शनिवार, 3 दिसंबर 2022

गुलामी की मानसिकता से मुक्त होना भी बेहद ज़रूरी

Posted On: 03rd December 2022 at 3:40 PM
मन के गहरे कोने में भी गुलामी का कोई अंश तक न हो-मोदी  

ज़रा समझिए कि नया भारत:औपनिवेशिक अतीत के प्रतीकों को क्यूं हटा रहा है

नई दिल्ली: 3 दिसंबर 2022: (पीआईबी//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::देश की जनता का एक बहुत बड़ा हिस्सा अक्सर देश के बहुत से स्थानों और इमारतों के नाम उनके नाम पर देखता रहा है जिनके बार में उनके मन की छवि नायक की नहीं खलनायक की रही है। उसके मन में सवाल उठते रहे कि इनका इतना महिमामंडन क्यूं? स्वतंत्रता के बाद भी उन्हींका गुणगान क्यूं जिन्होंने देश को लम्बे समय तक गुलाम बनाए रखा। क्या ये सब वोटबैंक की सियासत का परिणाम है?
15 अगस्त, 2022 को भारत के 76वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आने वाले 25 वर्षों (अमृत काल) के लिए 'पंच प्राण'के बारे में बात की थी। ‘दूसरे प्राण’ के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए उन्होंने कहा, "हमारे अस्तित्व के किसी भी हिस्से में, यहां तक ​​कि हमारे मन या आदतों के किसी गहरे कोनें में भी गुलामी का कोई अंश नहीं होना चाहिए। हमें इसे वहीं समाप्त कर देना चाहिए। हमें अपने आप को गुलामी की उस मानसिकता से मुक्त करना होगा जो हमारे भीतर और हमारे आस-पास मौजूद असंख्य चीजों में दिखाई देती है। यही हमारी दूसरी प्राण शक्ति है।

आधुनिक भारत का इतिहास दो शताब्दियों के ब्रिटिश उपनिवेशवाद के साथ गहराई से जुड़ा है, और स्वतंत्रता प्राप्ति के दशकों बाद भी, हमारे देश ने विभिन्न रूपों में, कुछ विशिष्ट और कुछ सूक्ष्म रूप में अपने औपनिवेशिक बोझ को ढोने का क्रम जारी रखा है। पिछले कुछ वर्षों से, सरकार धीरे-धीरे भारत को ब्रिटिश शासन के इन प्रतीकों से दूर कर रही है, और एक नए भारत की पहचान को मजबूती से स्थापित करने के लिए उसने अनेक क्षेत्रों में कई कदम उठाए हैं और वास्तव में देश को उसकेऔपनिवेशिक अतीत से मुक्त कराया है।

इस नए अभियान के अंतर्गत राजपथ का नाम बदल कर कर्तव्य पथ रखा गया

 अमृत ​​काल में 'औपनिवेशिक मानसिकता के किसी भी निशान को हटाने' के अपने संकल्प के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 08 सितंबर, 2022 को नई दिल्ली में 'कर्तव्य पथ'का उद्घाटन किया। नामकरण में यह परिवर्तन पूर्ववर्ती राजपथ से परिवर्तन करने का प्रतीक है।कर्तव्य पथ के लिए शक्ति का एक प्रतीक होना सार्वजनिक स्वामित्व और सशक्तिकरण का उदाहरण है

 इंडिया गेट पर स्थापित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा अब नए भारत की बात करती महसूस होती है। 

इसी तरह इंडिया गेट के पास लगी किंग जॉर्ज पंचम की प्रतिमा को हटाकर उस स्थान पर राष्ट्रीय नायक और प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। “यहां गुलामी के समय, ब्रिटिश राज के प्रतिनिधि की एक मूर्ति थी। आज उसी स्थान पर नेताजी की प्रतिमा स्थापित कर देश ने एक आधुनिक, मजबूत भारत को जीवंत किया है। नेताजी की ग्रेनाइट की मूर्ति उसी स्थान पर स्थापित की गई है, जहां इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री ने पराक्रम दिवस (23 जनवरी) को नेताजी की एक होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया था।

