कैसे कहें के तेरे तलबगार हम नहीं
फिल्म आहिस्ता आहिस्ता में जनाब नक्श लायलपुरी का लिखा यह गीत---सुलक्षना पंडित की सुलीली आवाज़ और खय्याम साहिब के संगीत का जादू----आपको बार बार सोचने पर मजबूर करते हैं----ऐसे लगता है जैसे हम वक्त के पेंडुलम पर सवार हों---कभी हम अतीत की तरह जा रहे हैं और कभी भविष्य की तरफ----वर्तमान कब निकल जाता है कुछ समझ ही नहीं आता---दर्द ही दर्द---इंतजार का दर्द---भूलने का दर्द---यादों का दर्द---चाह का दर्द----जिंदगी के हर दर्द को मिला कर तैयार की गयी काकटेल----जिसमें कडुवाहट भी है और मज़ा भी----सुनिए और महसूस कीजिये सच के इस दर्द को----रेक्टर कथूरिया
फिल्म आहिस्ता आहिस्ता में जनाब नक्श लायलपुरी का लिखा यह गीत---सुलक्षना पंडित की सुलीली आवाज़ और खय्याम साहिब के संगीत का जादू----आपको बार बार सोचने पर मजबूर करते हैं----ऐसे लगता है जैसे हम वक्त के पेंडुलम पर सवार हों---कभी हम अतीत की तरह जा रहे हैं और कभी भविष्य की तरफ----वर्तमान कब निकल जाता है कुछ समझ ही नहीं आता---दर्द ही दर्द---इंतजार का दर्द---भूलने का दर्द---यादों का दर्द---चाह का दर्द----जिंदगी के हर दर्द को मिला कर तैयार की गयी काकटेल----जिसमें कडुवाहट भी है और मज़ा भी----सुनिए और महसूस कीजिये सच के इस दर्द को----रेक्टर कथूरिया
-नक़्श लायलपुरी
माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं
कैसे कहें के तेरे तलबगार हम नहीं
सींचा था जिस को ख़ूने तमन्ना से रात दिन
गुलशन में उस बहार के हक़दार हम नहीं
हमने तो अपने नक़्शे क़दम भी मिटा दिए
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं
यह भी नहीं के उठती नहीं हम पे उँगलियाँ
यह भी नहीं के साहबे किरदार हम नहीं
कहते हैं राहे इश्क़ में बढ़ते हुए क़दम
अब तुझसे दूर, मंज़िले दुशवार हम नहीं
जानें मुसाफ़िराने रहे - आरज़ू हमें
हैं संगे मील, राह की दीवार हम नहीं
पेशे-जबीने-इश्क़ उसी का है नक़्शे पा
उस के सिवा किसी के परस्तार हम नहीं
माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं
कैसे कहें के तेरे तलबगार हम नहीं
सींचा था जिस को ख़ूने तमन्ना से रात दिन
गुलशन में उस बहार के हक़दार हम नहीं
हमने तो अपने नक़्शे क़दम भी मिटा दिए
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं
यह भी नहीं के उठती नहीं हम पे उँगलियाँ
यह भी नहीं के साहबे किरदार हम नहीं
कहते हैं राहे इश्क़ में बढ़ते हुए क़दम
अब तुझसे दूर, मंज़िले दुशवार हम नहीं
जानें मुसाफ़िराने रहे - आरज़ू हमें
हैं संगे मील, राह की दीवार हम नहीं
पेशे-जबीने-इश्क़ उसी का है नक़्शे पा
उस के सिवा किसी के परस्तार हम नहीं
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