्धांजलि। उन्होंने अपनी बात के अंत में विशेष तौर पर अमर शहीद जोगिंदरपाल पांडे अमर रहे।

रविवार, 3 जनवरी 2021

हैपी बर्थडे गैरी!

तुम जिओ हज़ारों साल- साल के दिन हों पचास हज़ार

लुधियाना: 3 जनवरी 2020: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग  टीवी)::

आंखों की बिमारियों या आपरेशनों का कैंप कहीं भी हो तो आम तौर पर उसमें डाक्टर रमेश मंसूरां वालों टीम ज़रूर होती है। इसी कैंप में जो लोग आपको अपने परिवारिक सदस्यों की तरह मिलेंगे उनमें एक नाम ऋषि का भी है। वही ऋषि जिसे ज़्यादातर लोग डा. रछपाल ऋषि के तौर पर जानते हैं। शायरी से भी प्रेम है, कैमरे से भी और पत्रकारिता भी।  

मीडिया को मेडिकल कैंप की खबरें भेजने के साथ साथ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं को गांव के प्राकृतिक नज़ारे दिखाती  अच्छी  तस्वीरें भी ऋषि साहिब ही भेजते हैं। काम कितना ही थकावट भरा हो लेकिन ऋषि के चेहरे पर हमेशां  मुस्कान नज़र आती है। साथ ही चेहरे पर एक ताज़गी सी भी होती है। 

मैंने पूछा रहस्य क्या है। जवाब में वही जादूभरी खाली मुस्कान। लेकिन आज पता चल ही गया इस रहस्यमय मुस्कान का वास्तविक रहस्य। इस मुस्कान का रहस्य है एक तो उनकी पत्नी हरविंदर कौर और दूसरा है उनका बेटा गैरी जिसका पूरा नाम है गुरनूर सिंह और चार जनवरी को  उसका जन्मदिन है। लुधियाना ज़िले की रायकोट तहसील के गांव पक्खोवाल से हर रोज़   रणधीर सिंह नगर में स्थित अपने अस्पताल में समय पर पहुंचना और फिर देर शाम तक डयूटी में लगे रहना ऋषि के लिए इबादत जैसा ही है। ऋषि  डा.  रमेश के निकट रह कर यही तो तो सीखा। 

गुरनूर सिंह अर्थात गैरी का जन्म चार जनवरी 2012 को हुआ था। संघर्षों के दिन थे लेकिन उसके आते ही  मुश्किलें दूर होने लगीं।  सोचा ऋषि साहिब किसी न किसी पीर बाबा के पास जा कर सजदा करते होंगें। पूछने पर बोले किसी दिन आप भी आ कर देखना। एक दिन सच में जा कर देखा तो मेडिकल कैंपों और अस्पताल में पहुँचने वाले वृद्ध मरीज़ों के दवा-दारू में जुटे डा.रछपाल ऋषि उन मरीज़ों के दिल और अंतरात्मा से निकल रही अनगिनत दुआयों रूहानी बरसात में अलौकिक सा स्नान करते महसूस हुए। आप भी दे दीजिये उन्हें गुरनूर अर्थात गैरी  जन्मदिन  हार्दिक बधाई  वाटसअप नंबर  9988031433 पर।