 नई नौसेना पताका औपनिवेशिक अतीत के प्रस्थान का प्रतीक है

औपनिवेशिक अतीत से दूर जाने के लिए किये जा रहे राष्ट्रीय प्रयास के गुंजायमान, एक नए नौसैनिक ध्वज में परिवर्तनकी आवश्यकता अनुभव की गई जिसने हमारी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से प्रेरणा ली है। पिछली पताका में सेंट जॉर्ज का क्रॉस लगा था, जो स्वतंत्रता से पहले ध्वज का उत्तराधिकारी था, जिसमें शीर्ष बाएं कोने पर यूनाइटेड किंगडम के यूनियन जैक के साथ एक सफेद पृष्ठभूमि पर रेड क्रॉस बना था। नई पताका में दो मुख्य घटक शामिल हैं - ऊपरी बाएं कैंटन में राष्ट्रीय ध्वज, और फ्लाई साइड के केंद्र में एक नेवी ब्लू - गोल्ड अष्टकोना (डंडे से दूर) है। प्रधानमंत्री ने यह पताका छत्रपति शिवाजी महाराज को समर्पित की है, जिसने समुद्री सीमाओं की सुरक्षा के लिए एक मजबूत नौसेना का निर्माण किया था, जो भारत की स्वदेशी शक्ति का प्रतीक है।

 "बीटिंग द रिट्रीट" समारोह में भारतीय जोश के साथ धुन

 2022 के गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान, 'आजादी का अमृत महोत्सव' मनाने के लिए 'बीटिंग द रिट्रीट' समारोह में कई नई धुनें जोड़ी गईं हैं।इन धुनों में'केरल', 'हिंद की सेना ' और 'ऐ मेरे वतन के लोगों ' शामिल हैं। 'सारे जहां से अच्छा ' की धुन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ था। सितार, संतूर और तबला जैसे भारतीय वाद्ययंत्रों को भी संगीत कलाकारों की टुकड़ी से जोड़ा गया है। इस प्रकार रिट्रीट में भारतीय सुगंध और देशभक्ति का जोश भर दिया गया है, ताकि देश के नागरिकों के साथ अधिक से अधिक संपर्क स्थापित किया जा सके।

राष्ट्रीय युद्ध स्मारक (एनडब्ल्यूएम) का निर्माण और अमर जवान ज्योति और एनडब्ल्यूएमकी ज्योतियों का विलय

प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों की याद में अंग्रेजों द्वारा निर्माण किया गया,इंडिया गेट (जिसे पहले अखिल भारतीय युद्ध स्मारक के रूप में जाना जाता था) भारत के औपनिवेशिक अतीत का प्रतीक है। 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के ऊपर भारत की विजय के प्रतीक अमर जवान ज्योति को बाद में तदर्थ व्यवस्था के रूप में उपरोक्त स्थान से जोड़ा गया, क्योंकि देश में युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने वाले भारतीय सैनिकों के लिए कोई अन्य स्मारक नहीं था। स्वतंत्र भारत के प्रतीक के रूप में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 25 फरवरी, 2019 को उद्घाटन किया गया था और इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया था। इसमें 1971 से पहले और बाद में हुए सभी युद्धों में शहीदहुए सभी भारतीय सैनिकों के नाम हैं। इस प्रकार एनडब्ल्यूएमउन सभी सैनिकों का स्मारक हैजिन्होंने स्वतंत्र भारत की सेवा में या तो अपना जीवन लगा दिया है या भविष्य में यह कार्य करेंगे। इसके उद्घाटन के बाद, सभी श्रद्धांजलि और स्मरण समारोह केवल एनडब्ल्यूएममें आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें राष्ट्रीय दिवसके मौके भी शामिल हैं। राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की उपस्थिति में, शाश्वत ज्योति का इस नए स्थल पर स्थानांतरण करना इसलिए उचित समझा गया क्योंकि यह सभी बहादुरशहीदों के सम्मान में ज्योति स्थापित करने के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि है।

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का नाम बदला

30 दिसंबर, 2018 को, नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा भारतीय धरती पर तिरंगा फहराने की 75वीं वर्षगांठ को चिह्नित करते हुए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की थी कि रॉस द्वीप का नाम बदलकरनेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप कर दिया जाएगा, नील द्वीप को शहीदद्वीप के नाम से जाना जाएगा और हैवलॉक द्वीप का नाम बदलकर स्वराज द्वीप कर दिया जाएगा। स्वतंत्र भारत में भी इन द्वीपों का नाम ब्रिटिश शासकों के नाम पर रखा गया था। सरकार नेभारतीय नाम और भारतीय पहचान देकर गुलामी की इन निशानियों को मिटा दिया।

