समस्या सिर्फ राशन की नहीं-अन्य दबावों की भी है
सोशल मीडिया: 25 अप्रैल 2020: रात्रि 9:31 पर:
हैलो, वो-वो आप कुमुद मैम बोल रही हैं...... ?
जी, बोल रही हूं...आप कौन?
मैम मैं भोपाल की.....कॉलोनी में रहती हूँ.....मेरे पति बिजली का काम करते हैं.....दो बच्चे हैं मैम.... यहां सबंधित महिला की पहचान छुपाने के लिए कॉलोनी का नाम हमने जानबूझ कर छुपा लिया है---
बात इससे आगे तो बढ़ी लेकिन कहीं अटक सी गई---मांगना आसान कहाँ होता है! वह बोली--
ऐसा है मैम....
वैसा है मैम......
मैने कहा-आप कुछ कहना चाहती हैं तो बेझिझक कहिए "बहन"
बहन शब्द ने कुछ बहनापा पैदा किया शायद...
वो बोली- मैम घर मे खाने का सामान खत्म हो गया है......ज़्यादा तो कभी नहीं था लेकिन इतना कमा लेते हैं कि हम सब इज्जत से भरपेट खा लेते हैं..... लेकिन अभी सब बंद है तो काम भी नहीं मिल रहा और--
आप बताइए मै क्या करूं आपके लिए बहन---
मैम कुछ राशन मिल पाएगा क्या----- हमने कभी हाथ नहीं फैलाया मैम लेकिन क्या करें समझ में नहीं आ रहा था----किसी से आपका नम्बर मिला तो--
ठीक है, आप बताइये पूरा ऐड्रेस----हम शाम तक भिजवाते हैं कुछ....
शुक्रिया मैम लेकिन वो....
जी कहें!
मैम मेरा नाम सलमा (परिवर्तित नाम) है तो --
तो क्या,
हम वहां पहुँच कर आपको आवाज़ देंगे कि सलमा बहन बाहर आइये, हम आ गए हैं तो आप दरवाज़ा खोल दीजिएगा
वो हंस दी...... उस हंसी से लगा वह आश्वस्त हो गई थी। जब कुछ लोग साम्प्रदायिक आग भड़काने में ही लगे हों तो किसी को इस नज़रिए से सुरक्षा का अहसास करा पाना बेहद मुश्किल होता है---
शुक्रिया मैम, नहीं आपा, हां आपा
ये कल दोपहर एक फोन पर हुई बातचीत है...... सामान वहां पहुँच गया है..... कल से आज शाम तक पांचवीं बार फोन आ चुका है---शुक्रिया आपा, आप बहुत प्यार से बोलती हैं..... बस यही कहना था.....
घबराओ मत बहन........ हालात कितने भी बिगड़ जाएं, हम सलमा और कुमुद आपस में जुड़े रहकर जीत ही लेंगे बाज़ी.......
सलमा बहन को कुमुद का राशन
सोशल मीडिया: 25 अप्रैल 2020: रात्रि 9:31 पर:
प्रतीकात्मक तस्वीर |
जी, बोल रही हूं...आप कौन?
मैम मैं भोपाल की.....कॉलोनी में रहती हूँ.....मेरे पति बिजली का काम करते हैं.....दो बच्चे हैं मैम.... यहां सबंधित महिला की पहचान छुपाने के लिए कॉलोनी का नाम हमने जानबूझ कर छुपा लिया है---
बात इससे आगे तो बढ़ी लेकिन कहीं अटक सी गई---मांगना आसान कहाँ होता है! वह बोली--
ऐसा है मैम....
वैसा है मैम......
मैने कहा-आप कुछ कहना चाहती हैं तो बेझिझक कहिए "बहन"
बहन शब्द ने कुछ बहनापा पैदा किया शायद...
वो बोली- मैम घर मे खाने का सामान खत्म हो गया है......ज़्यादा तो कभी नहीं था लेकिन इतना कमा लेते हैं कि हम सब इज्जत से भरपेट खा लेते हैं..... लेकिन अभी सब बंद है तो काम भी नहीं मिल रहा और--
आप बताइए मै क्या करूं आपके लिए बहन---
मैम कुछ राशन मिल पाएगा क्या----- हमने कभी हाथ नहीं फैलाया मैम लेकिन क्या करें समझ में नहीं आ रहा था----किसी से आपका नम्बर मिला तो--
ठीक है, आप बताइये पूरा ऐड्रेस----हम शाम तक भिजवाते हैं कुछ....
शुक्रिया मैम लेकिन वो....
जी कहें!
मैम मेरा नाम सलमा (परिवर्तित नाम) है तो --
तो क्या,
हम वहां पहुँच कर आपको आवाज़ देंगे कि सलमा बहन बाहर आइये, हम आ गए हैं तो आप दरवाज़ा खोल दीजिएगा
वो हंस दी...... उस हंसी से लगा वह आश्वस्त हो गई थी। जब कुछ लोग साम्प्रदायिक आग भड़काने में ही लगे हों तो किसी को इस नज़रिए से सुरक्षा का अहसास करा पाना बेहद मुश्किल होता है---
शुक्रिया मैम, नहीं आपा, हां आपा
ये कल दोपहर एक फोन पर हुई बातचीत है...... सामान वहां पहुँच गया है..... कल से आज शाम तक पांचवीं बार फोन आ चुका है---शुक्रिया आपा, आप बहुत प्यार से बोलती हैं..... बस यही कहना था.....
घबराओ मत बहन........ हालात कितने भी बिगड़ जाएं, हम सलमा और कुमुद आपस में जुड़े रहकर जीत ही लेंगे बाज़ी.......
सलमा बहन को कुमुद का राशन
शाबाश कुमुद सिंह
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