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शनिवार, 30 जून 2018
मंगलवार, 17 अप्रैल 2018
रविवार, 11 मार्च 2018
"किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार"--हरप्रीत कौर प्रीत
हर गरीब बच्चे तक शिक्षा पहुंचाने में जुटी है प्रीत
अमृतसर: 11 मार्च 2018: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन डेस्क टीम)::
जन्मदिन मुबारक |
अब जब हरप्रीत कौर प्रीत ने अपने बेटे के जन्मदिन को कैसे मनाया जाये का सवाल उठाया तो बहुत कुछ याद आने लगा। महसूस हुआ-शायद बहुत कम लोग ऐसा सोच पाते हैं। निरथर्क किस्म की मस्ती हमारे समाज और लाईफ स्टाईल का हिस्सा बन चुकी है। यह मदहोशी भरी मस्ती हमें कुछ काम की बात सोचने भी नहीं देती।
जन्मदिन की बात के इस शुभ अवसर पर याद आरही हैं एक और गीत की पंक्तियाँ।
कुछ पाकर खोना है,
कुछ खोकर पाना है
जीवन का मतलब तो,
कुछ पाकर खोना है,
कुछ खोकर पाना है
जीवन का मतलब तो,
आना और जाना है----
दो पल के जीवन से, एक उम्र चुरानी है.....
मुझे लगता है हर जन्मदिन पर हमें खुद भी खुद को समझना चाहिए और दूसरों को भी समझाना चाहिए कि उम्र का एक वर्ष और कम हुआ लेकिन अनुभवों का एक नया अध्याय भी जीवन में जुड़ गया। आओ अनुभव की इस पूंजी को पाकर दो पल के जीवन से उम्र को चुराना सीखें।
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शनिवार, 10 फ़रवरी 2018
जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो न पाया हम ने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
फेसबुक: 10 फरवरी 2018: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन)::
सुल्ताना बेगम साहिबा से मुलाकात किसी भी तरह हो--उनके लिखे शब्दों के ज़रिये या फिर आमने सामने या फिर तस्सवुर में--
एक बात पक्की है कि कुछ देर के लिए आप वोह नहीं रहते जो मिलने से पहले थे।
आपको लगने लगेगा कि आप अपने अनुभव में ज़िंदगी के ज्ञान की असली और अनमोल पूँजी पा कर ही उठे हैं। शगूफा शब्द कहने को शायद किसी हल्के फुल्के अहसास या हंसी की याद दिलाता हो लेकिन सुलताना बेगम जी के लिखे शगूफे ज़िंदगी की भूल चुकी आंतरिक परतों को उघाड़ते हुए अक्सर वहां ले जाते है जहाँ हम जाने के इच्छुक नहीं भी होते। बिलकुल उसी तरह जैसे हमारा बस चले तो हम आईना भी वही लाएं जो हमें हमारी मर्ज़ी की खूबसूरत शक्ल ही दिखाए। सुल्ताना बेगम भी अपने शब्दों से कई बार आईना दिखाती हैं। आज उनके एक पंजाबी शेयर की पोस्ट पढ़ी:
दिल में वसल-ए-यार की आरज़ू न रही;
कैसे कहूं कि अब कोई आरज़ू न रही।
इस पोस्ट को पढ़ते ही याद आयी बरसात की रात की क्वाली। ख़ास कर इसकी वो पंक्तियाँ---
मेरे नामुराद जनून का; गर है इलाज कोई तो मौत है;
जो दवा के नाम पे ज़हर दे उसी चारागर की तलाश है।
यह सब यहाँ इस लिए लिख रहा हूँ तांकि आप सभी को पता चल सके कि सुल्ताना बेगम के शब्दों को पढ़ते पढ़ते इंसान कहाँ से कहाँ जा सकता है। किसी सहरा में भी किसी समुन्द्र में भी। गहरी शांति में भी और किसी तूफानी हालत में भी। लेकिन आप फिलहाल सुनिए//देखिये इस ग़ज़ल को--
जुस्तजु जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने;
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने।
फिल्म उमरायो जान 1981 में रलीज़ हुयी थी और इस फिल्म ने एक गंभीर दर्शक वर्ग की पहचान को और मज़बूत किया था। आवाज़ आशा भौंसले की थी, शब्द थे शहरयार के और संगीत से सजाया था ख्याम साहिब ने। समझना मुश्किल था--अब भी मुश्किल ही है कि आप इस को इसके शब्दों की वजह से पसंद करते हैं, इसकी गायन आवाज़ के लिए पसंद करते हैं या फिर इसके संगीत की वजह से। इन तीनों महारथियों का ऐसा संगम बार बार नहीं बनता।
जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो न पाया हम ने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
तुझ को रुसवा न किया ख़ुद भी पशेमां न हुए
तुझ को रुसवा न किया ख़ुद भी पशेमां न हुए
इश्क़ की रस्म को इस तरह निभाया हम ने
कब मिली थी कहाँ बिछड़ी थी हमें याद नहीं
कब मिली थी कहाँ बिछड़ी थी हमें याद नहीं
जिंदगी तुझ को तो बस ख्वाब में देखा हम ने
ऐ अदा और सुनाये भी तो क्या हाल अपना
ऐ अदा और सुनाये भी तो क्या हाल अपना
उम्र का लंबा सफर तय किया तन्हा हम ने
फ़िल्मी दुनिया की मानी हुयी हस्ती रेखा का स्केच बनाने वाली अंजना वर्मा जी से आप मिल सकते हैं यहाँ क्लिक करके
फ़िल्मी दुनिया की मानी हुयी हस्ती रेखा का स्केच बनाने वाली अंजना वर्मा जी से आप मिल सकते हैं यहाँ क्लिक करके
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Sultana Begum
शनिवार, 3 फ़रवरी 2018
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