जीवनशैली में आई गिरावट को दर्शाती रचना
हरिद्वार की हरकी पौड़ी पर बेहद ही चहल पहल सी थी।विष्णु,अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ मस्त मलंग हो भीड़,अभिराम दृश्यों का आनंद ले टहल रहा था। बिटिया की अंगुली बीच बीच में छूट जाती थी तो वो पापा,पापा कह दौड़ती आती थी।
छोटा बेटा माँ के साथ धीरे धीरे कुछ कदम पीछे चहलकदमी करता चल रहा था।
बिटिया ने अचानक पिता की अंगुली खिंची और एक कचड़े के ढेर की तरफ इशारा किया।
एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति,कचड़े के ढेर में से कुछ चुन कर खा रहा था।विष्णु अपनी बिटिया का हाथ थामे कुछ पास गया।ध्यान से चुपचाप अधेड़ व्यक्ति को देखता रहा।वह कचड़े में से चने,फल्ली,इत्यादि अन्न के दाने चुन कर खा रहा था।
विष्णु ने देखा पास ही एक चाय का ठेला है।बिटिया की छमछम के साथ वह चाय के ठेले से एक ब्रेड खरीद लाया। अधेड़ व्यक्ति के एकदम निकट पहुँच उसे थपथपाते हुए बुलाया और ब्रेड देते हुए बोला,"आपके लिए है श्रीमान,खा लें,शायद आप भूखे हैं??"
वह अधेड़ व्यक्ति उठा,घूमा और गुस्से में तमतमाते हुए बोला,"माफ़ कीजियेगा,आपने क्या मुझे भिखारी समझा है?मैंने तो आपसे भीख नहीं मांगी,,मांगूगा भी क्यों? पास के गाँव में मेरी कइयों एकड़ जमीन है,मेरे बेटे उसमें खेती करते हैं,बड़ा मकान,दुकान सब कुछ है मेरे पास उस ईश्वर की दया से,ये ब्रेड आप ही खाएँ।"
विष्णु और नन्ही बिटिया के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।अधेड़ व्यक्ति फिर से कचड़े से चने चुन कर खाने लगा।विष्णु भी अब चने चुनने लगा और कुछ चने खुद खाये और कुछ बिटिया को दिए।दूर खड़ी पत्नी और बेटे को भी आवाज़ दी चने लेने,पर वे नाक भों सिकोड़ पास तक भी न आये।बिटिया चने खाते हुए पूछने लगी,"बाबा,आपके पास सबकुछ है,फिर ये कचड़ा क्यों खाते हो?"
अब वह उस बिटिया की ओर पलटा और मुस्कुराते हुए बोला,"बेटे ये कचड़ा नहीं,अन्न देवता है,कुछ बेवकूफों ने अन्न ब्रह्म को यहाँ फेंक कर उसका अपमान किया है ,मैं तो बस अन्न देवता को मान दे रहा हूँ,और बाबा नहीं,मेरा नाम भीमा है बिटिया।"
विष्णु की आँखों से निर्मल गंगा बह निकली।झुक कर उसने भीमा के पाँव छुए और बिटिया से भी यही करने कहा।विष्णु और भीमा ने कुछ देर बातचीत की और विदा हुए।
बिटिया को ब्रेड देते हुए पिता ने कहा कि ये भीमा गुरु का प्रसाद है,जिसे वो सम्हाल कर रखे।बिटिया ने पूछा, गुरु???वो कैसे पापा???
विष्णु ने उसे समझाते हुए कहा, गुरु वही होता है जो केवल ज्ञान देता ही नहीं बल्कि उस ज्ञान को जीता भी है।भीमा हमारा गुरु इसलिए हुआ बिटिया क्योंकि वो "अन्न ब्रह्म है",इस ज्ञान को जीता है।हर वो व्यक्ति हमारा गुरु है बिटिया ,जो हमें कुछ साकार ज्ञान दे जिसे वो स्वयं जीता भी हो।
इस घटना को कई वर्ष बीत गए,परंतु आज भी ,उस नियत तारीख,भीमा गुरु का प्रसाद ,जो अब सूखी ब्रेड (टोस्ट ) है,के कुछ टुकड़े विष्णु और उसकी बिटिया खाते हैं और तब से अब तक न ही थाली में,न रसोई में,न ही किसी पार्टी में,वे दोनों ही ,अन्न ब्रह्म का अपमान कुछ जूठन छोड़ कर ,कभी नहीं करते हैं।--शुचि(भवि)