रेल बजट का वार्षिक केंद्रीय बजट में विलय कर दिया गया

ब्रिटिश युग की प्रथाओं से एक अन्यप्रथा को बदलते हुए, सरकार ने बजट वर्ष 2017-18 से रेल बजट का केंद्रीय बजट के साथ विलय कर दिया। एकवर्थ समिति (1920-21) की सिफारिशों के बाद 1924 में रेलवे वित्त को सामान्य वित्त से अलग कर दिया गया था।

ब्रिटिश शासन के दौरान प्रतिबंधित साहित्यिक कार्यों का पुनरुद्धार

स्वतंत्रता के आंदोलन के दौरानब्रिटिश सरकार द्वारा क्रांतिकारी साहित्यिक कृतियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, क्योंकि इन्हें भारत में उनके शासन की 'सुरक्षा' के लिए 'खतरनाक' माना जाता था। साहित्य के इस निकाय का उद्देश्य लोगों के मन में देशभक्ति की भावना जगाना और स्वतंत्र भारत के लिए खड़े होने का आह्वान करना था। आजादी के अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में, सरकार ने ऐसी कविताओं, लेखों और प्रकाशनों की पहचान की है जिन पर ब्रिटिश राज ने प्रतिबंध लगा दिया था और उन्हें भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार द्वारा प्रकाशित एक सूची के रूप में एक साथ रखा था।हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की भावनाओं, इच्छाओं और उनके संकल्पों का प्रतिनिधित्व करने वाले ये अनूठे संग्रह विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हैं।

औपनिवेशिक प्रतीकों को हटाने के लिए की गई अन्य पहलें:

  • सरकार ने उन कुछ प्रमुख सड़कों के नाम बदल दिये हैं जिनके मूल नाम ब्रिटिश काल में प्रतिष्ठित थे।
  1. 2016 में लुटियन की दिल्ली में रेस कोर्स रोड काबड़ा नाम थाजिसे बदलकर लोक कल्याण मार्ग कर दिया गया है। प्रधानमंत्री का प्रसिद्ध आवासीय पता 7, रेस कोर्स रोड इस प्रकार 7, लोक कल्याण मार्ग कर दिया गया है।
  2. वर्ष 2017 में डलहौजी रोड का नाम बदलकर दारा शिकोह रोड कर दिया गया।
  • 2019 में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लंबे समय से चली आ रही औपनिवेशिक युग की प्रथा से अलग हटकर, केंद्रीय बजट पेश करते समय ब्रीफकेस के स्थान पर पारंपरिक भारतीय 'बही खाता'का विकल्प चुना। इतने दशकों तक ब्रिटिश संसद के समय का पालन करके भारतीय बजट को प्रस्तुत करने के समय और तिथि में भी परिवर्तन किया गया है।
  • मातृभाषा में शिक्षा पर जोर देने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से देश के युवाओं को विदेशी भाषा सीखने की बाध्यता से भी मुक्ति दिलाई जा रही है।
  • पिछले आठ वर्षों में, सरकार ने 1,500 से अधिक पुराने कानूनों को निरस्त कर दिया है, जिनमें से अधिकांश औपनिवेशिक ब्रिटिश काल के प्रतीक थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि इस आजादी के अमृत काल में हमें गुलामी के समय से चले आ रहे कानूनों को खत्म कर नए कानून बनाने चाहिए।
  • भारत ने एक निर्णायक चरण में प्रवेश कर लिया है, और वह आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता से सराबोर भविष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है। देश को अपने औपनिवेशिक अतीत की बेड़ियों से मुक्त करने से ही संविधान द्वारा परिकल्पित अपनी संप्रभु पहचान की नींव को और सुरक्षित किया जा सकेगा, एवं राष्ट्र को अधिक शक्ति के साथ आगे बढ़ाया जा सकेगा क्योंकि यह वैश्विक क्षेत्र में नए पाठ्यक्रम तैयार करता है।

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 AG/HP/RC/KG/MZ//एमजी/एएम/आईपीएस/सीएस

(Features ID: 151231)

मंगलवार, 30 अगस्त 2022

डॉक्टर लोकेश शर्मा को पंजाब रतन अवार्ड 2022

29th August 2022 at 04:35 PM

   चंडीगढ़ में हुई थी 44वीं नैशनल कांन्फ्रेंस  


लुधियाना: 29 अगस्त 2022: (पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी डेस्क):: 

आंखों से देख कर या फिर नब्ज़ टटोल कर किसी भी बिमारी का पता लगाने में माहिर आचार्य डाक्टर लोकेश अपने क्षेत्र में बहुत ही लोकप्रिय हैं। उनके मरीज़ उनके ही गुण गाते हैं। चंडीगढ़ में इन्हीं कारणों से उन्हें पंजाब रत्न एवार्ड दिया गया। उनके मिलाज कई  जगहों पर चलता है। हर जगह पर निश्चित कार्यक्रम के मुताबिक मरीज़ उनकी इंतज़ार में रहते हैं। बी पी, शूगर, मानसिक तनाव, शरीरक कमज़ोरी या कुछ भी ऐसी समस्या हो डा. लोकेश के पास उसे ठीक करने का मंत्र है। आयुर्वेद के साथ साथ होम्योपैथी के समिश्रण के भी आचार्य लोकेश बहुत अच्छे ज्ञाता हैं। इसके साथ ग्रहों की दशा और सितारों की चाल को भी पहचानते हैं। वह चाहते हैं हर ज़रूरतमंद उनके पास जल्द से जल्द पहुंचे और वह उसे तंदरुस्त कर के घर भेजें। आचार्य डा. लोकेश किसी मुनाफे के लिए नहीं बल्कि जनता को स्वस्थ बनाने में जुटे हुए हैं। एक मिशन ले कर चल रहे हैं। लक्ष्य भी बहुत बड़ा है, दिल भी और हिम्मत भी। 

ऑल इंडिया कॉन्फ्रेंस इंस्टिट्यूट संस्था की ओर से इस बार साल 2022 का आयोजन वास्तव में यह इस संस्था का 44वां वार्षिक आयोजन था। जो बहुत ही भव्य और शानदार रहा। इसमें देश भर से महान शख्सियतों ने भाग लिया। इसमें छत्तीसगढ़ के गवर्नर लेफ्टिनेंट जनरल के एम सेठ, हरियाणा के डिप्टी सी एम दुष्यंत चौटाला, यू के  हाईकोर्ट के जज जस्टिस राजेश टंडन, हिमालय वैलनेस से डॉक्टर एस फारुख, सुप्रीम कोर्ट से एडवोकेट पी एन शर्मा, विधायक शाहबाद मारकंडा और चेयरमैन शुगर फेड हरियाणा से श्री रामकरण, मेंबर पार्लिमेंट राज्यसभा और वाइस चेयरमैन शिमला यूनिवर्सिटी से प्रोफेसर डॉक्टर सिकंदर कुमार, वाइस चेयरमैन सिरसा से डॉक्टर कुलदीप सिंह ढ़ीढ़सा, श्रीमान पॉपुलर मीरुथी, डॉक्टर ए यू खान, चंडीगढ़ से जी जी डी एस डी के प्रिंसिपल डॉ अजय शर्मा, सिरसा से चेयरमैन भूपेश मेहता, मंगल पांडे पी जी कॉलेज से डॉक्टर अनीता गोस्वामी, गुरुग्राम से डॉक्टर पूजा राणा, हरिद्वार से श्रीमती अदिति, मीरूट से शम्मी छपरा, श्रीमती अनुश्री, राजेश कुकरेजा, ध्यानचंद कुतरी, लुधियाना से डॉक्टर लोकेश शर्मा, यमुनानगर से डॉ राजन, के डी इंटरनेशनल स्कूल से अमित गिरी, लखनऊ से डॉक्टर अशोक दुबे, अशोक कुमार शर्मा, चेन्नई से संजय कुमार, नोएडा से अमर एन शर्मा ने भाग लिया। 

इसमें प्राकृतिक चिकित्सा स्वास्थ्य संस्थान लुधियाना के संस्थापक आचार्य डॉक्टर लोकेश शर्मा को स्वास्थ्य देखभाल, आयुर्वेद प्राकृतिक चिकित्सा व योग साधना प्रचार के क्षेत्र में  सामाजिक कार्यों के लिए पंजाब रतन 2022 पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

उस दिन हम सभी के लिए बहुत हर्ष का दिन रहा क्योंकि नेचरोवेदा हेल्थ इंस्टीट्यूट लुधियाना के फाउंडर लुधियाना के डॉक्टर लोकेश शर्मा को पंजाब रत्न अवार्ड 2022 का एवार्ड,मिलना हम सभी का सम्मान था। यह रहबर हॉस्पिटल एंड मेडिकल कॉलेज भवानी गढ़ डिस्ट्रिक संगरूर में बतौर इंचार्ज नेचुरोपैथी एंड आयुर्वेद पंचकर्म डिपार्टमेंट से भी हैं और इसके साथ साथ महासती प्रवेश माला जैन चेरिटेबल हॉस्पिटल मोतीनगर लुधियाना के इंचार्ज भी हैं। 

इससे पहले भी आचार्य लोकेश बहुत से संतानों से जुड़े रहे हैं। स्वामी विवेकानंद हॉस्पिटल मॉडल टाउन लुधियाना, श्री लक्ष्मी नारायण चेरिटेबल डिस्पेंसरी , बी आर एस नगर लुधियाना , ई ब्लॉक गुरुद्वारा साहिब में फिजियोथेरेपी नेचुरोपैथी योगा सेंटर के पूर्व सह संस्थापक और जैन चेरिटेबल हॉस्पिटल, हिमालयन हीलिंग सेंटर बलाचौर (नवा शहर) आदि सेंटरों में अपनी सेवाएं भी दे रहे हैं। इस अवसर पर पानीपत से रमन अनेजा, लुधियाना से सुशील कुमार मल्होत्रा, नासिक से अनिल गंगुरड़ी, एच एस शर्मा, नैनीताल से डॉक्टर नीटा बूरा, भीलवाड़ा राजस्थान से अनिल छज्जर, अकील शेख, संजय अग्रवाल, अमन अग्रवाल, मनोज कुमार गुलाटी उपस्थित थे।

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गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

राजनीति के फिसलन भरे रास्ते पर हर कदम बच कर उठाना है//संजीवन सिंह

  किसान आंदोलन की जीत के बाद सावधान करती रचना 

 संजीवन और इप्टा के अन्य साथियों ने किसान योद्धाओं के विजय मार्च का स्वागत किया
दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन की जीत शानदार रही लेकिन युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है। अब पंजाब में टकराव की स्थिति बन रही है. कोई फर्क नहीं पड़ता कि जीतने वाला दांव कहाँ जाता है। यह डर एक बार फिर से दिलों में उठने लगा है। 750 से अधिक किसान साथियों का हिसाब अभी बाकी है। सरकार द्वारा किए गए वादे अभी तक पूरे नहीं हुए हैं। बीजेपी नेता लगातार इसी कानून को खत्म करने की धमकी दे रहे हैं. किसानों को मवाली कहने वाले मंत्री भी पंजाब में घूम रहे हैं। लम्बे समय से रंगमंच और प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े रहे मोहाली निवासी प्रख्यात रंगकर्मी संजीवन सिंह हमेशां श्रमिकों के हितैषी रहे हैं। प्रगतिशील परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने आंदोलन में शामिल व्यक्तियों और ताकतों को बहुत संतुलित शब्दों में चेतावनी देने की कोशिश की है। हम इस लेख और आंदोलन के भविष्य पर आपसे सुनने के लिए उत्सुक हैं। --संपादक

सत्ता के किसान विरोधी तीन काले कानूनों के खिलाफ पंजाब में उठे विद्रोह ने न केवल भारत को बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित किया और दुनिया की चर्चा बन गई। हर वर्ग, हर जाति, हर धर्म, हर विचार, हर विचार और हर वर्ग के लोगों ने अपने जीवन का बलिदान दिया और अपने वित्त और क्षमता के अनुसार संघर्ष के इस धुएं को जलाए रखने के लिए योगदान दिया। सभी प्रकार के भेदभाव और मतभेदों को अलग रखते हुए, उन्होंने सत्ता और अधिकार के नशे में भारत के अभिमानी शासक के अत्याचार, ज्यादतियों और मनमानी के खिलाफ आवाज उठाई।
हुक्मरानों ने अपने गुर्गों के माध्यम से इस जनसंघर्ष को आतंकवादी, अलगाववादी, खालिस्तानी, नक्सली, आंदोलनकारी बताकर कुचलने के कई असफल प्रयास किए। किसी भी एक संघर्षरत योद्धा का मन नहीं डगमगाया। उनके इरादे और भी मजबूत हो गए।

खेतों के बेटों को सत्ता वालों ने बुरी तरह बदनाम करने में ोकि कस्र नहीं छोड़ी। किसान को अन्नदाता के रूप में स्वीकार करने से यह कहकर इनकार करना कि एक अनाज विक्रेता एक उपकारी कैसे हो सकता है, आंदोलन के समर्थकों और सहानुभूति रखने वालों के लिए आश्चर्य और संकट का का कारण बना। क्योंकि ऐसे सज्जन देश की सीमाओं पर देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले देश के सैनिकों को यह कहकर शहीद मानने से भी इंकार कर सकते हैं कि सैनिकों को वेतन मिलता है और नौकरी मिलती है।

अत्याचारी के अत्याचार से लड़ने के लिए गुरुओं, संतों और नबियों से विरासत में मिली गुड़ती ने विनम्र शासक को झुकने के लिए मजबूर किया। देश भर से गिने-चुने दिग्गज (लोक शक्ति) डंडे में झंडे लिए दिल्ली लौटे। पहले से ही अलग-अलग रंगों के झंडे डंडे पर फहराए गए और सत्ता के भूखे लोग चिल्लाने लगे, वे डंडे पर झंडे क्यों लगा रहे हैं? डंडे में झंडे लगाना हमारा अधिकार है। डंडे में झंडे लगाकर सत्ता हासिल कर लोगों के अमले को परेड करना हमारा अधिकार है।

ऐसे ध्वजवाहक जो खुद को सत्ता का वारिस मानते हैं, शायद भूल गए होंगे कि वे भी लाठी-डंडों के संघर्ष में हिस्सा लेते थे। क्रांति के लिए युद्ध होने दो। अनगिनत बलिदानों, अत्याचारों और यातनाओं को सहने के बाद सभी ने अलग-अलग रंगों के झंडे गाड़ दिए अपने-अपने डंडे में इसे रोकने के लिए उन्हें प्रताड़ित और प्रताड़ित किया जाता है। अभूतपूर्व जीत के बाद लौट रहे हैं, हालांकि, कुछ लड़ाके झंडे को पोल पर लगाने के पक्ष में नहीं हैं। बेशक डंडे की ताकत को नकारा नहीं जा सकता लेकिन झंडे की अपनी हैसियत होती है. झंडे की अपनी गरिमा होती है. लोगों को दर्द होना चाहिए.

यह अच्छी बात है कि वर्षों के संघर्ष के दौरान दिल्ली के पास किसी भी राजनीतिक झंडे को उड़ने नहीं दिया गया। राजनीतिक झण्डे को किसी भी प्रकार का राजनीतिक लाभ लेने की अनुमति नहीं थी।मिर्च अधिक मिलाते हैं, कभी-कभी नमक।

ठीक वैसे ही जैसे नई दुल्हन को बाकी परिवार और पड़ोसियों का दिल जीतने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है. इसी तरह, नए झंडे को लोगों का दिल और दिमाग जीतने के लिए और लोगों का प्यार और सम्मान जीतने के लिए विशेष प्रयास करना होगा। लेकिन किसी का विश्वास जीतकर पल भर में अपनी पहचान बनाना संभव नहीं है।

संघर्ष का सार आत्म-बलिदान है और राजनीति का स्वभाव चालबाजी और चालबाजी है। कोई पेड़ लगाते ही छाया देना शुरू नहीं करता है। पेड़ लगाने के बाद उसकी देखभाल करनी होती है। मेंटेनेंस भी करना पड़ता है। मवेशियों को भी बचाना होगा। संघर्ष की प्रकृति और राजनीति के क्षेत्र की प्रकृति काफी भिन्न है।संघर्ष का मार्ग ऊबड़-खाबड़ है और राजनीति का मार्ग फिसलन भरा है। राजनीति के फिसलन भरे रास्ते पर हर कदम बहुत सावधानी से उठाना पड़ता है। --संजीवन सिंह   

किसान आंदोलन की विजय के संबंध में सब्जीवन जी के भाई रंजीवन साहिब ने भी एक काव्य रचना लिखी। इस का वीडियो आप देख सकते हैं  यहां क्लिक कर के। 

ਕਿਸਾਨ ਅੰਦੋਲਨ ਦੀ ਜਿੱਤ ਸਬੰਧੀ ਸੰਜੀਵਨ ਹੁਰਾਂ ਦੇ ਭਰਾ ਰੰਜੀਵਨ ਹੁਰਾਂ ਦੀ ਕਾਵਿ ਰਚਨਾ ਵਾਲਾ ਵੀਡੀਓ ਦੇਖ ਸਕਦੇ ਹੋ ਇਥੇ ਕਲਿੱਕ ਕਰ ਕੇ। 

रविवार, 23 जनवरी 2022

आत्मनिर्भरता-पहल की ओर प्रशस्त एक मार्ग-बढ़ईगिरी

प्रविष्टि तिथि: 23 JAN 2022 9:11 AM by PIB Delhi

 पंजीकृत सोसायटी एनईसी के अंतर्गत विशेष अभियान 

नई दिल्ली: 23 जनवरी 2022:(पीआईबी//पंजाब स्क्रीन ब्लॉग टीवी)::

प्रतीकात्मक फोटो 

चुराचांदपुर जिले के खोचिजंग गांव के निवासी श्री मांगमिनलुन सिंगसिट ने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए काफी कष्ट सहन किए। संसाधनों और बुनियादी सेवाओं तक सीमित पहुंच के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। उनके जीवनसंकट में थे। हालांकि, वह एक बढ़ई होने के कारण सौभाग्यशाली भी थे। उन्होंने मात्र 300/-रूपए (तीन सौ रुपये) प्रतिदिन पर शहर में एक बड़ी बढ़ईगीरी कार्यशाला में काम करना शुरू किया, इस छोटी धनराशि के कारण वह अपने परिवार की बुनियादी जरूरतों का भी ध्यान नहीं रख पा रहे थे।

भारत सरकार के उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय के एनईसी के तत्वाधान में एनईआरसीआरएमएस की एनईआरसीओआरएम चरण-III परियोजना के तहत उन्हें वर्ष 2018-19 में बढ़ईगीरी लाभार्थी के रूप में चुना गया था और उन्हें वित्तीय सहायता के तौर पर 18000/- (रुपये अठारह हजार मात्र) की मदद मिली। इसके माध्यम से, उन्होंने बढ़ईगिरी गतिविधि के लिए आवश्यक उपकरण खरीदे। बढ़ईगीरी गतिविधि से होने वाली नियमित आय ने उन्हें न सिर्फ अपने परिवार का भरण-पोषण करने में सहायता की बल्कि उन्हें अपने बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए स्कूल भेजने का भी अवसर प्रदान किया।

"मुझे चुनने के लिए मैं एनएआरएमजी का बहुत आभारी हूं और एक आशा की किरण दिखाने के लिए एनईआरसीओआरएम परियोजना का ऋणी रहूंगा। मैं प्रार्थना करता हूं कि यह परियोजना हमारे गांव में अपनी सुंदर यात्रा जारी रखे।” - श्री मांगमिनलुन सिंगसिट, परियोजना लाभार्थी, चुराचांदपुर।

बाद में, उन्होंने अपनी स्वयं की बढ़ईगीरी की दुकान का स्वामित्व हासिल किया और इसके माध्यम से अपने व्यवसाय का विस्तार करते हुएन केवल गाँव में, बल्कि पूरे कस्बे में एक प्रसिद्ध बढ़ई बनने के अपने इरादों को सिद्ध कर दिखाया। एनएआरएमजी के सहयोग से, अब वे एक सफल उद्यमी और मास्टर प्रशिक्षक भी बन गए हैं। उनका जुनून और प्रतिबद्धता ही उन्हें आज भीड़ से अलग बनाता है।

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